NFHS डेटा (नेशनल फ़ैमिली ऐंड हेल्थ सर्वे) के मुताबिक पहली बार देश में औरतों की जनसंख्या पुरुषों से ज्यादा दिखाई दे रही है। आंकड़ों के मुताबिक अब 1000 पुरुषों पर 1020 औरतें हैं। सर्वे के पांचवें दौर में औरतों की जनसंख्या पुरुषों से ज्यादा रिकॉर्ड की गई। हालांकि, इस सुधार के पीछे दो तर्क बताए जा रहे हैं। अब भ्रूण हत्या कम हो रही है तो दूसरी तरफ पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा समय तक जिंदा रहती हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, लिंगानुपात में सुधार की सबसे बड़ी वजह पुरुषों की तुलना में महिलाओं की उम्र लंबी होना है। महिलाएं पुरुषों की तुलना में कुछ हद तक ज्यादा जीती हैं। एक अध्ययन में यह कहा गया है कि महिलाओं की प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कमजोर होती है। उनकी लंबी आयु की यही वजह होती है। प्रतिरोधक क्षमता शरीर की किसी संक्रमण और कैंसर से रक्षा करती है। अगर यह ठीक से काम न करे तो बीमारियों की वजह भी बनती है। लेकिन भारत के परिपेक्ष्य में माना जा रहा है कि ये चीज महिलाओं के लिए वरदान बन रही है। यहां उनकी आयु लंबी देखी जा रही है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के डेटा के मुताबिक– पहली बार देश में प्रजनन दर 2 पर आ गई है। 2015-16 में यह 2.2 थी। खास बात ये है कि 2.1 की प्रजनन दर को रिप्लेसमेंट मार्क माना जाता है। यानी 2.1 की प्रजनन दर पर आबादी की वृद्धि स्थिर बनी रहती है। इससे नीचे होने पर आबादी की वृद्धि दर धीमी होने का संकेत है। NFHS के पांचवें सर्वे में साल 2019-20 के दौरान हुए सर्वेक्षण के डेटा को को जुटाने के लिए लगभग 6.1 लाख घरों का सर्वेक्षण किया गया है। ध्यान रहे कि पहला राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 1992-93 में किया गया था।
सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, जन्म के समय का सेक्स रेशियो अभी भी 929 है। यानि अभी भी 1000 लड़कों पर 929 लड़कियां हैं। इससे ये भी पता चलता है कि आज भी कई परिवार लड़कों को प्राथमिकता देते हैं और चाहते हैं। सर्वे में 14 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों (अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली, ओड़िशा, पुड्डूचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) को शामिल किया गया था। ये सर्वे 2019-2021 के बीच किया गया।
स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय का दावा है कि सेक्स रेशियो और जन्म के समय के सेक्स रेशियो में सुधार एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि 2005-06 में हुए NFHS-3 सर्वे में औरतों और पुरुषों की जनसंख्या बराबर थी। यानि उस दौरान 1000 पुरुषों पर 1000 औरतें थीं। लेकिन 2015-16 में हुए NFHS-4 सर्वे में ये संख्या घटकर 991 तक आ गई। सर्वे के आंकड़े जनगणना के डेटा से मेल नहीं खाते। फिलहाल महिलाओं की तादाद पुरुषों की तुलना में कितनी बेहतर हुई है ये बात जनगणना से साफ हो सकती है।
