बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पुराने साथी जीतनराम मांझी को फिर से साथ लाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। पिछले दिनों राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की ओर से दी गई इफ्तार पार्टी में दोनों साथ दिखे थे। पिछले साल विधानसभा चुनावों के बाद मांझी और नीतीश पहली बार एक साथ नजर आए। सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार ने मांझी के लिए दरवाजे पूरी तरह से बंद कर दिए थे। लेकिन अब वे मांझी को एनडीए से अलग करने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। इसके जरिए वे सांकेतिक रूप से एनडीए को झटका देना चाहते हैं।
जेडीयू सूत्र ने बताया, ”यह सच है कि सीएम का दिल बदला है और उन्हें मांझी के प्रति अपनी कटुता को खत्म कर दिया है। राजनीति में हम विकल्प ढूंढ़ते रहते हैं। हाल ही में मांझी ने नीतीश कुमार की तारीफ की जिससे पता चलता है कि वे भाजपा से अलग कुछ सोच रहे हैं।” सूत्रों के अनुसार जेडीयू के बड़े नेता मांझी के साथ बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने बताया, ”यूपी चुनावों से पहले भाजपा को झटका देने के लिए हम कुछ भी करेंगे। हम यूपी में चुनाव लड़ेंगे और भाजपा का सामना करने के लिए हमारी पार्टी व गठबंधन का आधार बढ़ाने पर काम कर रहे हैं। मांझी बिहार से अहम दलित चेहरा हैं और यदि हमारे साथ आते हैं तो बड़ी राजनीति कर सकते हैं।” जेडीयू लालू को भी पीछे छोड़ना चाहती है। लालू भी मांझी के साथ बातचीत कर रहे हैं।
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मांझी ने हाल ही में कहा था कि वे आज जो कुछ भी हैं वह सब नीतीश कुमार के कारण हैं। सूत्रों का कहना है कि मांझी उम्मीद कर रहे हैं भाजपा उन्हें राज्यपाल बना दे ताकि वे एनडीए में बने रहें। मांझी की पार्टी हम के प्रवक्ता दानिश रिजवान ने बताया, ”पिछले विधानसभा चुनाव में हम अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए क्योंकि एनडीए का प्रदर्शन भी खराब था। लेकिन रामविलास पासवान के बाद मांझी प्रमुख दलित नेता हैं। हम एनडीए का हिस्सा हैं। हम लोगों को अटकलें लगाने से नहीं रोक सकते हैं।” हालांकि उन्होंने कहा कि मांझी का अगला कदम क्या होगा इसकी उन्हें जानकारी नहीं। हम के एक अन्य नेता ने कहा कि नीतीश और लालू के पास मांझी के लिए ज्यादा कुछ देने को नहीं है। जबकि भाजपा उनके कद को देखते हुए प्रस्ताव दे सकती है।
इसी बीच एनडीए की एक और सहयोगी राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी में अंदरूनी विद्रोह के चलते महागठबंधन को एनडीए पर निशाना साधने का मौका मिल गया है। पार्टी प्रमुख और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने हाल ही में अपनी राज्य इकाई को बर्खास्त कर दिया था। साथ ही सांसद अरुण कुमार को भी राज्य अध्यक्ष के पद से डिसमिस कर दिया था।