आजाद भारत की सबसे बड़ी रेल त्रासदी से देश अभी भी उभरा नहीं है, वो 2 जून की शाम ओडिशा के बालासोर के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रही। पहले कोरोमंडल एक्सप्रेस की मालगाड़ी से टक्कर, फिर यशंवतपुर एक्सप्रेस की कोरोमंडल की ही बिखरी हुई बोरियों से टक्कर। हुआ क्या- 275 लोगों की दर्दनाक मौत, 1000 से ज्यादा लोग घायल, कई की हालत गंभीर। किसी ने हाथ गंवाया, किसी का पैर गया तो किसी का सिर ही धड़ से अलग हो गया। सब जगह लाशें बिछ गईं और मातम पसर गया। जांच शुरू हो गई है, मुआवजे का ऐलान किया जा चुका है, राजनीति भी चरम पर चल रही है। लेकिन एक सवाल तो वहीं का वहीं रह गया- भारत में रेल हादसे होते क्यों हैं? आजादी के 75 साल हो गए हैं,लेकिन ये विनाशकारी दुर्घटनाएं रुकती क्यों नहीं? कहां चूक रहा है भारतीय रेल? इस समय किन चुनौतियों का सामना कर रहा है रेल? आने वाले 20 सालों का रोडमैप क्या रहना चाहिए?
अब इन सभी सवालों का जवाब सरकार दे सकती है, लेकिन वो आकलन कितना निष्पक्ष होगा, ये बताना मुश्किल है। ऐसे में हमने रेलवे से जुड़े ही एक अधिकारी से बात की। रिटायर हो चुके हैं, लेकिन कई सालों का अनुभव है, उस सच्चाई से परिचित हैं जो शायद सरकार बताना ना चाहे। ऐसे में उसी सच्चाई को जानने के लिए हमने रिटायर्ड Indian Railway Service of Engineers (IRSE) के अधिकारी आलोक कुमार वर्मा से बात की है। ओडिशा हादसे की वजह जानने का प्रयास रहा है, भारतीय रेल के सामने बड़ी चुनौतियों को समझने की कोशिश की है और आने वाले 20 सालों का क्या रोडमैप हो सकता है, इस पर भी मंथन किया गया है।
सवाल- ओडिशा हादसे का कारण क्या रहा- तकनीकी खराबी या फिर मानवीय भूल?
देखिए, प्रमुख रूप से तो हम ये मानवीय भूल ही मानेंगे। मान भी लीजिए अगर किसी मशीन में कोई खराबी आई हो, या डिजाइन में कुछ इशू रहा हो, तो भी अंत में इसके तार तो ‘ह्यूमन एरर’ से ही जुड़ते हैं। वैसे भी हमे हर घटना के हमेशा मानवीय पहलू को ज्यादा तवज्जो देनी चाहिए। उसे टेक्निकल फेलियर बता देना या मशीन में खराबी बताना गलत है। मशीन ठीक तरह से बनी है कि नहीं, वो चेक करना जरूरी रहता है। वो ठीक तरह से मेंटेन हो रही है या नहीं, कोई दिक्कत है तो ठीक किया जा रहा है या नहीं, वो देखना जरूरी रहता है। ऐसे में रेलवे तो पूरी तरह Human Intensive है। कितने लोग काम कर रहे हैं, ट्रैक मैन से लेकर स्टेशन मास्टर, गार्ड तक। ऐसे में अब किसी एक आदमी की गलती हो सकती है या एक से ज्यादा लोग भी जिम्मेदार हो सकते हैं। इस ओडिशा हादसे को लेकर तो मैं साफ कहना चाहूंगा कि जिम्मेदारी तय होना बहुत जरूरी है। ये सरकार इस समय काफी नरम दिखाई दे रही है।
मतलब कोई दूसरा देश हो तो वहां तो ऐसे हादसों के बाद जिम्मेदार लोगों को जेल भेज दिया जाता है, कोर्ट में उन पर आपराधिक मामले दर्ज होते हैं। इसी तरह भारत में भी बेमान, झूठे, लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ सख्त एक्शन होना बहुत जरूरी है।
सवाल- कोरोमंडल और यशवंतपुर में LHB कोच थे, इन्हें काफी सेफ माना जाता है, लेकिन इस हादसे के बाद कहा जाए कि जरूरत से ज्यादा भरोसा कर लिया?
नहीं, मेरी नजरों में ऐसा निष्कर्ष निकालना गलत है। वर्तमान स्थिति में LHB कोच ही बेस्ट हैं। समझने वाली बात ये है कि हमने 1998 के करीब इन LHB कोच को खरीदा था, ऐसे में ये कहा जा सकता है कि उनमें अपग्रेडेशन की जरूरत है। लेकिन वो काफी अच्छे हैं और अभी कई और सालों तक उनका इस्तेमाल किया जा सकता है। वो सुरक्षा के लिहाज से भी सही हैं, ऐसे में हादसे के बाद सीधे कोच को जिम्मेदार बता देना गलत है। मुझे इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि LHB मजबूत और सुरक्षित कोच हैं।
सवाल- आप कह रहे हैं कि LHB बेस्ट हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि 275 लोगों की मौत हुई है, इस पर क्या बोलेंगे?
