सब्रमण्यम स्वामी और नवजोत सिंह सिद्धू को राज्यसभा भेजने का फैसला अकेले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने लिया है। इस बारे में पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओ से किसी तरह की कोई सलाह नहीं ली गई। हालांकि, अरुण जेटली से जरूर इस बारे में विचार-विमर्श किया गया था। इससे साफ जाहिर होता है कि पार्टी पर केवल दो ही लोगों का नियंत्रण है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक राज्यसभा के लिए सदस्यों का नॉमिनेशन शाह और मोदी द्वारा अगले तीन महीनों में लिए जाने वाले राजनीतिक फैसलों की सीरिज की शुरुआत है। इसके बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल, शाह की नई टीम और राज्यसभा के लिए अगले चरण के लिए भाजपा उम्मीदावरों का चयन के बारे में फैसला किया जाएगा।

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एक सूत्र ने बताया कि राज्यसभा के लिए छह लोगों को मनोनीत मेरिट के आधार पर किया गया है। हमारे नेतृत्व का कोई पसंदीदा नहीं है और विश्वासपात्र नहीं है। यहां पर कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है। पार्टी के हित केंद्र में है और ये ही चयन का मापदंड है। पार्टी के व्यापक लक्ष्य के लिए जो भी अपना योगदान देता है, वह हमारा पसंदीदा है।

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साल 2014 लोकसभा चुनाव में नई दिल्ली सीट के लिए टिकट नहीं दिया गया था। लेकिन अभी स्वामी को आरएसएस चीफ मोहन भागवत का पूरा समर्थन है। जिन्होंने भी स्वामी का विरोध किया उन्हें नेशन्ल हेराल्ड केस में उनकी मेहनत के बारे में बताया गया। सिद्धू जिन्होंने जेटली के लिए अमृतसर लोकसभा सीट छोड़ दी थी को भी राज्यसभा के रणनीति के तहत भेजा गया है। बताया जा रहा है कि सिद्धू को राज्यसभा भेजने का फैसला शाह ने उन्हें पंजाब में आम आदमी पार्टी में जाने से रोकने के लिए लिया है।