पटना हाईकोर्ट ने जाति आधारित जनगणना पर लगी रोक को हटा दिया है। यह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए एक अच्छी खबर है और कोर्ट के आदेश के बाद उनकी सरकार इसे लेकर एक्टिव मोड में भी आ गई है। सभी जिला अधिकारियों को फिर से तैयार हो जाने के लिए पत्र भी भेजे जा चुके हैं। जनगणना को रोकने के लिए दाखिल याचिका को पटना हाई कोर्ट ने मंगलवार को खारिज कर दिया था। हालांकि याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अब वह इस मामले को फिर से सुप्रीम कोर्ट के सामने रखेंगे। सवाल यह है कि आखिर नीतीश कुमार और लालू यादव की पार्टी क्यों जाति आधारित जनगणना की पक्षधर हैं?
नीतीश कुमार का प्लान क्या है?
बिहार में जातिगत जनगणना जनवरी में शुरू हो गई थी लेकिन पटना हाईकोर्ट ने 4 मई को सर्वे पर रोक लगा दी थी और 7 जुलाई को मामले की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 1 अगस्त को अपने 101 पेज के आदेश में मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की खंडपीठ ने सर्वे की अनुमति देते हुए कहा कि इसे पूरा किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की कार्रवाई को पूरी तरह से कानूनी बताते हुए कहा कि यह न्याय देने का एक बेहतर कदम है। अदालत ने कहा कि सर्वे में जानकारी देने के लिए कोई जबरदस्ती नहीं और न ही यह आम लोगों के गोपनीयता और अधिकारों का उल्लंघन करता है।
गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने जाति आधारित जनगणना को अपनी वेल्फेयर स्कीम से यह तर्क देते हुए जोड़ा है कि जाति यह सबसे हाशिए पर रहने वाले वर्गों की पहचान करने में मदद करेगी, जिससे सरकार उनके लिए रोजगार पैदा कर सकेगी। माना जा रहा है कि सर्वे का करीब 80 फीसदी काम पूरा हो चुका है। संभावना है कि नीतीश सरकार अगस्त के अंत तक यह कवायद पूरी कर लेगी।
भाजपा के खिलाफ इस सर्वे को कैसे मददगार बनाएंगे नीतीश
अगर पटना हाईकोर्ट के इस फैसले को इस नज़र से देखा जाए कि अगले साल 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं तो यह फैसला नीतीश कुमार और उनके सहयोगियों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। ऐसे कैसे, तो इसका सीधा सा जवाब यह है कि भाजपा फिलहाल पिछड़े वर्ग को हिन्दुत्व के ज़रिए एक करने के प्रयास में है और विपक्ष जातिगत संख्या के आधार पर आरक्षण की मांग कर दलितों और पिछड़ों के बड़े वोट को अपने पक्ष में लाना चाहता है।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं, “बीजेपी नहीं चाहती है कि जातिगत जनगणना हो, उनको पता है कि जो पिछड़े हैं उनकी जनसंख्या ज़्यादा होगी. बीजेपी को लगता है कि इससे अगड़ी जाति का उसका वोट बैंक नाराज़ हो जाएगा.”
जाति आधारित जनगणना के नतीजे 2024 के आम चुनाव से ठीक आठ महीने पहले अगस्त के अंत या सितंबर तक सार्वजनिक होने की संभावना है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इसका सीधा असर बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर होगा।
जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) जिन्हें बिहार के हाशिए पर रहने वाले समुदायों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं पाया गया है, अब सवाल इससे होने वाले फायदे से जुड़ा है, कि इन्हें हासिल क्या होने वाला है?
जवाब है कि सर्वे से उनकी जाति-पहचान की राजनीति को मजबूत करने में मदद मिलेगी, जबकि भाजपा जैसी पार्टी जिस पर अक्सर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और अति-राष्ट्रवाद का आरोप लगाया जाता है और जो हिंदुओं की एकरूपता से चुनावी ताकत प्राप्त करती है कमजोर हो सकती है। इसका मक़सद अलग-अलग जातियों की संख्या के आधार पर उन्हें सरकारी नौकरी में आरक्षण देना और ज़रूरतमंदों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाना बताया जाता है। फिलहाल बिहार में नीतीश कुमार की सरकार है और इससे उन्हें चुनावी फायदा हासिल हो सकता है।