हमे ये नहीं भूलना चाहिए कि इस हादसे में सबसे ज्यादा क्षति जनरल क्लास की बोगियों को हुई है, स्लीपर डिब्बों में भी काफी नुकसान हुआ है। ऐसे में बड़ा मुद्दा ओवरक्राउडिंग का है, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कोच आपको कुछ चोटों से बचा सकता है,लेकिन अगर इतनी भीड़ होगी, और फुल स्पीड में दो ट्रेनों की टक्कर होगी, तो ऐसी स्थिति में तो कोच भी क्या ही कर लेगा। ऐसे में हमे तो ओवरक्राउडिंग की चिंता करनी चाहिए। ये सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक है। यात्रियों का भी इसमें नुकसान ही है, वो पूरी टिकट का पैसा देते हैं, लेकिन कितनी खराब स्थिति में उन्हें ट्रैवल करना पड़ता है।
सवाल- आपने ये बहुत बड़ा मुद्दा उठाया है, आप कहना चाहते हैं कि इस हादसे में जो ज्यादा मौते हुईं, उसका कारण ये भीड़ है?
मैं ये बात पिछले कई सालों से कह रहा हूं। मैंने 2017 में इंडियन एक्सप्रेस में इसे लेकर एक आर्टिकल भी लिखा था। भारत की सबसे बड़ी चुनौती ही Over Congestion है। हमारे ट्रंक रूट्स बहुत ज्यादा इस्तेमाल हो रहे हैं, उन पर काफी आवाजाही है। मैं तो यहां तक कहूंगा कि हम एक तरह से अपने ट्रैक्स का शोषण कर रहे हैं, जितनी क्षमता नहीं है, उससे कई ज्यादा ट्रेनें चलाई जा रही हैं। जब आप जरूरत से ज्यादा ट्रेनें चलाएंगे, तब इंस्पेक्शन, डायग्नोस्टिक, मैंटेनेंस के काम पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाएगा। लेकिन होना इसका उलट चाहिए, जहां भी मेंटेनेंस का काम होना है, वहां ट्रैफिक ब्लॉक होना चाहिए, कम से कम 2 से 6 घंटों के लिए। लेकिन हो ये रहा है कि आवाजाही इतनी ज्यादा है कि वो टाइम ही नहीं मिल पा रहा है। हर चीज से समझौता हो रहा है, फिर चाहे इंस्पेक्शन हो या फिर मेंटेनेंस।
एक और उदाहरण देना चाहता हूं। इस Over Congestion की वजह से ही ट्रेनें इतनी लेट हो रही हैं, कई घंटों की देरी से चलती हैं। इस ओडिशा वाले केस में भी जो यशवंतपुर एक्सप्रेस थी, वो दो घंटे के करीब लेट चल रही थी, उससे हो क्या रहा है, ड्राइवर को ओवरटाइम करना पड़ रहा है। वैसे भी जब लगातार कई ट्रेनें ऐसे ही लेट चलती हैं तो स्टेशन मास्टर के लिए भी ये एक बड़ा Crisis Management बन जाता है। ऐसे में भारतीय रेलवे की जो सबसे बड़ी चुनौती है, जिसे हम हर मुश्किल का जड़ मान सकते हैं, जिस वजह से ट्रेनों की स्पीड कम है, वो Over Congestion ही है। पिछले 20 सालों से ये परेशानी चल रही है और बस साल दर साल बिगड़ती ही जा रही है।
सवाल- क्या सरकार प्राथमिकताओं को समझने में चूक रही है, मुद्दे पुराने होते ट्रैक हैं और स्पीड बढ़ाने की बात की जा रही है?
देखिए स्पीड और सुरक्षा एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। देखिए हमारी ट्रेनें दुनिया की सबसे धीमी ट्रेनों में मानी जा सकती हैं, लेकिन फिर भी इनकी सुरक्षा कैसी है, ये सभी जानते हैं। ऐसे में जब कभी स्पीड बढ़ाने की बात की जाती है, तब इसका मतलब ये होता है कि सुरक्षा भी साथ में उतनी ही बढ़ जाएगी। स्पीड तो आज के समय में एक बेसिक जरूरत बन गई है। हमे तो स्पीड भी बढ़ानी पड़ेगी और यात्रियों की सुरक्षा कैसे बढ़े, इस पर भी ध्यान देना होगा। इसी तरह ट्रेनों की क्षमता कैसे बढ़े, ये भी साथ में ही करना होगा, यानी कि तीनों काम साथ में होंगे।
सवाल- तो मान लें कि सरकार इस डिपार्टमेंट में फेल है क्योंकि वो तीनों काम साथ कहां कर पा रही है?
