प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार रात तीन दिन की यात्रा पर चीन रवाना हो गए। वे मंगोलिया और दक्षिण कोरिया भी जाएंगे। उनके साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, विदेश सचिव एस जयशंकर और वरिष्ठ अधिकारी भी गए हैं। सीमा मुद्दे और पाक अधिकृत कश्मीर में चीनी परियोजनाओं जैसे जटिल मुद्दों के बीच पहली बार चीन की यात्रा पर गए मोदी ने उम्मीद जताई कि उनका यह दौरा एशिया के लिए ‘नया मील का पत्थर’ साबित होगा। मोदी गुरुवार को राष्ट्रपति शी जिनपिंग के गृह नगर प्राचीन शहर जियान पहुंचेंगे।
चीन रवाना होने से पहले प्रधानमंत्री ने चीनी मीडिया से कहा-‘मैं चीन के अपने दौरे के लिए आशान्वित हूं। इक्कीसवीं सदी एशिया की है।’ हिंदी में बोलते हुए प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई कि उनके दौरे से भारत-चीन रिश्ते और मजबूत होंगे और एशिया व विकासशील देशों के लिए ‘नया मील का पत्थर’ साबित होंगे।
सरकारी सीसीटीवी से मोदी ने कहा-‘मेरा मानना है कि चीन के मेरे दौरे से केवल चीन-भारत दोस्ती ही प्रगाढ़ नहीं होगी, बल्कि यह दौरा एशिया में विकासशील देशों के साथ ही दुनिया भर में संबंधों के लिए नया मील का पत्थर होगा। इसमें जरा भी संदेह नहीं है।’ उन्होंने कहा कि भारत और चीन ने हाल के वर्षों में आपसी संबंधों में काफी प्रगति की है और धैर्य व परिपक्वता के साथ अपने मतभेदों को दूर करने की कोशिश की है।
एक ट्वीट में प्रधानमंत्री ने कहा-‘बुद्ध की भूमि होने के नाते एशिया पर यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है कि यह सदी जंग से मुक्त हो।’
दो साल पहले शी के सत्ता में आने के बाद यह पहला मौका होगा जब वे बेजिंग के बाहर किसी विदेशी नेता का स्वागत करेंगे और मोदी के साथ अनौपचारिक तौर पर संवाद के लिए इतना वक्त गुजारेंगे। इससे पहले शी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ वक्त बिताया था।
दोनों नेता जिन मुद्दों पर गौर करेंगे, उनमें सीमा विवाद से लेकर पाकिस्तान को चीन का समर्थन भी शामिल है। राष्ट्रपति शी ने 20 अप्रैल को पाकिस्तान के अपने दौरे पर राजमार्ग और पनबिजली परियोजनाओं के साथ ही पीओके होते हुए बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह तक चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर सहित ढांचागत सुविधाओं के निर्माण के लिए 46 अरब डॉलर के पैकेज की घोषणा की थी।
जबकि नई दिल्ली इस चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर पर बेजिंग के समक्ष आपत्ति दर्ज करा चुका है। सीमा मुद्दों पर गंभीर मतभेद बना हुआ है, यहां तक कि दोनों पक्ष यह सुनिश्चित करने के प्रयास कर रहे हैं कि शांति बनी रहे। चीन पिछले साल चीनी राष्ट्रपति के दौरे के दौरान मोदी की ओर से प्रस्तावित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को स्पष्ट करने का इच्छुक नहीं है। पिछले दो साल में प्रधानमंत्री ली क्विंग और शी के भारत दौरे के दौरान लद्दाख में चीनी सैनिकों की दो घुसपैठों से दौरे का महत्त्व फीका पड़ गया था।
शी अपने गृहनगर जियान में मोदी के साथ वार्ताओं के अलावा उन्हें मशहूर गूज पैगोडा भी लेकर जाएंगे। गूज पैगोडा की स्थापना बौद्ध धर्म को लोकप्रिय बनाने में बौद्ध भिक्षु शियान जांग के योगदान के प्रतीक के रूप में छठी शताब्दी ईसा बाद की गई थी। इस आध्यात्मिक स्थल की यात्रा इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि शियान ने प्राचीन रेशम मार्ग के माध्यम से 645 ईसा बाद भारत की यात्रा की थी और वे यहां अनमोल बौद्ध ग्रंथों के साथ 17 वर्षों तक रहने के बाद घर वापस गए थे। दोनों नेताओं के प्रीतिभोज से पहले पारंपरिक चीनी शाही तांग राजवंश मोदी का स्वागत करेगा।
दोनों नेताओं के बीच सीमा संबंधी मसलों, चीन की समुद्री रेशम मार्ग परियोजना और भारत में चीनी निवेशों के मुद्दों पर बात होगी। चीन रेशम मार्ग परियोजना को आगे बढ़ाना चाहता है, जबकि इस परियोजना को लेकर भारत को कुछ संदेह हैं। चीन इस परियोजना के लिए पहले ही 40 अरब डॉलर की घोषणा कर चुका है।
मोदी शियान से बेजिंग जाएंगे, जहां वे प्रधानमंत्री ली क्विंग से द्विपक्षीय संबंधों पर वार्ता करेंगे। प्रधानमंत्री टेंपल आॅफ हेवन में योग और ताई ची के एक समारोह में हिस्सा लेंगे और बेजिंग के सिंघुआ विश्वविद्यालय में जनसभा को संबोधित करेंगे। मोदी शंघाई में चीन के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों से मुलाकात करेंगे और फुदान विश्वविद्यालय में सेंटर फार गांधी अध्ययन केंद्र का उद्घाटन करेंगे।
इसके बाद वे 17 मई को मंगोलिया पहुंचेगे जहां वह मंगोलिया के राष्ट्रपति साखियागिन एल्बेगदोर्ज से मुलाकात करेंगे। मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जो मंगोलिया की यात्रा करेंगे। मोदी मंगोलिया में लोकतंत्र के 25 वर्ष पूरे होने और दोनों देशों के राजनयिक संबंधों के 60 वर्ष पूरे होने की पृष्ठभूमि में यह यात्रा करेंगे। इसके बाद यात्रा के अंतिम चरण में प्रधानमंत्री दक्षिण कोरिया जाएंगे। मोदी 19 मई को सोल से दिल्ली लौटेंगे।