रंग और उमंग के त्यौहार होली के दौरान अकेले उत्तर प्रदेश में ही दो लाख किलोग्राम से ज्यादा गुलाल खर्च होता है, जो देश में इस्तेमाल होने वाली कुल खपत के एक तिहाई हिस्से से ज्यादा है। उद्योग मंडल ‘एसोचैम’ के एक ताजा अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है।
एसोचैम के सर्वे के मुताबिक पूरे हिंदुस्तान में होली पर पांच लाख किलोग्राम से ज्यादा गुलाल का इस्तेमाल होता है, जिसे देश भर में स्थित पांच हजार से अधिक निर्माण इकाइयों में तैयार किया जाता है। इसमें से अकेले उत्तर प्रदेश में ही दो लाख किलोग्राम से ज्यादा गुलाल इस्तेमाल होता है। हालांकि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और कई अन्य राज्यों में रंग उद्योग पर ‘ड्रैगन’ का साया मंडराने से इस उद्योग के बुरे दिन चल रहे हैं।
एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डीएस रावत ने बताया कि स्थानीय स्तर पर बने रंग और पिचकारियों के दाम चीन में निर्मित इन उत्पादों से करीब 55 फीसद ज्यादा हैं। इसी वजह से लोग चीनी उत्पादों को हाथों हाथ ले रहे हैं। उन्होंने बताया कि सर्वे के मुताबिक स्थानीय बाजारों में चीन निर्मित पिचकारियों और सूखे और गीले रंगों की भरमार व उन्हें हाथों हाथ लिए जाने से भारतीय रंग व पिचकारी उद्योग को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
‘मेक इन इंडिया’ की परिकल्पना साकार करने में जुटी केंद्र सरकार द्वारा स्थानीय रंग उद्योग को बढ़ावा दिए जाने के बावजूद चीनी उत्पादों के 75 फीसद बाजार पर कब्जे से घरेलू रंग और पिचकारी कारोबारियों को भारी घाटा हो रहा है। रावत ने बताया कि एसोचैम के सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन द्वारा कराए गए इस अध्ययन के लिए अमदाबाद, इलाहाबाद, अलीगढ़, लखनऊ, कानपुर, मथुरा, मेरठ, वाराणसी, बंगलूरू, दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, हाथरस, इंदौर, जयपुर, मुंबई और राजकोट में 250 से ज्यादा उत्पादकों, विक्रेताओं, आपूर्तिकर्ताओं से बातचीत कर उनकी प्रतिक्रिया ली गई थी।