चीन और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों की हालिया बैठक में कहने के लिए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे और कोविड-19 को लेकर आपसी सहयोग पर बात हुई है, लेकिन वार्ता के केंद्र में भारत रहा। दक्षिण चीन के हेईनान प्रांत में पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता में असली मकसद ग्वादर बंदरगाह के कामकाज की समीक्षा थी।

इस बंदरगाह का काम पाकिस्तान ने चीनी एजंसियों को सौंप दिया है और चीन वहां अपना नौसैनिक अड्डा विकसित करने में जुटा हुआ है। मुख्य मकसद है भारत की घेराबंदी। ग्वादर के ठीक दूसरी तरफ ईरान के चाबहार में भारत ने बंदरगाह विकसित किया है और चाबहार के जरिए नए अंतरराष्ट्रीय मार्ग के निर्माण की तैयारी चल रही है।

चीन और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक-सामरिक सहयोग की यह वार्ता ऐसे वक्त में हुई है, जब भारत-चीन के आपसी संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य जमावड़े को लेकर चीन से और आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान से रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं। पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक बैठक के दौरान 60 अरब डॉलर की सीपीईसी योजना में हुई प्रगति और इस्लामाबाद द्वारा एक अरब डॉलर ऋण देने के अनुरोध पर चर्चा हुई है।

सीपीईसी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्त्वाकांक्षी योजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है, जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान स्थित ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिजिंयाग प्रांत से जोड़ता है। इस ग्वादर का काम पाकिस्तान ने चीन को सौंप दिया है, जो अरब सागर के किनारे पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में चीन ग्वादर पोर्ट को तेजी से विकसित कर रहा है। उपग्रह तस्वीरों में खुलासा हुआ है कि चीन इस बंदरगाह पर सैनिकों के रहने के बैरक के साथ कई तरह की इमारतों का निर्माण कर रहा है। इस बंदरगाह से थोड़ी ही दूर पर एक हवाई अड्डा भी बनाया जा रहा है। पाकिस्तान ने ग्वादर बंदरगाह से जुड़ी चीन की कंपनियों को 40 साल तक कर राहत की छूट दी है।

उपग्रह की तसवीरें एक अमेरिकी एजंसी ने जारी की है, जिनसे पता चल रहा है कि चीन के निर्माण की संरचनाएं स्थानीय शैली के इतर हैं, जिनसे पता चलता है कि चीन यहां सैन्य ठिकाने बनाने की कोशिश कर रहा है। चीनी नौसेना के जंगी जहाज पाकिस्तानी नौसेना के साथ अक्सर इस बंदरगाह की गश्त लगाते रहते हैं।

दरअसल, जानकारों की राय में चीन को इस बात की आशंका है कि युद्ध की स्थिति में भारतीय नौसेना मलक्का जलडमरूमध्य से हिंद महासागर में प्रवेश करने वाले संकीर्ण मुहाने को कभी भी बंद कर सकती है। इससे चीन का आधा से ज्यादा व्यापार ठप पड़ जाएगा। इसके अलावा चीन की कच्चा तेल की आपूर्ति लाइन भी बंद हो जाएगी। इसी की काट के रूप में चीन जल्द से जल्द ग्वादर बंदरगाह को विकसित करना चाहता है। इसके जरिए वह पाकिस्तान से होकर अपने व्यापार को युद्ध के समय भी जारी रख सकता है।

चीन ग्वादर बंदरगाह का निर्माण चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना के तहत कर रहा है और इसे बेजिंग की महत्त्वाकांक्षी ‘वन बेल्ट, वन रोड’ तथा मेरिटाइम सिल्क रोड प्रॉजेक्ट्स के बीच एक कड़ी माना जा रहा है। ग्वादर पोर्ट के जरिए चीन का सामान आसानी से अरब सागर तक पहुंच जाएंगे। लेकिन तनाव बढ़ने की स्थिति में बेजिंग इसका इस्तेमाल भारत और अमेरिका के खिलाफ भी कर सकता है।

चीन ने ग्वादर बंदरगाह परियोजना में 80 करोड़ डॉलर की राशि लगाई है। चीन के अधिकारी भले ही बार-बार यह कहते रहे हैं कि ग्वादर बंदरगाह और सीपीईसी का उद्देश्य पूरी तरह से आर्थिक और व्यावसायिक हैं, लेकिन इसके पीछे चीन की असल मंशा सैन्य प्रभुत्व बढ़ाना है। सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि चीन ग्वादर का इस्तेमाल अपने नौसेना बेस के तौर पर कर सकता है।