बीएसएनएल, एमटीएनएल यानी भारतीय संचार निगम लिमिटेड और महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड के 1.98 लाख कर्मचारियों की जुलाई की सैलरी नहीं आई। यूनियन के एक पदाधिकारी ने यह जानकारी दी है। बीएसएनल कर्मचारियों के वेतन का खर्च 750-850 करोड़़ रुपए है।
बीएसएनएल की आमदनी का 75 फीसदी तनख्वाह पर ही जाता है। जबकि, प्राइवेट कंपनी एयरटेल कुल कमाई का तीन फीसदी से भी कम कर्मचारियों के वेतन पर खर्च करती है। कंपनी के सिर्फ 20 हजार कर्मचारी हैं।
इस साल दूसरी बार ऐसा हुआ है कि इन कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है। न ही आश्वासन मिला है कि सैलरी कब तक आएगी। नरेंद्र मोदी की दोबारा सरकार बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है। ऑल इंडिया यूनियंस एंड एसोसिएशंस ऑफ भारत संचार निगम लिमिटेड All India Unions and Associations of Bharat Sanchar Nigam Limited (AUAB) के संयोजक पी. अभिमन्यु के हवाले से समाचार एजेंसी पीटीआई ने बताया है कि अमूमन महीने की आखिरी तारीख को वेतन आ जाता है, पर जुलाई में ऐसा नहीं हुआ। न ही कोई सूचना है कि वेतन कब आएगा।
बीएसएनएल और एमटीएनएल भारी घाटे से गुजर रही हैं। इस साल फरवरी में भी इन दोनों निगमों के कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल पाया था। मार्च के मध्य में फरवरी की तनख्वाह दी जा सकती थी। बीएसएनएल में 1.76 लाख और एमटीएनएल में 22000 लोग काम करते हैं। इनकी सैलरी पर हर माह 750-850 करोड़ रुपए (बीएसएनएल) और 160 करोड़ रुपए (एमटीएनएल) खर्च होते हैं।
बीएसएनएल के चेयरमैन और सीएमडी पीके पुरवार की ओर से वेतन जारी करने के बारे में कोई टिप्पणी नहीं आई है। एमटीएनएल के ह्यूमैन रिसोर्स व एंटरप्राइज बिजनेस डायरेक्टर सुनील कुमार ने जरूर कहा कि कंपनी बकाया वसूली में लगी है, जिसके बाद वेतन जारी किया जाएगा। कुमार ही अभी एमटीएनएल के सीएमडी का भी काम देख रहे हैं।
बीएसएनएल और एमटीएनएल दोनों भारी घाटे में हैं। सरकार दोनों को एक करना चाह रही है। लेकिन, संचार निगम इग्जेक्युटिव्स एसोसिएशन के महासचिव सेबैस्टिन के. का कहना है कि यह प्रक्रिया पूरी होने में दो साल लग जाएंगे। इन्हें घाटे से उबारने के लिए मर्जर के अलावा वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति), 4जी एयरवेब्स की बिक्री, जमीन व टावर्स से कमाई जैसे विकल्प सामने आए हैं। पर, अभी इस दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।
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बीएसएनएल और एमटीएनएल की हालत तो काफी पहले से खराब थी, लेकिन 2016 में रिलायंस जियो के आने से तो इनकी कमर ही टूट गई। 2018-19 में बीएसएनएल का घाटा 14,202 करोड़ रुपए पर पहुंच गया, जबकि राजस्व घट कर 19,308 करोड़ रह गया। संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक, 2015-16 में बीएसएनएल का घाटा 4,859 करोड़ था। उसके बाद के दो सालों में यह क्रमश: 4,793 और 7,993 करोड़ रुपए रहा।