बिहार विधानसभा में गुरुवार (27 फरवरी) को 2021 जातीय जनगणना का प्रस्ताव पारित हो गया। यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का तीन दिन में दूसरा मास्टरस्ट्रोक है। बिहार विधानसभा ने 2021 में जाति आधारित जनगणना कराने के पक्ष में बृहस्पतिवार को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया। विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने दोपहर के भोजन अवकाश से पहले के सत्र में इसकी घोषणा की। चौधरी ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस संबंध में एक संकल्प पारित कराने के लिए मंगलवार को सदन में प्रस्ताव दिया था।
इससे पहले बीते मंगलवार को बजट सत्र के दूसरे दिन विधानसभा में एनआरसी नहीं लागू करने और एनपीआर 2010 के प्रारूप अनुसार करने का प्रस्ताव पारित किया गया था। वह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हो गया था। और इसी के साथ बिहार पहला एनडीए शासित राज्य बना, जहां एनआरसी के खिलाफ प्रस्वात पारित हुआ।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि एनआरसी और जातीय जनगणना के सहारे नीतीश कुमार ने विरोधियों का मुंह चुप करने और अपना सामाजिक जनाधार बढ़ाने की कोशिश में हैं। एनआरसी के सहारे वे जहां अल्पसंख्यक समुदाय के वोटरों को साधने की पहल कर रहे हैं, वहीं जातीय जनगणना के सहारे पिछड़े, अतिपिछड़े, दलितों और महादलितों को।
बिहार में राजनीतिक पार्टियां लंबे समय से जातीय जनगणना की मांग कर रही थी और यह मुद्दा राजनीति का एक अस्त्र बना हुआ था। लालू प्रसाद यादव जातीय जनगणना को लेकर कई बार सवाल उठा चुके हैं। वहीं नीतीश कुमार भी कई मौको पर यह बात कह चुके हैं कि जातीय आधारित जनगणना की जरूरत महसूस हो रही है।
केंद्र सरकार द्वारा सीएए कानून पारित किए जाने के बाद अल्पसंख्यकों के बीच बिहार में विपक्षी पार्टियां एनआरसी का भय दिखा सरकार पर निशाना साध रही थी। नीतीश कुमार ने इस राजनीतिक मुद्दे पर भी विराम लगा दिया।
राजनीतिक जानकार यह भी कहते हैं कि इस साल राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में इन फैसलों का असर देखने को मिलेगा। हालांकि, एनआरसी नहीं लागू करने के लिए सर्वसम्मति बनाने को लेकर नीतीश कुमार की तेजस्वी यादव से सदन में मुलाकात के बाद चर्चाओं का बाजार भी गर्म है।