संसद में बने गतिरोध को दूर करने के लिए होने वाली सर्वदलीय बैठक के एक दिन पहले रविवार को सरकार और कांग्रेस के बीच वाकयुद्ध तेज हो गया। सत्ता पक्ष ने जहां विपक्ष पर विघ्नकारी रवैया अपनाने का आरोप लगाया वहीं कांग्रेस ने पलटवार करते हुए आरोप लगाया कि संसद में गतिरोध के लिए प्रधानमंत्री का अहंकार जिम्मेदार है।
मानसून सत्र का लगभग आधा हिस्सा बिना खास कामकाज के ही समाप्त हो जाने के बीच सरकार ने कांग्रेस से आत्मविश्लेषण करने को कहा। सरकार ने यह भी कहा कि ललित मोदी को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की कथित मदद के मुद्दे पर चर्चा के लिए राजी होकर कांग्रेस को अपने ही बनाए जाल से बाहर निकलने का सम्मानजक रास्ता मिल सकता है। संसद में बने गतिरोध को दूर करने के तरीकों पर विचार विमर्श करने के लिए सरकार ने सोमवार को फिर सर्वदलीय बैठक बुलाई है।
उधर कांग्रेस पर हमला बोलते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि कांग्रेस राजनीतिक कारणों से सरकार से परेशान हो सकती है। पर उसे गहराई से यह आत्मविश्लेषण करना चाहिए और स्वीकार करना चाहिए कि नकारात्मक सोच व उसके विघ्नकारी रवैए से देश और अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा।
पलटवार करते हुए कांग्रेस के आनंद शर्मा ने कहा- यह विडंबना है कि अरुण जेटली कांग्रेस को विचार करने के लिए कह रहे हैं जबकि सरकार के अपने दावे के मुताबिक पिछले 10 सालों की तुलना में पिछले एक साल के दौरान संसद में ज्यादा काम हुआ है। पिछले एक साल के दौरान संसद में हुए कामकाज और महत्वपूर्ण विधायी काम पूरा किए जाने का श्रेय जिम्मेदार और परिपक्व विपक्ष पर है। जबकि उसके पहले के 10 साल में विधायी कामकाज में बाधा डालने का दोष भाजपा पर है।
उन्होंने कहा कि यह विपक्ष की जिम्मेदारी है कि वह प्रधानमंत्री और भाजपा के दोहरे रवैए का पर्दाफाश करे ताकि ईमानदारी, शुचिता और जवाबदेही पर उनके पाखंड, दोहरे मानदंड को सामने लाया जा सके। इस बीच संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने किसी इस्तीफे से इनकार किया और कहा कि चर्चा कराई जा सकती है जिसमें विपक्ष अपनी बात रख सकता है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि न तो सुषमा स्वराज और न ही राजे ने ऐसा कोई अनैतिक या अवैध काम किया है कि उन्हें इस्तीफा देना चाहिए। उस समय तो राजे मुख्यमंत्री भी नहीं थीं।
नायडू ने कहा- हम विपक्ष को साथ लेना चाहते हैं। हम लोग चर्चा करें। अगर वे अपने विचार रखना चाहते हैं तो हम तैयार हैं। उधर कांग्रेस को भ्रमित बताते हुए केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि कांग्रेस ने पहले ललित मोदी प्रकरण पर संसद में चर्चा की मांग की और सरकार के इस पर राजी हो जाने से वह सकते में आ गई। फिर कहने लगी कि जब तक उक्त तीनों नेताओं के इस्तीफे नहीं होते तब तक वह संसद मे ऐसी किसी चर्चा में हिस्सा नहीं लेगी। उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस संसद के कामकाज में व्यवधान डाल रही है जबकि अन्य विपक्षी दल कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सदन में चर्चा कराना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि संसद के नियम व्यापमं जैसे राज्य के