भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री और Esther Duflo व Michael Kremer के साथ इकनॉमिक्स में 2019 का Nobel Prize जीतने वाले अभिजीत विनायक बनर्जी ने कहा है कि राष्ट्रवाद खासकर भारत जैसे देशों में गरीबी सरीखे बड़े मुद्दों से ध्यान भटका देता है। इंडिया टुडे टीवी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने यह भी कहा देश में न्यूनतम आय गारंटी योजना की सख्त जरूरत है।
पुरस्कार जीतने के बाद इंडिया टुडे टीवी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने न सिर्फ गरीबी को लेकर चिंता जताई, बल्कि यह भी बताया कि कैसे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के दिनों ने उन्हें भारतीय राजनीति को गहराई से समझने में मदद की। नोबेल पुरस्कार विजेता ने इसके अलावा बातचीत के दौरान सहकर्मी और पत्नी Esther के साथ रिलेशनशिप और उनके भारतीय व्यंजनों के साथ बंगाली नोबेल कनेक्शन के बारे में भी बताया।
यह पूछने पर कि भारतीय के नाते कैसा लग रहा है? उन्होंने कहा- मैं बहुत हद तक भारतीय हूं। मैं जब अपना देश कहता हूं, तो उसका मतलब हमेशा भारत से होता है। ऐसे में मेरे लिए कोई और विकल्प नहीं है। मैं खुद को भारतीयों की नजर से देखता हूं।
जेएनयू और तिहाड़ कांड के बारे में उन्होंने बताया, “हां, उन दिनों ने मुझे यह बताया कि राजनीति की क्या अहमियत है। जेएनयू मेरे लिए बहुत मायने रखता है। मैं कोलकाता से वहां गया था, जहां लेफ्ट वाली राजनीति थी। मुझे उसके अलावा बाकी राजनीति के बारे में कुछ नहीं पता था। इसलिए लोहियावादी मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि मुझे गांधीवाद, संघ के बारे में जानने को मिला।”
न्यूनतम आय को लेकर उन्होंने कहा- हमें मिनिमम इनकम पर विचार करना चाहिए, क्योंकि ढेर सारे लोग हैं, जो बड़े स्तर पर जोखिमों का सामना कर रहे हैं। उनके (किसान) जीवन में कभी ढेर सारी बारिश चीजें बर्बाद कर देती है, जबकि कभी कम बरसात से वे परेशान रहते हैं। कभी-कभार कुछ बैंक भी संकट की स्थिति पैदा कर देते हैं और इमारतों का निर्माण भी रुक जाता है। यही वजह है कि ढेर सारे लोग नौकरियां भी गंवा देते हैं। इन सभी जोखिमों की खाई को किसी तरह पाटना होगा।
बंगालियों और नोबेल के बीच क्या फर्क है, रवींद्रनाथ टैगोर से लेकर अमृत्य सेन और अब आप? बनर्जी ने जवाब दिया- मैं इस बारे में अधिक नहीं जानता, पर मुझे मेरे संबंध साफगोई से रखने दें। मैं आधा बंगाली और आधा मराठी हूं।
राजनीतिक जानकार अभिजीत की इस टिप्पणी को कई तरीकों से देख रहे हैं। कई का कहना है कि नोबेल विजेता ने यह बात देश में दिन-ब-दिन हावी होती राष्ट्रवाद की भावना के संदर्भ में कही है, जबकि कुछ ने कहा है कि बनर्जी का यह कथन मोदी सरकार पर बिना नाम लिए किया गया जुबानी वार है।