भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर भ्रम फैलाने का विपक्ष पर आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज किसानों से कहा कि ये सारा भ्रम उन्हें गरीब बनाए रखने और राजनीतिक हितसाधन के लिए किए गए षड्यंत्र का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि सरकार इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि भूमि अधिग्रहण किसानों की भलाई के लिए ही होना चाहिए और उनकी उपजाऊ जमीन का आखिर में अत्यावश्यक होने पर ही उपयोग होना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने आज ‘आकाशवाणी’ पर अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में देश के किसानों को संबोधित करते हुए यह भी कहा कि इस साल बेमौसम बारिश होने और ओले गिरने से देश के अनेक राज्यों में किसानों पर आये संकट की घड़ी में सरकार पूरी संवेदना के साथ किसानों की तत्परता से हरसंभव मदद करेगी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि 2013 के पिछली सरकार के भूमि अधिग्रहण अधिनियम में कुछ खामियां रह गई थीं क्योंकि इसे आनन-फानन में लागू किया गया था। किसानों और गांवों के हितों को ध्यान में रखते हुए इन कमियों को दूर करने का प्रयास उनकी सरकार कर रही है। उन्होंने संसद में अपने बयान का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार किसानों के हित में विधेयक में किसी भी बदलाव पर विचार करने के लिए तैयार है।

मोदी ने कांग्रेस पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि जो लोग आज किसानों के हमदर्द बनकर आंदोलन चला रहे हैं, वे लोग आजादी के 60-65 साल बाद भी भूमि अधिग्रहण के संबंध में 120 साल पुराने कानून को चला रहे थे और अब सरकार पर निशाना साध रहे हैं।

करीब आधे घंटे तक चले ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने कहा कि उनकी सरकार के नये विधेयक में मुआवजे के वो ही प्रावधान हैं जो 2013 के कानून में थे। उन्होंने इस बात को पूरी तरह खारिज कर दिया कि नये प्रावधानों का उद्देश्य कॉर्पोरेट लोगों को फायदा पहुंचाना है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रस्तावित नये कानून में सहमति की आवश्यकता नहीं होने संबंधी प्रावधान सरकारी और पीपीपी परियोजनाओं के लिए अधिग्रहण के लिहाज से है और पिछले कानून में भी यह प्रावधान है। इसलिए पीपीपी मॉडल को लेकर जो भ्रम फैलाये जा रहे हैं उन पर स्पष्टता बहुत ही जरुरी है।

मोदी ने भूमि अधिग्रहण विधेयक के संबंध में किसानों के सुझावों का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘हम इस बात पर सहमत हैं कि सबसे पहले सरकारी जमीन का उपयोग हो। उसके बाद बंजर भूमि का उपयोग हो, फिर आखिर में अनिवार्य हो तब जाकर उपजाऊ जमीन को हाथ लगाया जाए और इसलिए बंजर भूमि का तुरंत सर्वेक्षण करने के लिए भी कहा गया है ताकि वो पहली प्राथमिकता बने।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे किसानों की शिकायत सही है कि आवश्यकता से अधिक जमीन हड़प ली जाती है। इस नये कानून के माध्यम से मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूं कि अब जमीन कितनी लेनी है, उसकी पहले जांच पड़ताल होगी, उसके बाद तय होगा कि आवश्यकता से अधिक जमीन नहीं हड़पी जाए।’’

मोदी ने संप्रग सरकार के कानून के संबंध में कहा कि आनन फानन में काम करने पर कुछ कमियां रह जाती हैं। शायद इरादा गलत न हो, लेकिन कमियां हैं, तो उन्हें तो ठीक करना चाहिए। और हमारा कोई आरोप नहीं है कि पुरानी सरकार क्या चाहती थी, क्या नहीं चाहती थी? हमारा इरादा यही है कि किसानों का भला हो, किसानों की संतानों का भी भला हो, गांव का भी भला हो और इसीलिए कानून में अगर कोई कमियां हैं, तो दूर करनी चाहिए। तो हमारा एक प्रामाणिक प्रयास कमियों को दूर करना है।

उन्होंने कहा, ‘‘कमियों को दूर करने के हमारे प्रामाणिक प्रयास हैं। और फिर भी मैंने संसद में कहा था कि अब भी किसी को लगता है कोई कमी है, तो हम उसमें सुधार करने के लिए तैयार हैं।’’

नये भूमि अधिग्रहण विधेयक को लोकसभा ने हाल ही में बजट सत्र के पहले चरण में पारित किया था लेकिन राज्यसभा में इसे मंजूरी नहीं मिली है।

2013 के कानून में कमियों के अपने बयान पर मोदी ने कहा कि कानून लागू होने के बाद महसूस किया गया कि शायद हम किसानों के साथ धोखा कर रहे हैं। हमें किसानों के साथ धोखा करने का कोई अधिकार नहीं है।

मोदी ने कहा कि जब हमारी सरकार बनी तो राज्यों की तरफ से पिछले कानून में बदलाव की बड़ी आवाज उठी। उन्होंने कहा, ‘‘दूसरी तरफ हमने देखा कि एक साल हो गया, कोई राज्य इसे लागू करने को तैयार नहीं है। महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों ने, जहां कांग्रेस की सरकारें थीं और जो किसान हितैषी होने का दावा करते थे, उन्होंने इसे लागू किया लेकिन जो मुआवजा देना तय हुआ था, उसे आधा कर दिया।’’

