देश में दक्षिणपंथी संगठनों की ओर से चलाए गए ‘घर वापसी’ अभियान और विवादित बयानों की पृष्ठभूमि में देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का आह्वान किया कि वह संविधान की धर्मनिरपेक्ष आत्मा की रक्षा करे।
जमीयत के महासचिव महमूद मदनी ने कहा, ‘‘पिछले एक साल में मीडिया में ‘देशद्रोही’ सांप्रदायिक तत्वों के बयानों से सरकार बेखबर नहीं है। इसके बावजूद सब बातों की अनदेखी हो रही है। इससे ‘‘सबका साथ सबका विकास’’ की सत्यता पर सवाल जरूर उठता है।’’
जमीयत के 32वें आम अधिवेशन में मदनी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की ओर से धार्मिक सहिष्णुता को लेकर दिए बयान का परोक्ष रूप से हवाला देते हुए कहा, ‘‘बाहर से आए मेहमान हमें नसीहत दें और धार्मिक सहिष्णुता का पाठ पढाएं, हमें अपने राष्ट्र का यह अपमान स्वीकार्य नहीं।’’
मदनी ने कहा कि केंद्र सरकार का यह फर्ज है कि देश के संविधान के विरुद्ध इन सांप्रदायिक ताकतों की गतिविधयों पर सख्ती से कानूनी शिंकजा कसे। उन्होंने कहा, ‘‘आतंकवाद के खिलाफ दारूल उलूम देवबंद, जमीयत उलेमा ए हिंद से उठने वाली आवाज की गूंज देश और विदेश में सुनाई दे रही है। आतंकवादी इस्लाम, मुसलमान, देश और पूरी इंसानियत के घोर दुश्मन हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘दहशतगर्दी का संबंध किसी भी धर्म से नहीं होता है। आतंकी मस्जिदों, मदरसों, मंदिरों, गुरुद्वारों और गिरजाघरों में जन्म नहीं लेते हैं। फिर भी हमें दहशतगर्दी के आरोपों से छुटकारा नहीं मिला।’’
उन्होंने कहा कि जमीयत सरकार से आह्वान करती है कि वह संविधान की धर्मनिरपेक्ष आत्मा की हिफाजत करे और सांप्रदायिकता, आतंकवाद एवं सामाजिक असामनता को समाप्त करने के लिए व्यावहारिक कदम उठाए और सभी वर्गों को साथ लेकर चले।
जमीयत के अधिवेशन में मुसलमानों को आरक्षण देने, दंगों की रोकथाम, गिरफ्तार किए गए ‘निर्दोष युवकों’ की रिहाई, घर वापसी जैसे कार्यक्रमों पर लगाम लगाने सहित 15 प्रस्ताव पारित किए गए। आरक्षण संबंधी प्रस्ताव में अनुच्छेद 341 में संशोधन करके उसमें मुस्लिम और ईसाइयों को शामिल करने की मांग की गई है।
वहीं जमीयत के अध्यक्ष मौलाना कारी सैयद मौहम्मद उस्मान मंसूरपुरी ने कहा, ‘‘केंद्र में सत्ता परिवर्तन के साथ देश में अल्पसंख्यक विरोधी तत्व पहले से अधिक सक्रिय नजर आ रहे हैं।
उन्होंने मुसलमानों के आरक्षण के मसले पर कहा कि धर्म का हवाला देकर मुस्लिमों को आरक्षण नहीं दिया जाता है। धर्म के नाम पर मुस्लिमों के लिए आरक्षण की मांग न पहले की गई थी और न अब की जा रही है। उन्होंने कहा कि दूसरों की तरह शैक्षिक और सामाजिक पिछड़ेपन की बुनियाद पर आरक्षण की मांग की जा रही है।