साल 2009 में डॉ. नानिकराज खानमूल मुखी पाकिस्तान से भारत आए। उस समय उनके पास में बहुत ही कम संपत्ति थी। लेकिन उनके दिल में केवल एक ही बड़ी उम्मीद थी और वो थी अपने परिवार को बेहतर जिंदगी देने की। गुरुवार को उनकी आवाज में खुशी साफ नजर आ रही थी। गुजरात हाई कोर्ट के जरिये उन्हें भारत की नागरिकता का सर्टिफिकेट दिया गया।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ. मुखी ने कहा, ‘ऐसा लग रहा है जैसे मैं जिस चीज के लिए संघर्ष कर रहा था, वो आखिरकार आ ही गई है। अब मुझे रोकने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। अब मैं आधार कार्ड बनवा सकता हूं और एक वास्तविक नागरिक की तरह अपना जीवन जी सकता हूं।’ इस समय मुखी अहमदाबाद के सरदार नगर में रह रहे हैं। वह 16 साल पहले विजिटर वीजा पर भारत आए थे। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान में सिंधी हिंदू अल्पसंख्यक होने के कारण उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता था।
मुखी ने कराची के लियाकत मेडिकल कॉलेज से की एमबीबीएस
डॉ. मुखी ने कराची के लियाकत मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की और कराची के ही जिन्ना मेडिकल कॉलेज से सोनोग्राफी में डिप्लोमा प्राप्त किया है। भारत पहुंचने के बाद उन्होंने लॉन्ग टर्म वीजा हासिल कर लिया। 20 अगस्त 2016 को उन्होंने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6 के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन पेश किया।
11 जुलाई, 2017 को डॉ. मुखी को अहमदाबाद के कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय से एक पत्र मिला। इसमें उनके आवेदन के रजिस्ट्रेशन की पुष्टि की गई थी। 30 मार्च 2021 को उन्होंने औपचारिक रूप से अपनी पाकिस्तानी नागरिकता छोड़ दी और अपना पासपोर्ट नई दिल्ली में मौजूद पाकिस्तानी दूतावास में जमा कर दिया।
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डॉक्टर की पत्नी को भी मिली नागरिकता
डॉ. मुखी की पत्नी भोजी बाई को 9 मार्च 2022 को नागरिकता दे दी गई। उनकी बेटी नंदिता दास को भी16 अक्टूबर 2024 को नागरिकता दी गई। उनके भाई भोजो और वाशु मुखी और बहन विजयंती मुखी को भी नागरिकता दी गई। हालांकि, उनका आवेदन काफी वक्त तक पेंडिंग ही रहा। उनके बेटे कबीर ने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के तहत नागरिकता के लिए आवेदन किया है। उनका सबसे छोटा बेटा रंजीत अभी भी पाकिस्तानी नागरिक है। कई बार जांच-पड़ताल करने और डीएम ऑफिस के बार-बार चक्कर लगाने के बाद डॉ. मुखी ने इस साल की शुरुआत में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 226 के साथ-साथ नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6बी के तहत गुजरात हाई कोर्ट का रुख किया।
डॉ. मुखी ने पहले इंडियन एक्सप्रेस को बताया था , ‘यह नौकरशाही का विरोधाभास है। मैं अब पाकिस्तानी नहीं हूं और न ही भारतीय। इसलिए, मैं व्यवस्था की हर दरार से गुजरता हूं।’ इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए डॉ. मुखी की ओर से वकील रत्ना वोरा ने कहा, ‘नागरिकता के लिए आवेदन 2016 से लंबित था। याचिकाकर्ता ने 2021 में एक और आवेदन दायर किया, जिसे अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद, 2024 में उन्होंने फिर से आवेदन किया और मामला लंबित रहा क्योंकि उन्होंने कहा कि उन्हें इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट नहीं मिली है। हमें गुरुवार को सर्टिफिकेट मिला। इसका मतलब है कि उनका आवेदन मंजूर कर लिया गया और 5 अगस्त से नागरिकता दी गई।’ ऐसे पाकिस्तानी नागरिकों का क्या होगा जिन्होंने डेडलाइन बीत जाने के बाद भी भारत नहीं छोड़ा है?