मुद्दों पर चर्चा की अनुमति नहीं देते हैं। लेकिन अगर सदस्य चाहते हैं तो नियम बदले जा सकते हैं। उन्होंने हालांकि कहा कि कुछ अन्य सदस्य कांग्रेस शासित केरल के सौर ऊर्जा घोटाले और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के भ्रष्टाचार के मुद्दों को उठाना चाहते हैं। संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि सरकार चाहती है कि संसद में सुचारू रूप से कामकाज हो और गतिरोध दूर करने के लिए सोमवार की बैठक में सभी राजनीतिक दलों को आमंत्रित किया गया है।
वार-पलटवार
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि कांग्रेस राजनीतिक कारणों से सरकार से परेशान हो सकती है। पर उसे गहराई से यह आत्मविश्लेषण करके यह स्वीकार करना चाहिए कि नकारात्मक सोच व उसके विघ्नकारी रवैए से देश और अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा। पलटवार करते हुए कांग्रेस के आनंद शर्मा ने कहा- यह विडंबना है कि जेटली कांग्रेस को विचार करने के लिए कह रहे हैं जबकि सरकार के अपने दावे के मुताबिक पिछले 10 सालों की तुलना में पिछले एक साल के दौरान संसद में ज्यादा काम हुआ है।
ठप संसद से सोमनाथ दुखी
संसद की कार्यवाही अक्सर बाधित होने को ‘बहुत पीड़ादायक’ बताते हुए लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि हालात नियंत्रण से बाहर चले जाने के कारण सदन को व्यवस्थित ढंग से चला पाने में स्पीकर की स्थिति ‘बेहद दर्दनाक’ हो गई है।
साल 2004 से 2009 तक लोकसभा आध्यक्ष रहे सोमनाथ चटर्जी ने याद किया कि उन्हें भी इस अवधि में समस्याओं का सामना करना पड़ा था। उस समय भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी थी। सोमनाथ ने साक्षात्कार में कहा, ‘मुझे कई बार सदन की कार्यवाही शुरू होने के आधा घंटा पहले फोन करके बताया जाता था कि उस दिन सदन नहीं चलेगा क्योंकि हमारी पार्टी ने ऐसा तय किया है।’
लोकसभा के पूर्व स्पीकर ने इस बात पर खेद प्रकट किया कि संसद में ‘संघर्ष’ की स्थिति बदतर हो गई है और समाधान की स्थिति नहीं बनती है। जो कोई भी विपक्ष में होता है, उसे महसूस होता है कि उसकी बात नहीं सुनी जा रही है। भाजपा के अभी बहुमत मेंं होने और विपक्ष के काफी कमजोर होने की स्थिति का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘इससे संसदीय लोकतंत्र की प्रक्रिया कमजोर हुई है। विपक्ष को कोई रास्ता नहीं मिल रहा है।’
सोमनाथ ने कहा, ‘सत्तारूढ़ पार्टी सोचती है कि मैं क्यों बात करूं क्योंकि मेरे पास बहुमत है। अंतत: इसके परिणामस्वरूप अध्यादेश और सरकारी आदेश का रास्ता अपनाया जाता है और संसद का सत्र बेकार चला जाता है।’ उन्होंने कहा कि एक कभी न समाप्त होने वाले संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई है और विपक्ष की मांगों के समाधान के सभी रास्ते बंद हो गए हैं। उन्होंने कहा कि उभरती हुई राजनीतिक संस्कृति अत्यंत दुखदायी है।
लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि ऐसी परिस्थिति स्पीकर की स्थिति की ‘अपर्याप्तता’ को दर्शाती है जिसकी हालत अत्यंत दर्दनाक है। यह पूछे जाने पर कि गतिरोध को समाप्त करने के लिए स्पीकर सुमित्रा महाजन को उनका क्या सुझाव होगा, सोमनाथ ने कहा, ‘स्पीकर को किसी सुझाव की जरूरत नहीं है।’