जेडीयू ने बुधवार को जब बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अपने 57 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की तो इससे राजनीतिक विश्लेषकों को काफी हैरानी हुई। हैरान होने की वजह यह थी कि जेडीयू की इस लिस्ट में मुस्लिम समुदाय से कोई भी उम्मीदवार नहीं था। जेडीयू ने अपनी पहली लिस्ट में कुर्मी-कुशवाहा (अन्य पिछड़ा वर्ग) और अति पिछड़ा वर्ग समुदाय के नेताओं को ज्यादा मौके देने की कोशिश की है।

एनडीए में हुए सीट बंटवारे के तहत जेडीयू को कुल 101 सीटों पर चुनाव लड़ना है।

पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो जेडीयू ने मुस्लिम समुदाय के 11 नेताओं को टिकट दिया था लेकिन इस बार पहली लिस्ट के हिसाब से इन 11 में से तीन सीटों- दरभंगा ग्रामीण, कांटी और डुमराव पर गैर मुस्लिम नेताओं को उम्मीदवार बनाया गया है।

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पिछले चुनाव में कितने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे?

2015 में जब जेडीयू ने आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था तब मुस्लिम समुदाय के सात नेताओं को उसने टिकट दिया था। 2005 में उसने 9 और 2010 में 14 नेताओं को उम्मीदवार बनाया था। दोनों ही बार में तब जेडीयू ने एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था।

जेडीयू की पहली लिस्ट में मुस्लिम समुदाय के किसी नेता को टिकट न मिलने की एक वजह यह मानी जा रही है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को जीत नहीं मिली थी।

पिछले विधानसभा चुनाव में कांटी सीट पर जेडीयू के उम्मीदवार मोहम्मद जमाल को सिर्फ 13% और डुमराव में अंजुम आरा को 26.8% वोट मिले थे। दरभंगा ग्रामीण सीट पर जेडीयू के फराज फातमी को नजदीकी मुकाबले में हार मिली थी।

2024 में मुजाहिद आलम को बनाया था उम्मीदवार

2024 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने किशनगंज से मुजाहिद आलम को टिकट दिया था लेकिन उन्हें कांग्रेस के मोहम्मद जावेद ने लगभग 60 हजार वोटों से हरा दिया था।

अपनी पहली लिस्ट में जेडीयू ने कुर्मी-कुशवाहा (लव-कुश) और अति पिछड़ा वर्ग पर ज्यादा ध्यान दिया है। लगभग 20 उम्मीदवार कुर्मी-कुशवाहा समुदाय से और नौ उम्मीदवार अति पिछड़ी जाति से हैं। आरक्षित सीटों के लिए अनुसूचित जाति के 12 उम्मीदवारों को भी पार्टी ने टिकट दिया है। जेडीयू ने चार महिलाओं को भी उम्मीदवार बनाया है।

यहां देखिए बीजेपी उम्मीदवारों की पूरी सूची