कोयले का इस्तेमाल खत्म करना हाशिए की आबादी के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा कर रहा है। यह बुधवार (26 जून) को नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया (NFI) की ओर से पेश की गई एक ताज़ा रिपोर्ट बताती है। NFI ने यह रिपोर्ट झारखंड,ओडिशा और छत्तीसगढ़ के छह जिलों का दौरा कर तैयार की है। जहां भारत के 70 प्रतिशत कोयले का उत्पादन होता है।
अध्ययन के दौरान यह पाया गया कि इन राज्यों के 1209 परिवारों में से 41.5 फीसदी परिवार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), 23 फीसदी अनुसूचित जनजाति (एसटी) और 17 फीसदी अनुसूचित जाति (एससी) से संबंधित हैं।जबकि केवल 15.5 फीसदी परिवार ही सामान्य श्रेणी से आते हैं।
यह सर्वे रामगढ़, रायगढ़ और जाजपुर, कोरिया, धनबाद और अंगुल जिलों में किया गया। जहां के उद्योग और अन्य आर्थिक गतिविधियां कोयले पर निर्भर हैं। ओडिशा का अंगुल भारत का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक जिला है, जहां बड़े पैमाने पर लोगों का जीवन-यापन इसपर निर्भर है।
हाशिए की आबादी के लिए बड़ी चुनौती क्यों?
रिपोर्ट बताती है कि इन इलाकों में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग को बेहतर शिक्षा तक नहीं मिल सकी है। कुछ लोग सिर्फ प्राथमिक शिक्षा हासिल कर सके हैं और कुछ साक्षर भी नहीं हैं। NFI की यह रिपोर्ट जिसका शीर्षक-एट द क्रॉसरोड्स: मार्जिनलाइज्ड कम्युनिटीज एंड द जस्ट ट्रांजिशन डिलेमा है भारत में कोल ट्रांजीशन के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पर एनएफआई द्वारा 2021 में किए गए अध्ययन की अगली कड़ी है।
अब सवाल यह है कि कोयले का कम होता उपयोग क्यों इन समुदायों के लिए चुनौती है? जवाब बहुत आसान है कि इस कारण के रहते यहां रोजगार खत्म हो जाएगा और इन लोगों के पास बहुत कम विकल्प बचेंगे। रिपोर्ट बताती है कि कोयले पर निर्भर क्षेत्रों में बड़ी संख्या में नौकरियां खत्म हो रही हैं और आर्थिक मंदी आ रही है। इसका असर न केवल कोयला खनिकों और मजदूरों पर बल्कि व्यापक स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा।
रिपोर्ट बनाने में शामिल लोग क्या कहते हैं?
इस अध्ययन की सह-लेखिका और एनएफआई की रिसर्च एसोसिएट पूजा गुप्ता ने कहा, “अध्ययन में शामिल विभिन्न जिलों में सामाजिक और आर्थिक असमानताएं स्पष्ट रूप से सामने आईं। इन जिलों में लोगों के आय के स्तर अलग-अलग हैं और उन्हें अनियमित मजदूरी मिलती है।
उन्होंने आगे कहा, “पूरी तरह से कोयला पर निर्भर धनबाद (झारखंड) और कोरिया (छत्तीसगढ़) में लोगों की आय अंगुल (ओडिशा) जैसे ज्यादा विविधता वाले औद्योगिक जिलों की तुलना में कम है.” उन्होंने यह भी बताया कि सर्वेक्षण और क्षेत्र भ्रमण के दौरान यह पाया गया कि बुनियादी कल्याण योजनाओं तक लोगों की पहुंच बहुत कम थी, जिससे ये समुदाय और ज्यादा असुरक्षित हो जाते हैं. यह भी पाया गया कि इन क्षेत्रों में बड़ी नीतिगत और संस्थागत चुनौतियां हैं, जो प्रशासनिक लापरवाही, सेवाओं की अपर्याप्त उपलब्धता और अपूर्ण संरचनाओं के रूप में सामने आता है. उन्होंने कहा, “स्पष्ट योजना के बिना, बंद होने वाले उद्योगों में काम करने वाले श्रमिक अचानक बेरोजगार हो सकते हैं और उन्हें पर्याप्त सहयोग या रोजगार के वैकल्पिक अवसर भी उपलब्ध नहीं होंगे। ऐसे हालात में प्रभावित समुदायों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।”
एनएफआई के कार्यकारी निदेशक बिराज पटनायक ने कहा, “अध्ययन से जानकारी मिली है कि कोयला-निर्भर क्षेत्रों में शिक्षा और आजीविका के अवसरों तक पहुँच में जाति-आधारित गैर-बराबरी मौजूद है। हाशिए के समुदायों पर कोल ट्रांजीशन के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों से निपटने के लिए समुदाय-विशिष्ट नीतियों और मजबूत संस्थागत तंत्र की तत्काल आवश्यकता है।”
पटनायक ने यह भी उम्मीद जताई कि इस रिपोर्ट के आधार पर न्यायपूर्ण कोल ट्रांजीशन सुनिश्चित करने की दिशा में सार्थक चर्चाएं होगीं और साथ ही यह पहलकदमी के लिए प्रेरित भी करेगी, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि कमज़ोर आबादी स्वच्छ और टिकाऊ भविष्य की ओर बढ़ने के दौरान पीछे न छूट जाए।