What the eyewitnesses said: शनिवार रात की वो काली रात देश की राजधानी के नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ऐसी दर्दनाक घटना घटी, जिसे कोई भी नहीं भूल पाएगा। एक तरफ उमंग और उम्मीदों से भरे लोग, तो दूसरी तरफ उस घड़ी में किसी का भी जीवन खत्म हो गया। प्रयागराज महाकुंभ मेले में गंगा स्नान के लिए जाने वालों की भीड़, जो पहले से ही अपने दिल में बहुत सारी आशाएं और इच्छाएं लेकर यात्रा पर निकले थे, अचानक उस स्टेशन पर ऐसी भगदड़ में फंस गई, कि किसी का हाल-चाल नहीं पूछा गया। घटना में जो लोग किसी तरह बचने में सफल रहे, उन्होंने बताया कि हादसे के दौरान लोग सीढ़ियों से गिर रहे थे, प्लेटफॉर्म पर एक दूसरे से कुचल गए, हर कोई भाग रहा था। हादसा भयावह था।

ऐसी भीड़ कभी नहीं देखी, हादसे ने सबकुछ पलट कर रख दिया

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ऐसी स्थिति बनने की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। आमतौर पर इसे देश के सबसे सुरक्षित स्टेशनों में से एक माना जाता है, जहां पर अत्याधुनिक सुरक्षा व्यवस्थाएं होती हैं। लेकिन रात के इस हादसे ने सब कुछ पलट कर रख दिया। प्लेटफॉर्म पर लोग ज्यों-ज्यों इकट्ठा होते गए, स्थिति उतनी ही भयावह होती चली गई। हर किसी की आंखों में बस एक ही डर था, कहीं वह भी इस भीड़ में फंस न जाए, लेकिन किसी को नहीं पता था कि ये भीड़ कब और कैसे नियंत्रण से बाहर हो जाएगी।

जो लोग बच गए, उनका तो जैसे दिल बैठ सा गया था। एक गवाह ने बताया, “भीड़ सीमा से परे हो चुकी थी, लोग फुटओवर पुल पर एक-दूसरे के ऊपर चढ़े थे। इस तरह की भीड़ तो त्योहारों के समय भी नहीं देखी थी, और अब हालत ये हो गई थी कि प्रशासन भी उसे नियंत्रित नहीं कर पा रहा था।”

“मेरी बहन भीड़ में फंस गई, आधे घंटे बाद मिली, लेकिन तब तक वह हमें छोड़ चुकी थी”

एलएनजेपी अस्पताल में भर्ती एक घायल का भाई संजय, जो खुद इस दर्दनाक हादसे का गवाह था, आंखों में आंसू लिए मीडिया वालों को बताया, “हम 12 लोग साथ में महाकुंभ जा रहे थे, लेकिन हम प्लेटफॉर्म तक पहुंचे भी नहीं थे। हम तो सीढ़ियों पर ही थे, और फिर क्या हुआ, मेरी बहन भीड़ में फंस गई। हम उसे आधे घंटे बाद ढूंढ पाए, लेकिन तब तक वह हमें छोड़ चुकी थी… वो अब नहीं रही।”

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नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर घटना के एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी रवि ने बताया कि भगदड़ रात करीब साढ़े नौ बजे शुरू हुई। जब प्लेटफॉर्म नंबर 13 पर मौजूद लोग प्लेटफॉर्म 14 और 15 पर ट्रेनें आते हुए देखे, तो वे इन प्लेटफॉर्म की ओर दौड़ पड़े। हालांकि ट्रेनों के प्लेटफॉर्म नहीं बदले गए थे, लेकिन भीड़ इतनी ज्यादा थी कि स्थिति को संभालना मुश्किल हो गया। भीड़ पर नियंत्रण नहीं किया जा सका और हादसा हो गया।

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एक और गवाह, भारतीय वायु सेना में कार्यरत अजीत ने भी अपनी बात रखते हुए बताया, “मैं अपनी ड्यूटी के बाद वापस आ रहा था और स्टेशन पर चढ़ने की कोशिश की, लेकिन इतनी बड़ी भीड़ देखकर मैं खुद भी नहीं पहुंच पाया। मैंने लोगों से अपील की कि वे प्लेटफॉर्म पर इकट्ठा न हों, लेकिन कोई भी नहीं सुन रहा था। प्रशासन पूरी कोशिश कर रहा था, लेकिन क्या किया जाए, जब लोग मान ही नहीं रहे थे।”

यह घटना सिर्फ एक हादसा नहीं, एक बड़ी चेतावनी है। जो लोग इस भगदड़ में शिकार हुए, उनके दिलों में अपनों का खयाल था, मगर वे एक दूसरे की मदद करने के लिए बहुत कुछ करना चाहते हुए भी न कर सके। उन परिवारों के लिए यह केवल एक रात नहीं, बल्कि एक अनगिनत दर्द और अवसाद का समय बनकर रह गई।