बिल्कुल सही कहा आपने, सरकार इस समय सबसे जरूरी चीज तो कर ही नहीं रही है, जब नई लाइन बनाने की जरूरत है, उस दिशा में कहां कोई कदम उठाया जा रहा है। यहीं पर तो सरकार चूक रही है। आप बुलेट ट्रेन बनाने पर जोर दे रहे हैं, लेकिन नई लाइन बिछाने में नहीं।
सवाल- क्या भारत को सही में बुलेट ट्रेन की जरूरत है या इस पर खर्च करना फिजूल है?
भारत में अभी बुलेट ट्रेन को स्वीकार नहीं किया जा सकता, मतलब आप देखिए कितनी महंगी है ये, उस पर कितना खर्चा करना पड़ रहा है। आप अगर बुलेट ट्रेन को Broad Gauge पर बनाते तो बात फिर भी समझ आती है, लेकिन आप उसे Standard Gauge पर बना रहे हैं, वो भी तब जब हमारा सारा रेल नेटवर्क तो Broad Gauge पर है। बुलेट ट्रेन के जो आंकड़े हैं, वो हैरान करने वाले हैं। हर एक किलोमीटर पर 350 करोड़ खर्च हो रहे हैं, ऐसे में इसकी जगह नई लाइन बिछानी चाहिए जिस पर 250 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेन चल सके, उस पर खर्चा 50 करोड़ तक रहेगा, यानी कि Standard Gauge की तुलना में काफी सस्ता।
इसलिए मैं मानता हूं कि वर्तमान में हम खराब योजनाओं से ग्रसित चल रहे हैं, बुलेट ट्रेन भी कोई अभी वाजिब प्राथमिकता नहीं है।
सवाल- बुलेट ट्रेन पर आपने सवाल उठाए, वंदे भारत को लेकर क्या कहेंगे, सरकार की सोच सही या गलत?
किसी चीज के लिए जरूरत से ज्यादा कर देना, इसका प्राइम एग्जांपल वंदे भारत है। ये बस प्रोपेगेंडा के लिए किया जा रहा है। देखिए समझने की बात ये है कि वंदे भारत से कोई ट्रेनों की स्पीड नहीं बढ़ गई है। सभी वंदे भारत को देखा जाए तो सिर्फ 10 से 15 मिनट का सफर कम हुआ होगा। ये कोई फास्ट ट्रेन नहीं मानी जा सकती है क्योंकि इसे आप पुराने ट्रैक पर ही चला रहे हैं। इसके ऊपर जिन ट्रैक पर इन्हें चलाया जा रहा है, उन पर वैसे भी कितनी आवाजाही रहती है। वंदे भारत कोई गलत योजना नहीं है, लेकिन हम इसे overdo कर रहे हैं। वैसे भी वंदे भारत चल किसके लिए रही है, जिनके पास पैसा है, वो इसमें ट्रैवल कर सकता है। लेकिन हमे तो हर किसी की जरूरत का ध्यान रखना है,लोअर मिडल क्लास से लेकर गरीब तक, सभी को सही रेल सुविधा मिले, ये सरकार का दायित्व है।
सवाल- रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के काम को आप कैसे देखते हैं, क्या रेलवे में वे कोई बदलाव ला पाए?
मैं रेल मंत्री को लेकर काफी क्रिटिकल हूं। मैंने उनकी कुछ प्रेजेंटेशन देखी हैं, वे जो दावे करते हैं, वो वास्तविकता से दूर के होते हैं। मतलब वे लगातार कह रहे हैं कि ये वर्ल्ड क्लास है, दुनिया चकित रह गई है। मैं मान सकता हूं कि वे काफी पढ़े लिखे होंगे, मेहनती भी होंगे, लेकिन जो दावे वो करते हैं, वो तथ्यों पर कम आधारित लगते हैं।
सवाल- चुनौतियां तो ठीक, समाधान क्या है, भारतीय रेलवे के लिए अगले 20 साल का क्या रोडमैप होना चाहिए?
सबसे पहले तो नेटवर्क कैपेसिटी हर कीमत पर बढ़ानी ही पड़ेगी। पुरानी लाइन्स को अपग्रेड किया जाए, नई लाइनों को बिछाया जाए। मैं मानता हूं कि भारतीय रेल को आने वाले सालों में कम से कम 10 हजार किलोमीटर की लाइन बिछानी चाहिए, वहीं 15 हजार किलोमीटर के करीब की लाइन को अपग्रेड करना चाहिए। सरकार को ये काम एक तय समय में सही योजना बनाकर करना चाहिए। ये सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता रहनी चाहिए। आपको समझना पड़ेगा कि यही मुश्किलों की जड़ है, अगर इसे ठीक कर दिया गया तो ट्रेनों की स्पीड बढ़ जाएगी, सुरक्षा बढ़ जाएगी और ओवरक्राउडिंग की जो समस्या अभी चल रही है, उससे भी निजात मिलेगा।