CJI Sanjiv Khanna: जस्टिस संजीव खन्ना अब भारत के मुख्य न्यायाधीश बन चुके हैं। उन्होंने पहले दिन 45 मामलों की सुनवाई की थी। इसके बाद उन्होंने मंगलवार को कहा कि किसी भी मामले में जल्द सुनवाई की मांग मौखिक तौर पर नहीं सुनी जाएगी। इसके लिए वकीलों से उन्होंने ईमेल या लिखित पत्र भेजने के लिए कहा है।

आमतौर पर वकील मामले की जरूरत के आधार पर मामले की बारी से पहले ही सीजेआई की बेंच के सामने लिस्टिंग करने के लिए कहते हैं। हालांकि, अब सीजेआई संजीव खन्ना ने साफ-साफ शब्दों में कह दिया है कि अब कोई भी लिखित या मौखिक रूप से उल्लेख नहीं किया जाएगा। केवल ईमेल या लेटर ही भेजें। संजीव खन्ना ने न्यायिक सुधारों के लिए एक रूपरेखा तैयार की है।

लोगों की न्याय तक आसान पहुंच बनानी है- सीजेआई

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सीजेआई ने कहा कि न्याय तक लोगों की आसान पहुंच बनाना और लोगों के साथ एक जैसा व्यवहार करना न्यायपालिका का संवैधानिक कर्तव्य है। सीजेआई ने सोमवार को अपने पहले बयान में कहा कि न्यायपालिका शासन का एक बेहद ही अहम हिस्सा है। संविधान हमें मौलिक अधिकारों के रक्षक के तहत जिम्मेदारी देता है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि समान व्यवहार करने के मामले में सभी को न्याय देने का सही मौका देना जरूरी है। चाहे उनकी शक्ति या स्थिति कुछ भी हो। यह हमारे मूल सिद्धांतो को दिखाते हैं।

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न्यायपालिका के सामने आने वाली चुनौतियां

संजीव खन्ना ने न्यायपालिका के सामने आने वाली चुनौतियों की भी पहचान की है। इसमें केस बैकलॉग को कम करने, मुकदमेबाजी को किफायती बनाने और मुश्किल कानूनी प्रक्रियाओं को आसान बनाना भी शामिल है। उन्होंने यह माना कि न्याय प्रणाली को सभी लोगों की जरूरतों को पूरा करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने एक बयान में कहा कि सीजेआई का मकसद एक सटीक दृष्टिकोण को अपनाना है। इसमें यह भी कहा गया कि लोगों के लिए फैसलों को समझना और मध्यस्थता को बढ़ावा देना भी पहली प्राथमिकता होगी। सीजेआई खन्ना ने मामले की अवधि को कम करने पर भी जोर दिया है। उन्होंने कहा कि कानूनी प्रक्रियाओं को लोगों के लिए सरल बनाना भी मकसद है।

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सीजेआई ने पहले दिन 45 केसों की सुनवाई की

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कोर्ट रूम एक में इकट्ठा हुए वकीलों से धन्यवाद कहा। सीजेआई दिन में 2.30 बजे तक कोर्ट रूम में रहे और 45 सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई की। इनमें अधिकतर वाणिज्यिक मामले थे। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अध्यक्षता वाली बेंच ने मध्यस्थता निर्णय के खिलाफ राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई से इनकार कर दिया। इसमें राज्य सरकार को मॉरीशस स्थित एक कंपनी को वादा किए गए कर प्रोत्साहन के तहत भुगतान करने को कहा गया था। विस्तृत खबर के लिए यहां क्लिक करें…