उत्तर प्रदेश के बागपत की जिला कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसला सुनाया है। बदरुद्दीन शाह की मजार और लाक्षागृह विवाद में कोर्ट ने करीब 100 बीघा जमीन हिंदू पक्ष को सौंप दी है। 53 साल बाद इस मामले में फैसला आया है। मुस्लिम पक्ष की ओर से इस मामले में कहा गया कि बरनावा में प्राचीन टीले पर शेख बदरूद्दीन की दरगाह और कब्रिस्तान है। वहीं विवादित 108 बीघे जमीन पर पांडव कालीन एक सुरंग है। दावा किया जाता है कि इसी सुरंग के जरिए पांडव लाक्षागृह से बचकर भागे थे। एएसआई की देखरेख में यहां 1952 में खुदाई भी की गई थी इसमें कई दुर्लभ अवशेष भी मिले थे।
यह पहला धार्मिक स्थल नहीं है जिसे लेकर मामला कोर्ट तक पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भले ही अयोध्या से जुड़ा विवाद खत्म हो चुका है, लेकिन मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा विवाद कोर्ट में चल रहा है। इसके अलावा अटाला मस्जिद, भोजशाला विवाद को लेकर भी मामला कोर्ट तक पहुंचा है। आइये जानते हैं कि देश में किन धार्मिक स्थालों को लेकर विवाद है।
क्या है वाराणसी का ज्ञानवापी विवाद?
वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर विवाद काफी पुराना है। 1991 में काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास, संस्कृत प्रोफेसर डॉ. रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर की। इसके बाद राखी सिंह समेत अन्य महिलाओं ने श्रृंगार गौरी की पूजा को लेकर वाद दायक किया। इसकी याचिका पर ज्ञानवापी का सर्वे कराया गया जिसमें कई हिंदू चिन्ह मिले। सर्वे में शिवलिंग जैसी एक आकृति भी मिली। याचिका में दावा किया कि काशी विश्वनाथ का जो मूल मंदिर था, उसे 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनाया था। 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़ दिया और इसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी। इस मस्जिद को बनाने में मंदिर के अवशेषों का ही इस्तेमाल किया गया। हिंदू पक्ष की मांग है कि यहां से ज्ञानवापी मस्जिद को हटाया जाए और पूरी जमीन हिंदुओं को सौंपी जाए। पिछले दिनों वाराणसी कोर्ट के आदेश के बाद ज्ञानवापी में व्यास जी के तहखाने में पूजा शुरू हो गई है।
मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद
मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर विवाद दशकों पुराना है। ये विवाद कुल 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक से जुड़ा है। दरअसल 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ समझौता किया था। जब यह समझौता किया गया तो इसमें 13.7 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों बनने की बात हुई थी। इसमें श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास 10.9 एकड़ जमीन का मालिकाना हक है जबकि ढाई एकड़ जमीन का मालिकाना हक शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। हिंदू पक्ष इस मसझौते को ही गलत मानता है। हिंदू पक्ष की ओर से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने और ये जमीन भी श्रीकृष्ण जन्मस्थान को देने की मांग की गई है।
कुतुबमीनार को विष्णु स्तंभ करने की मांग
दिल्ली में कुतुबमीनार का नाम बदलकर विष्णु स्तंभ रखने की मांग की गई है। यह मामला कोर्ट तक पहुंचा है। दरअसल यहां दो मस्जिद हैं- कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद और मुगल मस्जिद। हिंदू पक्ष ने कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद में देवी-देवताओं की मूर्तियां होने का दावा किया गया है और यहां पूजा की मांग की गई है। हिंदू पक्ष की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 27 मंदिरों को ध्वस्त कर कुव्वत उल इस्लाम को कुतुब मीनार परिसर के अंदर स्थापित किया गया। हिंदू पक्ष की तरफ से ये दावा भी किया गया है कि कुतुब मीनार परिसर में हिंदू देवताओं और श्री गणेश, विष्णु और यक्ष समेत देवताओं की स्पष्ट तस्वीरें और मंदिर के कुओं के साथ कलश और पवित्र कमल जैसे कई प्रतीक हैं।
ताजमहल या तेजोमहालय?
आगरा में विश्व प्रसिद्ध ताजमहल को लेकर भी पिछले काफी समय से विवाद चला आ रहा है। हिंदू पक्ष इसे शिवमंदिर तो कभी तेजोमहालय बताता है। ताजमहल के नीचे मौजूद कमरों में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां रखी होने का दावा किया गया है। इसे लेकर हाईकोर्ट में याचिका भी दाखिल की गई लेकिन कोर्ट ने कमरे खोलने का आदेश देने से इनकार कर दिया। दरअसल ताजमहल के जिन 22 कमरों को लेकर याचिका दाखिल की गई है वह दशकों से बंद हैं। इतिहासविदों का कहना है कि ताजमहल में मुख्य मकबरे और चमेली फर्श के नीचे 22 कमरे बने हैं, जिन्हें बंद कर दिया गया है। यह कमरे मुगल काल से ही बंद हैं।
मध्य प्रदेश के धार में भोजशाला विवाद
मध्य प्रदेश के धार में हिंदुओं के मंदिर पर मस्जिद बनाने का मामला विवाद में है। दरअसल हिंदू भोजशाला को वाग्देवी यानी सरस्वती का मंदिर मानते हैं, जबकि मुस्लिम इस परिसर को कमाल मौला मस्जिद बताते हैं। इसी को लेकर दोनों के बीच लंबे वक्त से विवाद चला आ रहा है। भोजशाला का नाम राजा भोज के नाम पर रखा गया है। करीब 800 साल पुरानी इस भोजशाला को लेकर हिंदू-मुस्लिमों के बीच मतभेद हैं। परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईस्वी तक शासन किया था। 1034 में उन्होंने सरस्वती सदन की स्थापना की थी। इतिहासकारों के मुताबिक साल 1875 में खुदाई के दौरान यह प्रतिमा यहां मिली थी। 1305 से 1401 के बीच अलाउद्दीन खिलजी और दिलावर खां गौरी की सेनाओं के साथ माहकदेव और गोगादेव की लड़ाई हुई। 1456 में महमूद खिलजी ने मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया। यह मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा है।
जौनपुर की अटाला मस्जिद पर विवाद
जौनपुर में अटाला मस्जिद को लेकर भी पुराना विवाद है। इतिहासकारों का दावा है कि यहां अटल देवी के मंदिर को तोड़कर इस मस्जिद का निर्माण किया गया था। इसका निर्माण कन्नौज के राजा विजयचंद्र के जरिए हुआ था और इसकी देखरेख जफराबाद के गहरवार लोग किया करते थे। यह कहा जाता है कि इस मंदिर को गिरा देने का हुक्म फिरोज शाह ने दिया था परंतु हिंदुओं ने बहादुरी से इसका विरोध किया, जिसके कारण समझौता होने पर उसे उसी प्रकार रहने दिया गया था। 1364 ई. में ख्वाजा कमाल खां ने इसे मस्जिद का रूप देना प्रारंभ किया और 1408 में इसे इब्राहिम शाह ने पूरा किया।