तेल की कीमतों में पिछले कुछ समय से दिख रही तेजी के बीच वित्त मंत्री ने कहा कि भारत तेल मूल्यों के मौजूदा स्तर से निपट सकता है लेकिन इसके और महंगा होने से अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी और मुद्रास्फीति का दबाव बनेगा। कच्चा तेल सात महीने के उच्च स्तर 50 डालर प्रति बैरल पर पहुंच चुका है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसद कच्चा तेल आयात करता है। कच्चे तेल की कीमतों में प्रति बैरल एक डालर की वृद्धि पर देश का आयात खर्च 9,126 करोड़ रुपए (1.36 अरब डालर) बढ़ जाता है। इससे सामान्य महंगाई का दबाव भी बढ़ता है।

जेटली निवेश आकर्षित करने के लिए छह दिन की यात्रा पर जापान आए हुए थे। उन्होंने यहां कहा कि कच्चे तेल की कीमतों का बढ़ना भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है। जिस दायरे में यह अभी है, इससे निपटा जा सकता है। लेकिन अगर यह दायरे से बाहर जाता है, तब मुश्किल पैदा होगी। पेट्रोल की कीमत में प्रति लीटर एक रुपए की वृद्धि से थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति में 0.02 फीसद और डीजल के भाव में इतनी ही बढ़ोतरी से 0.07 फीसद की बढ़ोतरी होती है। भारत शुद्ध रूप से कच्चे तेल का खरीदार है और पिछले एक साल से अधिक समय से कम कीमत से लाभान्वित हुआ। 2014-15 की दूसरी छमाही में जब तेल की कीमतों में नरमी रही तो सरकार ने अपने राजस्व को पूरा करने और घाटे का लक्ष्य पूरा करने के लिए पेट्रोल पर 11.77 रुपए लीटर और डीजल पर 13.47 रुपए लीटर उत्पाद शुल्क बढ़ाया।

भविष्य की योजना के बारे में उन्होंने कहा कि सरकार प्रत्यक्ष कर सुधारों पर गौर कर रही है ताकि कर की दर को नीचे लाया जा सके। वस्तु व सेवा कर के जरिए अप्रत्यक्ष कर सुधारों पर भी नजर है ताकि देश के लिए एकल बिक्री कर व्यवस्था सृजित की जा सके। हम कंपनी कानून में बदलाव पर भी गौर कर रहे हैंं। क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन व नियोजना प्राधिकरण कानून के जरिए वनीकरण में निवेश पर भी विचार कर रहे हैंं। प्रतिभूतिकरण व रिण वसूली न्यायाधिकरण कानून में संशोधन के जरिए बैंकों के साथ दिवालिया संहिता को भी मजबूत करने पर विचार हो रहा है। ये सभी विधायी कदम हैं। उन्होंने कहा कि सामाजिक क्षेत्र, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भी काफी कुछ किए जाने की जरूरत है। इसके अलावा बुनियादी ढांचा, ग्रामीण क्षेत्र और सामाजिक सुरक्षा तीन महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं जहां भविष्य में निरंतर खर्च करना होगा।

सार्वजनिक क्षेत्र के दस बैंकों को मार्च तिमाही में 15,000 करोड़ रुपए से अधिक का घाटा होने के बीच वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बैंकों को अधिक वित्तीय समर्थन का वादा किया है। साथ ही चेताया है कि बैंकरों को परेशानी में डालने वाले चूककर्ताओं को चैन की नींद सोने की छूट नहीं दी जा सकती। जेटली ने इन सुझावों को भी खारिज कर दिया कि सार्वजनिक बैंकों का भारी घाटा ‘कंकाल निकलने’ के समान है।

उन्होंने कहा कि इन बैंकों की गैर निष्पादित आस्तियां (एनपीए) कुछ क्षेत्रों में व्यापार संबंधी घाटे के कारण है न कि घपलों के कारण। तेल की कीमतों में पिछले कुछ समय से दिख रही तेजी के बीच उन्होंने कहा कि भारत तेल मूल्यों के मौजूदा स्तर से निपट सकता है लेकिन इसके और महंगा होने से अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी और मुद्रास्फीति का दबाव बनेगा।

उन्होंने कहा कि उक्त घाटा फंसे कर्ज के लिए प्रावधान के कारण हुआ और एसबीआइ व पीएनबी सहित ज्यादातर बैंकों ने परिचालनगत स्तर पर अच्छा मुनाफा कमाया। उन्होंने कहा कि इन बैंकों की बैलेंस शीट देखें। पीएनबी ने परिचालन के आधार पर अच्छा मुनाफा कमाया। एसबीआइ को अच्छा मुनाफा रहा। केवल पूंजीगत प्रावधानों के कारण ही यह घाटे की तरह नजर आ रहा है।

उन्होंने कहा कि एनपीए या फंसा हुआ कर्ज हमेशा से ही रहा है। या तो आप इसे ढके रहेंगे या फिर इसे बैलेंस शीट में दिखाएंगे। मेरी राय में पारदर्शी बैलेंस शीट कारोबार करने का श्रेष्ठ तरीका है और बैंक अब वही कर रहे हैं। जेटली ने कहा कि सरकार बैंकों को पूरी तरह मजबूत करेगी। जहां भी जरूरत होगी, बैंकों का पूरी तरह समर्थन किया जाएगा। मैंने बजट में एक आंकड़ा दिया था लेकिन जरूरत पड़ने पर मैं इससे अधिक राशि पर विचार करने को तैयार हूं।

बैंकों को अधिकार संपन्न बनाने के लिए उठाए जाने वाले कदमों के बारे में उन्होंने कहा कि दिवाला कानून सशक्तीकरण का एक कदम है जबकि रिजर्व बैंक की रणनीतिक कर्ज पुनर्गठन प्रणाली भी है। जेटली सोमवार को सार्वजनिक बैंकों व वित्तीय संस्थानों के कामकाज की त्रैमासिक समीक्षा करेंगे।

बैंकों का कर्ज नहीं देने वालों को दी सख्त चेतावती