नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रपौत्र ने दावा किया है कि नेताजी की अस्थियों को नरसिम्हा राव की सरकार भारत लाना चाहती है, लेकिन खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के बाद सरकार ने अपने कदम वापस खींच लिए थे। खुफिया रिपोर्ट के अनुसार सरकार के इस कदम से देश में दंगे भड़कने की आशंका थी।
नेतीजी के प्रपौत्र ने कहा कि 1990 के दशक में तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने अस्थियां लाने की योजना बनाई थी, जो जापान के रेंकोजी मंदिर में रखे हुए हैं। लेकिन एक खुफिया रिपोर्ट के कारण ऐसा करने से मना कर दिया गया था। इसमें चेतावनी दी थी कि इस मुद्दे पर विवाद से कोलकाता में दंगे हो सकते हैं।
जापान की राजधानी टोक्यो के एक बौद्ध मंदिर में रखे गए इन अस्थियों को लेकर लेखक आशीष रॉय ने कहा कि सुभाष चंद्र बोस की राख उनकी बेटी अनिता घोष के पास होनी चाहिए। उन्हीं के पास इसका कानूनी अधिकार है। अनीता बोस इस समय जर्मनी में रहती हैं। आजाद हिंद सरकार की स्थापना की 78वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में गुरुवार को भारत-जापान समुराई केंद्र द्वारा विदेश मंत्रालय के सहयोग से आयोजित एक वर्चुअल सेमिनार में बोलते हुए आशीष रॉय ने ये बातें कही।
रॉय द्वारा लिखी किताब ‘Laid to Rest’ में उन्होंने दावा किया गया है कि उस वक्त पीएम नरसिम्हा राव ने इन अस्थियों को लाने के लिए एक हाई लेवल कमेटी बनाई थी। इस कमेटी में कांग्रेस नेता प्रणब मुखर्जी को भी शामिल किया गया था। इस कमेटी की जिम्मेदारी नेताजी की अस्थियों को वापस लाने की थी।
लेकिन तब देश के लोग नेताजी की मौत को लेकर ये विश्वास नहीं करते थे कि उनकी मौत 18 अगस्त, 1945 को ताइपे में एक विमान दुर्घटना में हो गई थी। ऐसे में राख के लाने पर विवाद हो सकता था और दंगे भड़क सकते थे। यह रिपोर्ट खुफिया ब्यूरो ने सरकार को दी थी। जिसके बाद सरकार ने इस योजना को रोक दिया था।
कहा जाता है कि नेताजी दुर्घटना में बच गए थे। या फिर वो विमान में थे ही नहीं। एक और थ्योरी के अनुसार उन्हें सोवियत जेल में बंद कर दिया गया था। इसके साथ ही ये भी कहा जाता रहा है कि बोस भारत लौट आए थे और एक साधु रूप में रहने लगे थे। हालांकि सरकार ने 2017 में ये मान लिया कि नेताजी की मृत्यु विमान दुर्घटना में ही हुई थी।