Pahalgam Attack: पहलगाम आतंकी हमले के एक महीने पूरे हो गए हैं। इस एक आतंकी हमले ने 26 पर्यटकों की जान ली, पाकिस्तान को फिर एक्सपोज किया और जम्मू-कश्मीर में स्थापित हुई शांति को कलंकित कर दिया। अब उस हमले के बाद भारत ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया, 100 से ज्यादा आतंकियों को मौत के घाट भी उतारा। लेकिन फिर भी कुछ सवाल ऐसे बने हुए हैं जिनके जवाब एक महीने बाद भी नहीं मिल पाए हैं।

सवाल नंबर 1- पहलगाम हमला करने वाले आतंकी कहां?

पहलगाम आतंकी हमले का बदला तो ऑपरेशन सिंदूर के जरिए ले लिया गया, लेकिन उन दहशतगर्दों का क्या जिन्होंने 22 अप्रैल को धर्म पूछ मासूम पर्यटकों को मौत के घाट उतार दिया। जांच में इतना तो जरूर सामने आया कि टीआएफ के आतंकियों ने इस हमले को अंजाम दिया, बाद में उनकी तस्वीर तक सामने आ गई। लेकिन 30 दिन बीत जाने के बाद भी उन आतंकियों को कई सुराग नहीं मिल पाया है। अभी यह तक स्पष्ट नहीं है कि वो आतंकी जम्मू-कश्मीर के ही जंगलों में छिपे हुए हैं या फिर पाकिस्तान वापस भाग चुके हैं।

सवाल नंबर 2- सुरक्षा में चूक हुई या नहीं?

ऑपरेशन सिंदूर के बाद से ही भारतीय सेना के शौर्य को सलाम किया जा रहा है, सरकार भी अपनी इच्छाशक्ति का बखान कर रही है। लेकिन इस बीच एक सवाल रह जाता है- पहलगाम में इतना बड़ा आतंकी हमला कैसे हो गया, आखिर कैसे बैसरन घाटी को आतंकियों ने निशाने पर लिया। अब यह बात साफ हो चुकी है कि बैसरन घाटी में जम्मू-कश्मीर के दूसरे इलाकों की तुलना में सुरक्षा कम थी, ऐसे में आतंकियों को भी पहले हमला करने में और फिर वहां से भागने में खासा सहुलियत रही। ऐसे में सुरक्षा में चूक हुई, इस बात को लेकर बहस नहीं है, लेकिन जिम्मेदारी कब तय होगी? इसे इंटेलिजेंस फेलियर माना जाए या फिर सरकार के स्तर पर चूक हुई?

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सवाल नंबर 3- सीजफायर में ट्रंप की भूमिका पर संशय बरकरार

भारत और पाकिस्तान के बीच में जारी तनाव सीजफायर के जरिए कम हुआ। भारत ने साफ कहा कि पाकिस्तानी सेना की तरफ से ही भारत के डीजीएमओ को फोन किया गया और सीजफायर की बात हुई। अब यहां तक बात पूरी तरह भारत के पक्ष में रही, मान लिया गया कि पाकिस्तान झुका, उसने हार मानी। लेकिन उसके बाद अमेरिका की एंट्री ने खेल पलट दिया, राष्ट्रपति ट्रंप ने दावा कर दिया कि उन्होंने इस सीजफायर में भूमिका निभाई, यहां तक कहा गया कि दोनों ही देशों को ट्रेड का लालच दिया गया। अब ट्रंप के दावे हर बीतते दिन के साथ बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन भारत सरकार ने एक बार भी सीधे-सीधे राष्ट्रपति ट्रंप की बातों का खंडन नहीं किया है।

इसी वजह से विपक्ष भी लगातार सवाल दाग रहा है, आखिर जम्मू-कश्मीर जैसे मुद्दे पर अमेरिका की एंट्री कैसे हो गई। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जरूर कहा है कि सीजफायर के लिए बात सिर्फ भारत और पाकिस्तान के बीच हुई। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि यूएस उस समय यूनाइटेड स्टेट्स में था। उनका साफ कहना रहा कि अमेरिका ने सिर्फ चिंता व्यक्त की थी, इससे ज्यादा उसकी कोई भूमिका नहीं रही। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप के दावे इंटरनेशनल मीडिया के सामने दूसरा ही नेरेटिव सेट कर रहे हैं।

सवाल नंबर 4- जहां विरोध वहां क्यों नहीं डेलिगेशन?

