प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जेनेटिक मोडिफाइड (GM) सरसों को लागू करना चाहते हैं। अगर टेस्ट में इसे फूलप्रूफ पाया गया तो वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विरोधी के बावजूद आगे बढ़ेंगे। अगस्त में हुई बैठक में, मोदी ने तीन कैबिनेट मंत्रियों और चार टॉप ब्यूरोक्रेट्स को जीएम सरसों का विस्तृत और तेज मूल्यांकन करने के लिए कहा था। हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक, कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह, पर्यावरण मंत्री अनिल दवे, विज्ञान और तकनीकी मंत्री हर्षवर्धन तथा इन मंत्रालयों के सचिवों ने बैठक में हिस्सा लिया था। मोदी ने जीएम सरसों पर बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग का प्रजेंटेशन देखा। एनालिस्ट्स के अनुसार, मोदी कृषि क्षेत्र में जीएम तकनीक के पक्ष में नजर आते हैं। अगर भारत की बॉयोटेक रेगुलेटर- जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी दिल्ली यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा बनाई गई जीएम सरसों को मंजूरी दे देती है, तो मोदी को यह फैसला करना हो कि वह व्यापारिक इस्तेमाल के लिए जीएम फसल को मंजूरी देकर आरएसएस के खिलाफ जाएंगे या नहीं।
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2014 के चुनावी घोषणापत्र में, भाजपा ने कहा था कि बिना इसके ‘दीर्घकालीन’ प्रभावों पर शोध के बिना जीएम फसलों को मंजूरी नहीं दी जाएगी। भारत तेलों का उत्पादन बढ़ाना चाहता है क्योंकि देश खाने पकाने वाले तेल को आयात करने पर हर साल 65,000 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करता है। जीएम फसलों के जीन में नई खूबियों के लिए बदलाव किया जाता है ताकि उत्पादन ज्यादा और कीड़े-मकोड़ों से बचाव हो सके। हालांकि संघ और जीएम-विरोधी समूहों का तर्क है कि जीएम फसलों से पर्यावरण और स्वास्थ्य को नुकसान है। आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने एचटी को बताया, ”जीएम मंजूर नहीं है। हमने प्रधानमंत्री को सबूत दिए हैं कि जीएम सरसों न तो स्वदेशी है, न ही इससे ऊंची पैदावार होती है।” पेंटल का दावा है कि उनके पास तकनीक का पेंटेंट है और उनकी वैरायटी 30 प्रतिशत बेहतर पैदावार देती है।
इसी मामले पर पर्यावरणविद अनुणा राड्रिग्स की शिकायत पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को सरकार से 17 अक्टूबर तक जीएम सरसों न जारी करने के लिए कहा है। अदालत से सरकार से फैसला लेने के पहले जनता की राय मांगने को भी कहा है।