चांद पर पानी होने का सबूत मिला है। दरअसल चांद पर अमेरिकी वैज्ञानिकों को ‘मॉलिक्यूलर वाटर’ होने के सबूत मिले हैं। गौरतलब है कि इससे 11 साल पहले यानि कि 2009 में भारत के चंद्रयान-1 मिशन में भी चांद पर पानी होने का दावा किया गया था। अब NASA के वैज्ञानिकों ने गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर और हवाई और कोलोराडो के रिसर्च संस्थानों के साथ मिलकर चांद पर मॉलिक्यूलर वाटर यानि कि H2O होने के सबूत जुटाए हैं।

बता दें कि चंद्रयान-1 मिशन के दौरान चांद पर हाइड्रोक्सिल (OH) होने के सबूत मिले थे, जो कि मॉलिक्यूलर वाटर का एक कंपोनेंट होता है लेकिन यह साफ नहीं था कि यह OH कंपोनेंट पानी के हैं या फिर किसी हाइड्रोक्सिल कंपाउंड के। लेकिन अब गोडार्ड की साइंटिस्ट केसी हनीबाल और उनकी टीम ने एक इंफ्रारेड कैमरे की मदद से चांद पर मॉलिक्यूलर वाटर के सबूत ढूंढ निकाले हैं। जिससे यह तय हो गया है कि चांद पर पानी है।

कोलोराडो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक अन्य अध्ययन के आधार पर अनुमान लगाया है कि चांद पर पानी इसके लूनर क्षेत्र में हो सकता है, जहां अंधेरा रहता है। इस क्षेत्र को कोल्ड ट्रैप कहा जाता है। इस रिसर्च के बारे में नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में छपा है।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि चांद के लूनर क्षेत्र में करीब 40 हजार स्कवायर किलोमीटर इलाके में पानी हो सकता है। स्टडी में पता चला है कि चांद के लूनर इलाके का तापमान माइनस 184 डिग्री सेल्सियस तक है। इसकी वजह से पानी जमकर चट्टानों के रूप में परिवर्तित हो गया हो सकता है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद पर पानी मिलने से चांद पर जाने वाले मिशन की लागत में खासी कमी आने की उम्मीद है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि धरती से चांद पर एक लीटर पानी रॉकेट से ले जाने में करीब 50 हजार डॉलर का खर्च आता है।