दिल्ली की हवा में प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा चल रहा है, पिछले कुछ दिनों से AQI खराब श्रेणी में बना हुआ है। तमाम प्रयासों के बावजूद भी दिल्लीवालों को राहत नहीं मिल पाई है। इस बीच आंकड़ों का एक खेल सामने आया है जिसने ‘दिल्ली की हवा साफ होगी’ जैसे सपनों पर भी सवाल उठा दिए हैं। असल में राजधानी के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को लेकर दिल्ली जल बोर्ड और Central Pollution Control Board (CPCB) के आंकड़ों में बड़ा अंतर है।
इस समय दिल्ली जल बोर्ड द्वारा जो 37 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट संचालित किए जाते हैं, वो सीपीसीबी के मुताबिक तय मानकों पर खरे नहीं उतर रहे हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि Delhi Pollution Control Committee’s (DPCC) की रिपोर्ट्स में वहीं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट एकदम सही बताए गए। उस समय कहा गया कि ये सारे सीवेज प्लांट तय मानकों पर खरे उतर रहे हैं।
नई रिपोर्ट ने कैसे खोली साफ पानी की पोल?
असल में एक आरटीटाई के बाद इस साल 24 अक्टूबर को सीपीसीबी की रिपोर्ट सामने आई थी, उसमें बताया गया कि जून में जब सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स का निरीक्षण किया गया तो सभी प्रमुख मानकों पर वो खरा नहीं उतरा। फिर बात चाहे बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड की हो (BOD ≤10 mg/l), टोटल सस्पेंडेड सॉलिड्स की हो (TSS ≤10 mg/l), अमोनियाकल नाइट्रोजन की हो (≤5 mg/l) या फिर फीकल कोलिफॉर्म की हो (≤230 MPN/100 ml)।
निरीक्षण रिठाला, ओखला, कोंडली, पप्पनकलां, यमुना विहार, निलोठी, केशोपुर और कोरोनेशन पिलर समेत कई दूसरे सीवेज प्लांट में किया गया था। आरटीआई जवाब में ही पता चला है कि 37 सीवेज प्लांट सिर्फ कुछ ही मानकों में फेल नहीं हुए हैं, 36 तो ऐसे निकले हैं जो फीकल कोलिफॉर्म के स्वीकृत स्तर तक भी नहीं पहुंच पाए हैं। डीपीसीसी जहां सभी प्लांट्स को क्लीन चिट दे रहा था, सीपीसीबी ने वहां भी बैक्टीरियल प्रदूषण तय स्तर से काफी ज्यादा निकला।
सीवेज प्लांट में टूट रहे कौन से नियम?
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि सभी प्लांट्स में अमोनियाकल नाइट्रोजन भी अधिक रहा है। मेहरौली में 37 mg/l, पप्पनकलां फेज-II में 28 mg/l, यमुना विहार फेज-III में 26 mg/l और यमुना विहार फेज-II में 13 mg/l का आंकड़ा दर्ज किया गया है। अब ये सभी आंकड़े हैरान इसलिए कर रहे हैं कि क्योंकि इसी साल 30 जून की डीपीसीसी की रिपोर्ट बता रही थी कि ज्यादातार प्लांट एकदम सही काम कर रहे थे, सभी मानकों पर खरे उतर रहे थे।
अक्षरधाम, चिल्ला, कोरोनेशन पिलर फेज-I और फेज-II, दिल्ली गेट नाला फेज-I और फेज-II, नजफगढ़, केशोपुर फेज-II, ओखला फेज-V और रोहिणी में स्थित प्लांट को मानकों पर खरा माना गया। सिर्फ वसंत कुंज, मेहरौली, गिटोरनी, कोंडली फेज-II और पप्पनकलां (ओल्ड) के सीवेज प्लांट पर ही सवाल उठाए गए थे। इसी तरह अगर देखा जाए तो डीपीसीसी की रिपोर्ट में तो अक्षरधाम प्लांट के BOD और Faecal Coliform नियंत्रण में दिखाया गया था, लेकिन वहीं जब सीपीसीबी ने जांच की तो फीकल कोलिफॉर्म का स्तर 7.9×10⁴ MPN/100 ml पाया गया, जो सुरक्षित सीमा से 340 गुना ज्यादा है।
आखिर आंकड़ों में क्यों है इतना अंतर?
सीपीसीबी के अधिकारी बता रहे हैं कि यह पहली बार है जब उन्होंने इस तरह से स्वतंत्र निरीक्षण किया है। सीपीसीबी के एक वैज्ञानिक ने कहा कि इनफ्लो और लोड पर निर्भर करता है कि कोई भी प्लांट कैसे काम करेगा, लेकिन रिपर्ट्स में इतना अंतर आ जाना हैरान करता है। अगर एक एजेंसी सब सही बताए और दूसरे में कई नियम टूटते दिखे, यह चंता का विषय है। वैसे डीपीसीसी और दिल्ली जल बोर्ड जिस तकनीक के जरिए सीवेज प्लांट का निरीक्षण करते हैं, उसका नाम Nessler method है, लेकिन Bureau of Indian Standards ने 2019 में ही उस टेस्ट को अवैध बता दिया था। वहीं बात जब सीपीसीबी की आती है तो वो spectrophotometric या फिर ion-selective electrode method का इस्तेमाल करती है जिसमें मरकरी का इस्तेमाल नहीं होता है।
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