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘भूमि अधिग्रहण किसानों की भलाई के लिए ही होना चाहिये। और ये हमारी प्रतिबद्धता है। किसान भाइयों से आग्रह है कि आप इन झूठ के सहारे निर्णय मत करें, भ्रमित होने की जरुरत नहीं है। हमारी कोशिश है कि गांव की भलाई, किसान की भलाई के लिए सही दिशा में काम उठाएं। मैं मानता हूं कि आपका मुझ पर भरोसा है। मैं इस भरोसे को टूटने नहीं दूंगा, मैं आपको यह विश्वास दिलाता हूं।

मोदी ने कहा कि अगर कोई राज्य पिछले कानून को अपनाना चाहता है तो वह ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं। उन्होंने पिछले कानून की कमियों का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘अब एक सबसे बड़ी कमी मैं आपको बताऊं। आपको भी जानकर हैरानी होगी कि जितने लोग किसान हितैषी बनकर इतनी बड़ी भाषणबाजी कर रहे हैं, एक जवाब नहीं दे रहे हैं।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि 2013 के कानून में सबसे बड़ी कमी यह है कि इससे 13 उन चीजों को बाहर रखा गया है जो रेलवे, राष्ट्रीय राजमार्ग और खदान के काम आदि सरकारी गतिविधियों से संबंधित हैं जिनमें सबसे अधिक जमीन अधिग्रहण किया जाता है। इन्हें बाहर रखने का मतलब है कि इन 13 प्रकार के कामों के लिए जमीन लेने पर किसानों को 120 साल पुराने कानून के आधार पर मुआवजा मिलेगा। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे बताइए, यह कमी थी या नहीं। क्या यह गलती नहीं थी। हमने इसे ठीक किया और हमने कहा कि इन 13 में भी किसान को चार गुना मुआवजा मिलना चाहिए।’’

मोदी ने कहा, ‘‘शहरीकरण के लिए जिस भूमि का अधिग्रहण होगा, उसमें विकसित भूमि, बीस प्रतिशत उस भूमि मालिक को मिलेगी ताकि उसे आर्थिक रूप से हमेशा लाभ मिले। परिवार के एक युवक को नौकरी मिले।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी हवा फैलाई जा रही है कि मोदी ऐसा कानून ला रहे हैं कि किसानों को अब मुआवजा पूरा नहीं मिलेगा, कम मिलेगा। मैं ऐसा पाप करने के बारे में सोच भी नहीं सकता हूं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘किसान की भलाई के लिए हम कदम उठा रहे हैं, उसके बावजूद अगर किसी राज्य को इसे नहीं मानना है तो वे स्वतंत्र हैं और इसलिए मैं आपसे कहना चाहता हूं कि ये जो सारे भ्रम फैलाये जा रहे हैं वो सरासर किसान विरोधी हैं। किसान को गरीब रखने के षड्यंत्र का ही हिस्सा हैं। देश को आगे न ले जाने के जो षडयंत्र चले हैं, उसी का हिस्सा हैं। उससे बचना है, देश को भी बचाना है, किसान को भी बचाना है।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ने सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए) की प्रक्रिया को सरल और छोटा करने का प्रयास किया है जो लंबी और जटिल थी। अगर यह प्रक्रिया सालों तक चलती रहे तो किसानों के हित प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित कानून के पारित होने से गांवों में विकास होगा। गांवों में सड़कें बनेंगी, खेतों में पानी के लिए नहरें बनेंगी, किसानों को घर मिलेंगे, उनके बच्चों को नौकरियां मिलेंगी।

मोदी ने विधेयक को कॉर्पोरेट और उद्योगों के लिए बताने वाले आरोपों को खारिज कर दिया और सार्वजनिक निजी साझेदारी (पीपीपी) को लेकर आशंकाओं को भी खारिज करते हुए कहा कि पीपीपी मॉडल में निजी कंपनियां केवल पैसा लगाती हैं क्योंकि सरकार के पास इतना धन नहीं है लेकिन इन परियोजनाओं में जो सड़क आदि बनती है, उस पर मालिकाना हक सरकार का ही होता है।

मोदी ने कहा कि यह भ्रम भी फैलाया जा रहा है कि किसानों को कोई कानूनी हक नहीं मिलेगा, वे अदालत में नहीं जा सकते। उन्होंने कहा कि यह सरासर झूठ है। उन्होंने कहा, ‘‘हिंदुस्तान में कोई भी सरकार आपके कानूनी हक को छीन नहीं सकती। बाबा साहब आंबेडकर ने हमें जो संविधान दिया है, इस संविधान के तहत आप देश की किसी भी अदालत में जा सकते हैं।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि जो लोग वातानुकूलित कमरों में बैठकर कानून बनाते हैं, उन्हें गांवों के लोगों की सच्ची स्थिति का पता तक नहीं होता। उन्होंने कहा, ‘‘एक भ्रम ऐसा फैलाया जा रहा है कि ‘सहमति’ की जरूरत नहीं है। मेहरबानी करके उससे बचिए। 2013 में जो कानून बना, उसमें भी सरकार ने जिन योजनाओं के लिए जमीन मांगी है, उसमे सहमति का कानून नहीं है। और इसलिए सहमति के नाम पर लोगों को भ्रमित किया जाता है। यह सरासर आपको गुमराह करने का दुर्भाग्यपूर्ण प्रयास है। मैं आज भी कहता हूं कि निजी उद्योग के लिए, कॉर्पोरेट के लिए, निजी कारखानों के लिए ‘सहमति’ का कानून चालू है, है, है।’’