केंद्र सरकार, असम सरकार और बोडो समूहों – जिसमें चरमपंथी गुट नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) के सभी गुट शामिल हैं – ने शांति और विकास के लिए बोडोलैंड समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते का जश्न मनाने के लिए 10 दिनों बाद शुक्रवार (7 फरवरी) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी असम के कोकराझार पहुंचे।
फिलहाल क्या समझौता हुआ है?
बोडोलैंड को अब तक आधिकारिक तौर पर बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) कहा जाता है। नए समझौते के लागू होने के बाद इसका नाम बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (बीटीआर) हो जाएगा। बीटीआर को अधिक अधिकार दिए जाएंगे। बीटीसी की मौजूजा 40 सीटों को बढ़ाकर 60 कर दिया जाएगा और इलाके में कई नए जिलों का गठन होगा। गृह विभाग को छोड़ अन्य विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार बीटीआर के पास रहेंगे।
गृहमंत्री अमित शाह के अनुसार, एनडीएफबी के चार गुटों के साथ दशकों से चले आ रहे संघर्ष की वजह से अब तक 4,000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। एबीएसयू के अध्यक्ष प्रोमोद बोरो ने कहा, “इस समझौते की अहम बात यह है कि यह सशस्त्र आंदोलन समाप्त हो गया। सभी सशस्त्र समूहों का एक साथ आना बड़ी बात है।”
राज्य की मांग के बारे में पूछे जाने पर, बोरो ने कहा कि एबीएसयू इसका फैसला अपने अगले विशेष सम्मेलन में करेगा। असम के मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि समझौते के साथ राज्य की मांग समाप्त हो गई है। हालाकि एबीएसयू के एक नेता ने कहा, “समझौते में इस बात की चर्चा कहीं नहीं की गई है कि एबीएसयू राज्य की मांग को छोड़ देगा।”
समझौते में कहा गया है, “असम राज्य की क्षेत्रीय अखंडता को अक्षुण्ण रखते हुए उनकी मांगों के लिए एक व्यापक और अंतिम समाधान के लिए बोडो संगठनों के साथ बातचीत की गई।”
बीटीसी क्या थी ?
यह संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक स्वायत्त निकाय थी। पहले दो बोडो समझौते हुए हैं। दूसरे समझौते के बाद बीटीसी का गठन हुआ। 1987 से ABSU के नेतृत्व वाला जो आंदोलन शुरू हुआ था, वह 1993 में बोडो समझौते के बाद समाप्त हुआ। इस समझौते ने बोडोलैंड स्वायत्त परिषद (BAC) का मार्ग प्रशस्त किया, लेकिन ABSU ने अपना समझौता वापस ले लिया और एक अलग राज्य की अपनी मांग शुरू की। 2003 में दूसरे बोडो समझौते पर चरमपंथी समूह बोडो लिबरेशन टाइगर फोर्स (BLTF), केंद्र सरकार और राज्य ने हस्ताक्षर किए थे। इसके चलते बीटीसी हुई थी।
नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध के दौरान इस समझौते का राजनीति पर क्या असर होगा?
ऐसे समय में जब सत्तारूढ़ भाजपा को आसामी बोलने वाले एक बड़े समूह के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, वैसे में समझौते से बोडो वोटरों के बीच बीजेपी की पकड़ मजबूत होगी। 2016 के चुनाव में आसामी भाषा बोलने वालों ने बढ़चढ़ कर बीजेपी को वोट दिया था। लेकिन मौजूदा हालात बदले हुए दिख रहे हैं।
असम के छात्र नेताओं, कार्यकर्ताओं, लोकप्रिय गायकों और अभिनेताओं और प्रसिद्ध नागरिकों ने राज्य भर में भाजपा के खिलाफ बड़ी सभाओं को संबोधित किया है। राज्य के पूर्वी क्षेत्र में असमिया भाषा बोलले वाले समुदाय की संख्या सबसे ज्यादा है। ये लोग उसी पूर्वी क्षेत्र के प्रमुख चेहरे हैं।
बोडोलैंड क्षेत्र पश्चिमी असम में है, और बोडो का बड़ा वर्ग पहले से ही भाजपा के समर्थक के रूप में देखा जाता है। भाजपा सहयोगी बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (BPF) के प्रमुख हगराम मोहिलरी, बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (BTC) के मुख्य कार्यकारी सदस्य हैं।
बोडो मुद्दे का इतिहास
असम में अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों में बोडो एक बड़ा समुदाय है। असम की आबादी का 5 से 6 प्रतिशत हिस्सा बोडो का है। बोडो राज्य बनाने की पहली संगठित मांग 1967-68 में असम के राजनीतिक दल प्लेन्स ट्राइबल काउंसिल के बैनर तले की गई थी। 1985 में असम आंदोलन का समापन असम समझौते में हुआ। इस समझौते को बोडो समुदाय के कई लोगों ने असमिया भाषी समुदाय के हितों पर ध्यान केंद्रित करने के रूप में देखा।
1987 में उपेंद्र नाथ ब्रह्मा के नेतृत्व में ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (ABSU) ने बोडो राज्य की मांग को फिर से उठाया। अक्टूबर 1986 में रंजन दायमरी के नेतृत्व में सशस्त्र समूह बोडो सिक्योरिटी फोर्स का गठन हुआ। बाद में इसका नाम बदलकर एनडीएफबी कर दिया गया और बाद में यह कई गुटों में बंट गया।
27 जनवरी 2020 को केंद्र सरकार, असम सरकार और एनडीएफबी ने समझौते पर हस्ताक्षर किया। समझौते के ज्ञापन में कहा गया है, ” सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन्स के तहत सभी एनएफडीबी गुट हिंसा का रास्ता छोड़ देंगे, अपने हथियार सरेंडर कर देंगे और इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के एक महीने के भीतर अपने हथियारबंद संगठनों को समाप्त कर देंगे।”
