नारदा केस में आरोपियों की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कोलकाता HC में बचाव पक्ष के वकील ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि मुकुल रॉय और सुवेंदु अधिकारी को पार्टी क्यों नहीं बनाया? क्या वो बीजेपी में चले गए इस वजह से ऐसा किया गया? SG बोले- मैं केवल कानूनी सवालों के जवाब दे सकता हूं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सीबीआई की तरफ से पैरवी कर रहे थे। उनका कहना था कि 5 जजों की बेंच को केवल जमानत के मामले पर ही गौर नहीं करना चाहिए। इस मामले में सबसे अहम चीज ये है कि सीएम ममता बनर्जी और उनके कानून मंत्री ने किस तरह से कानून व्यवस्था का मजाक बनाने की कोशिश की। अगर वो आरोपियों की बेल की रद कराना चाहते तो सेक्शन 439 (2) के तहत एप्लीकेशन दाखिल कर सकते थे। लेकिन कोर्ट को समझना होगा कि बंगाल में राजनीतिक गुंडागर्दी के मामले अक्सर होते दिख रहे हैं। ये हरकत दूसरे राज्यों में भी हो सकती है। वो चाहते हैं कि 5 जजों की बेंच विचार करे कि कानून का राज कैसे स्थापित कराया जाए।
हाउस अरेस्ट में हैं सारे आरोपी
गौरतलब है कि बंगाल के मंत्री फरहाद हकीम और सुब्रत मुखर्जी को नारद रिश्वत केस में सोमवार सुबह गिरफ्तार किया गया था। उनके अलावा टीएमसी विधायक मदन मित्रा और पार्टी के पूर्व नेता सोवन चटर्जी भी अरेस्ट हुए। हालांकि, सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने सभी को जमानत दे दी थी, लेकिन हाईकोर्ट की डबल बेंच ने स्पेशल कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। फिलहाल सभी आरोपी हाउस अरेस्ट में हैं।
कोलकाता हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए जिन 5 जजों की बेंच बनाई है, उसमें एक्टिंग सीजे जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस आईपी मुखर्जी, जस्टिस हरीश टंडन, जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस अरिजीत बनर्जी शामिल हैं। टीएमसी नेताओं की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी, सिद्धार्थ लूथरा, कल्याण बंधोपाध्याय ने जिरह की।
सुनवाई के मुद्दे पर दोनों पक्षों में हुई तीखी जिरह
कल्याण बंधोपाध्याय ने कहा कि आर्टिकल 226 (3) के मुताबिक कोर्ट को पहले एक्स पार्टी आर्डर के मामले में वकेशन एप्लीकेशन पर पहले सुनवाई करनी होगी। मेहता ने कहा कि आरोपियों की अरेस्ट पर स्टे आर्डर आर्टिकल 226 के तहत 17 मई को दिया गया था। आर्टिकल 226 (3) कहता है कि कोर्ट को स्टे पर रिकॉल एप्लीकेशन की सुनवाई दो सप्ताह के भीतर करनी ही होगी। लिहाजा उनकी दरखास्त पर पहले सुनवाई की जाए।
जब हल्का हो गया कोर्ट रूम का माहौल
सुनवाई के दौरान हंसी मजाक भी देखने को मिला। बंधोपाध्याय ने सिंघवी से कहा कि वो राज्यसभा सांसद हैं। उन्हें विधायक चुनते हैं जबकि वो खुद लोअर हाउस (लोकसभा) के सदस्य हैं। उन्हें जनता चुनती है। लिहाजा उनकी संवेदनाएं लोगों की तरफ हैं। इस पर मेहता ने कहा कि ऐसे तो उनका कोई घर ही नहीं है। सिंघवी और लूथरा ने कोर्ट से कहा कि इस समय बड़ा मसला आरोपियों की रिहाई है।
जस्टिस मुखर्जी ने कहा कि मामला अब उनके सामने है और उन्हें ही तय करना है कि अरेस्ट कानूनी है या फिर गैर कानूनी। कोर्ट को लगता है कि प्रथम दृष्टया उसे इसी बात पर विचार करना चाहिए। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि अगर बेल दे दी जाती है तो सारा मामला ही खत्म हो जाएगा। इस पर सिंघवी ने कहा कि मेहता की दलीलों से लगता है कि वो बेल के अलावा बाकी सभी पहलुओं पर चर्चा के लिए राजी हैं। उनका कहना था कि बाकी के मामलों पर बाद में भी चर्चा हो सकती है। बेल का मसला बेहद महत्वपूर्ण है।
जज बोले, वो खुद भी हाउस अरेस्ट
बंधोपाध्याय ने कहा कि वो 40 साल से प्रैक्टिस कर रहे हैं पर उन्होंने ऐसा वाकया कोर्ट में नहीं देखा। उनका कहना था कि कोर्ट का रवैया देखकर वो बेहद निराश हैं। हम यहां एकेडमिक डिबेट में नहीं हैं जो बेवजह भाषणबाजी सुनते रहें। उनका कहना था कि सबसे पहले डबल बेंच के 17 मई के स्टे पर सुनवाई होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि साइक्लोन की वजह से उनके मुवक्किल काम नहीं कर पा रहे हैं। इस पर जज ने कहा कि हम सभी इस समय हाउस अरेस्ट में हैं।
मेहता ने कहा कि भीड़तंत्र के जरिए अगर ऐसे ही सिस्टम पर दबाव बनता रहा तो ये प्रैक्टिस गैंगस्टर भी अपनाने लगेंगे। इससे आम आदमी का विश्वास डिग जाएगा। मेहता ने कहा कि वो ये टिप्पणी जज के खिलाफ नहीं कर रहे हैं। उनका कहना था कि राज्य सरकार ने जिस तरह से सीबीआई दफ्तर का घेराव किया वो चौंकाने वाला था।
जस्टिस मुखर्जी ने कहा कि अगर आप रिकॉर्ड के हवाले से दावा नहीं कर रहे हैं कि सीबीआई कोर्ट के जज पर प्रेशऱ बनाया गया तो कोर्ट कैसे इस पर विचार कर सकती है। एक्टिंग सीजे सीजे बिंदल ने कहा कि वो बंगाल सरकार को पार्टी बनाने पर सहमत हैं। मेहता ने कोर्ट से इस आशय का आदेश जारी करने को कहा, जिससे विस्तार से जिरह शुरू की जा सके।
कोर्ट ने सुनवाई पर विराम लगाते हुए कहा कि एसजी ने बताया है कि सीबीआई की स्पेशल लीव पटीशन सुप्रीम कोर्ट से वापस ले ली गई है। वो इसमें कहते हैं कि बंगाल सरकार को पक्षकार बना लिया गया है लेकिन हाईकोर्ट के सामने पेश किए की पटीशन में सरकार को पक्षकार बनाने की बात का जिक्र नहीं है।