भारत सरकार की तरफ से ऑपरेशन सिंदूर के बाद सर्वदलीय डेलिगेशन अलग-अलग देश भेजा जा रहा है, लेकिन हैरानी इस बात की है कि सरकार उन देशों में डेलिगेशन नहीं भेज रही जहां इसकी सबसे ज्यादा दरकार थी। भारत का समर्थन चीन ने नहीं किया है, आंखें उसकी खोलनी है, लेकिन वहां कोई डेलिगेशन नहीं जा रहा। इसके ऊपर पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत को ज्यादातर देशों का समर्थन मिला था, ऑपरेशन सिंदूर का भी कहीं कड़ा विरोध होता नहीं दिखा। ऐसे में राजनयिकों के स्तर पर भी आतंकवाद के खिलाफ संदेश दिया जा सकता था। लेकिन यहां हर पार्टी से नेता को चुन कई ऐसे देशों में भी डेलिगेशन भेजा जा रहा है जिनकी वैश्विक पटल पर ना कोई वैसी धमक है और ना ही भूमिका। विपक्ष के कुछ नेताओं ने भी ये सवाल उठाए हैं, लेकिन सरकार ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया।

पहलगाम हमले से ऑपरेशन सिंदूर तक- टाइमलाइन

22 अप्रैल को पहलगाम की बैसरन घाटी में दोपहर दो बजे के करीब आतंकियों ने पर्यटकों पर फायरिंग शुरू कर दी, सिर्फ पुरुषों को निशाने पर लिया और धर्म पूछ मौत के घाट उतार दिया। इस आतंकी हमले में कुल 26 पर्यटकों की दर्दनाक मौत हुई। हमले के अगले ही दिन 23 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सऊदी अरब का आधिकारिक दौरा बीच में छोड़ दिया और दिल्ली लौटते ही एनएसए अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ आपात बैठक बुलाई।

पहलगाम हमले के दो दिन बाद, 24 अप्रैल 2025 को प्रधानमंत्री मोदी ने कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की आपात बैठक बुलाई। इस बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, सेना प्रमुख, गृह मंत्री और विदेश मंत्री मौजूद रहे। बैठक में पाकिस्तान को कड़ा जवाब देने की रणनीति तय की गई, जिसमें सैन्य और कूटनीतिक विकल्पों पर सहमति बनी। इसके बाद 27 अप्रैल को इस पूरे मामले में एनआईए की एंट्री हुई और शुरुआती जांच के बाद कहा गया कि हमले में शामिल 5 पाकिस्तानी आतंकियों की मदद 14 स्थानीय सहयोगियों ने की थी।

अब एक तरफ जांच एजेंसियां अपना काम करती रहीं तो वहीं दूसरी तरफ कूटनीतिक स्तर पर भी पाकिस्तान को झटका देने का काम हुआ। भारत ने पाकिस्तान को कड़ा संदेश देने के लिए सिंधु जल संधि (1960) को निलंबित कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने ऐलान किया – “भारत का पानी अब भारत के ही काम आएगा।” भारत ने चिनाब नदी के बहाव को 90% तक घटा दिया और पश्चिम की ओर नदियों पर नए जलविद्युत प्रोजेक्ट्स शुरू कर दिए। इसके बाद 4 और 5 मई को एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भारतीय सेना की तैनाती बढ़ा दी गई। सीमा पर सैन्य हलचल बढ़ गई। रडार, आर्टिलरी और एंटी-एयर सिस्टम अलर्ट पर रखे गए। खुफिया एजेंसियों ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में नौ आतंकवादी शिविरों की लोकेशन पिन-पॉइंट की।

अगले ही दिन 6 मई को देर रात भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च किया और पाकिस्तान में 9 आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर डाला। यहां भी बहावलपुर और मुरिदके में अंदर घुसकर हमला करना सबसे बड़ी हाईलाइट रहा। एक ही एक्शन के जरिए हाफिज सईद के लश्कर और अजहर मसूद के जैश को सबसे बड़ा झटका दिया गया। अब भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद बौखलाए पाकिस्तान ने भारत के 22 शहरों पर ड्रोन अटैक किया। उसने रिहायशी इलाकों पर गोलीबारी शुरू की, आम नागरिकों को निशाने पर लिया।

भारत के एस 400 सिस्टम और आकाशतवीर ने पाक के हर ड्रोन, हर मिसाइल को ध्वस्त किया। इसके ऊपर जब सैन्य ठिकानों पर हमले होने लगे तो सीधे पाकिस्तान ने 6 एयरबेस को निशाने पर लिया गया, उनके भारी नुकसान पहुंचा दिया गया। बाद में सैटेलाइट तस्वीरों के जरिए भी भारत की कार्रवाई की तस्दीक पूरी दुनिया ने कर दी। इसके बाद पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए और सीजफायर का ऐलान हो गया। अब इस समय भारत में जीत का जश्न है, पीएम मोदी ने भी पाकिस्तान को अंतिम चेतावनी दे दी है। राजस्थान के बीकानेर से हुंकार भरी गई है कि पाकिस्तान एक बात भूल गया है, मां भारती का सेवक मोदी सीना ताने खड़ा है। मोदी का दिमाग ठंडा, ठंडा रहता है, लेकिन मोदी का जो लहू है, वो गरम है, मोदी की नसों में लहू नहीं गरम सिंदूर बह रहा है।

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