बिहार चुनाव के नतीजे रविवार को घोषित कर दिए जाएंगे, लेकिन इससे पहले अलग-अलग एजेंसियों ने अपने-अपने अनुमान लगाए हैं। किसी में महागठबंधन तो किसी में एनडीए को बढ़त मिलती दिख रही है। इसी बीच ”इंडियन एक्‍सप्रेस” ने भी सर्वे कराया है, जिसे Lokniti-CSDS (not an exit poll) ने किया है। इसमें महागठबंधन को आगे बताया गया है। सर्वे के मुताबिक, कुछ सप्‍ताह पहले जब फर्स्‍ट फेज की वोटिंग हुई थी, तब एनडीए आगे चल रहा था, लेकिन आखिरी दौर में नीतीश-लालू के पक्ष में बयार चलने से उसे नुकसान हुआ है। सर्वे में महागठबंधन को 42 प्रतिशत, जबकि एनडीए को 38 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान लगाया गया है।

वहीं, छोटे दलों और निर्दलीय उम्‍मीदवारों को कुल 20 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं। यह ”पोस्‍ट पोल” सर्वे 60 विधानसभा क्षेत्रों के 240 स्‍थानों पर किया गया है, जिसमें करीब 3939 लोगों से सवाल पूछे गए हैं। Lokniti-CSDS के प्री-पोल और पोस्‍ट पोल आंकड़े देखने से पता चलता है कि मतदाताओं ने अंतिम समय पर निर्णय लिया। पिछले कई चुनावों में देखने को मिला कि मतदाता वोटिंग से पहले ही मन बना चुके थे कि किसे वोट देना है, लेकिन बिहार चुनाव में ऐसा देखने को नहीं मिला।

यहां 15 प्रतिशत वोटरों ने उम्‍मीदवार को देखने के बाद तय किया कि वे किसे वोट देंगे, जबकि एक चौथाई लोगों ने वोटिंग के दिन ही फैसला किया कि किसे वोट देना है। सितंबर के आखिरी सप्‍ताह में अनुमान में था कि महागठबंधन को 38 प्रतिशत, एनडीए को 42 प्रतिशत और अन्‍य को 20 प्रतिशत वोट मिलेंगे, लेकिन मतदाताओं ने आखिरी समय पर मूड बदला और महागठबंधन को 42 प्रतिशत वोट मिला, जबकि एनडीए 38 प्रतिशत के आसपास रहा। हालांकि, छोटे दल और निर्दलीय उम्‍मीदवारों की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ा। उनका वोट शेयर 20 प्रतिशत ही रहा। Lokniti-CSDS सर्वे के मुताबिक महागठबंधन को इसी लेट स्विंग का फायदा मिला।

Lokniti-CSDS के सर्वे में यह भी दिखा कि बिहार चुनाव के दौरान कई विरोधाभास भी उभर कर सामने आए। प्री-पोल सर्वे में यह पाया गया था कि महागठबंधन को नीतीश कुमार की ”सुशासनबाबू” वाली छवि से काफी फायदा हुआ, लेकिन पोस्‍ट सर्वे में लालू प्रसाद यादव की आरजेडी को जेडीयू से अधिक समर्थन मिलता दिख रहा है। हालांकि, नीतीश की छवि से महागठबंधन को निश्चित तौर पर लाभ मिला है।
इसके साथ ही बिहार में 90 के दशक से चल रही पिछड़ों की राजनीति के मुख्य अखाड़े में इस चुनाव के दौरान नए जातीय समीकरणों के उभार के संकेत मिले। यह समीकरण है एक तरफ यादव-कुर्मी तो दूसरी तरफ उससे ज्यादा पिछड़े। महागठबंधन इसे साध पाने या रोक पाने में किस हद तक कामयाब हुआ है, इसकी बारीकियों में हम चुनाव बाद सर्वे के विस्तृत ब्योरे मिलने के बाद जाएंगे।