ब्रह्मांड सदा से मनुष्य की जिज्ञासा का विषय रहा है। रात को दिखने वाले चांद-तारे सदा उसके मन में कुतूहल जगाते रहे हैं कि आखिर पृथ्वी से ऊपर की दुनिया में क्या है। वहां जीवन की संभावना है या नहीं। इसी कुतूहलवश मनुष्य ने बह्मांंड को खंगालने की कोशिश की। जैसे-जैसे विज्ञान उन्नत होता गया, बह्मांंड के रहस्यों को खोलने की उसकी जिज्ञासा भी बढ़ती गई। उसने अंतरिक्ष यान भेजने शुरू किए।

अंतरिक्ष की तस्वीरें इकट्ठा करनी शुरू की। इसी क्रम में एक के बाद एक ताकतवर दूरबीनें और कैमरे बने, ताकि दूसरे ग्रहों का बारीकी से अध्ययन किया जा सके। इसी प्रयास की नई कड़ी के रूप में जेम्स वेब दूरबीन का निर्माण हुआ है, जिसने ब्रह्मांड की अद्भुत तस्वीरें ली हैं। ब्रह्मांड के रहस्यों को खोलने के इन्हीं प्रयासों पर प्रकाश डाल रहे हैं प्रमोद भार्गव।

हमारी पृथ्वी के चारों ओर अनंत अंतरिक्ष यानी ब्रह्मांड है। दिन के समय सूर्य के प्रकाशीय तेज में यह हमें हल्का नीला या आसमानी दिखाई देता है, इसीलिए इसे हम आसमान कहते हैं। पर रात में इसी आकाश में हमें चंद्रमा समेत असंख्य झिलमिलाते दीप्तिमान तारे दिखाई देते हैं। तब मन में प्रश्न उठते हैं कि आखिर ये चलायमान तारे या पिंड हैं क्या? ये कैसे बने हैं? ये इतने रहस्यमयी क्यों हैं?

ज्ञान से परे आदिम मनुष्य भी इनकी थाह लेने में लगा रहा है। यह मनुष्य जब कुछ ज्ञात नहीं कर पाया, तो उसने सूर्य और चंद्रमा को दिन और रात या उजाले और अंधकार का रहस्यमयी कारण मान कर नमन करना शुरू कर दिया। यह पूजा या प्रार्थना नहीं थी, लेकिन प्रकृति के प्रदेयों के प्रति कृतज्ञ भाव अवश्य था। कालांतर में वैदिक ऋषियों ने इसे खंगाला और चित्रों और मूर्तियों के रूप में हजारों साल पहले अभिव्यक्त भी कर दिया। भौतिकी के आधुनिक वैज्ञानिक पिछले चार सौ साल से इसे खंगालने में लगे हैं।

चौदह अरब साल पहले अस्तित्व में आए इस ब्रह्मांड का विस्तार कई हजार योजन या किलोमीटर है। इस अनंत आकार में ग्रह, नक्षत्र, तारे, मंदाकिनियां समाई हुई हैं। वास्तविकता तो यह है कि उनकी सही गिनती किसी को भी मालूम नहीं है। इसलिए वैज्ञानिक और विज्ञान शिक्षकों को एक बार यह भ्रम हो सकता है कि उन्होंने अंतरिक्ष के बारे में बहुत कुछ जान लिया है। लेकिन जिस तरह से ब्रह्मांड का विस्तार अनंत है, उसी तरह उसमें समाए आकाशीय पिंड, तत्व, पदार्थ, गैसें भी अनगिनत और अटूट हैं।

हम ब्रह्मांड के निर्माण में संलग्न सभी पदार्थों और ऊर्जा का मात्र चार प्रतिशत ही जान पाए हैं। शेष छियानबे प्रतिशत में से तेईस प्रतिशत तो अदृश्य पदार्थ हैं और तिहत्तर प्रतिशत अदृश्य ऊर्जा है। जेम्स वेब कैमरे और हबल स्पेस दूरबीन से लिए गए रंगीन चित्रों से अंतरिक्ष के लगभग वही चित्र सामने आए हैं। ये अतीत यानी बीते हुए कल के हैं, क्योंकि दूरदर्शी कैमरों के लैंस में जो चित्र कैद हुए हैं, उन्हें आकाशगंगा या मंदाकिनी से दूरबीन तक आने में आठ करोड़ प्रकाश वर्ष यानी 4.6 अरब वर्ष का सफर तय करना पड़ा है। फलस्वरूप वर्तमान अंतरिक्ष फिलहाल अबूझ पहेली ही है।

शक्तिशाली दूरबीन का कमाल

आज विज्ञान ब्रह्मांड को जितना भी जान पाया है, उसमें दूरबीनों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों को और निकटता से ज्ञात कर लिया जाए, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए दुनिया के तीन श्रेष्ठतम अंतरिक्ष अभिकरणों ने संयुक्त अभियान का संकल्प लिया और अत्यंत आधुनिक लेंसों से युक्त दूरबीन जेम्स वेब का निर्माण किया। इन लैंसों को कैमरा तकनीक से भी जोड़ा गया, जिससे दूरबीन की आंख से हर उस दृश्य का चित्र खींच लिया जाए, जो विलक्षण होने के साथ नवीन हो।

इस दूरबीन के निर्माण में नासा (नेशनल एरोनाटिक्स एंड स्पेस एडमिनिट्रेशन), सीएसए (कैनेडियन स्पेस एजेंसी) और ईएसए (यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी) का योगदान रहा। इस बड़ी और शक्तिशाली दूरबीन को एक राकेट के जरिए अंतरिक्ष में प्रत्यारोपित किया गया। इसका पूरा नाम ‘जेम्स वेब अंतरिक्ष दूरदर्शी’ (जेडब्ल्यूएसटी) है। इसे 25 दिसंबर, 2021 को अवरक्त अंतरिक्ष वेधशाला के रूप में गुआना स्पेस सेंटर सेएरियन-5 प्रक्षेपण वाहन से प्रक्षेपित किया गया था।

जेम्स वेब को हबल अंतरिक्ष दूरबीन की अगली कड़ी के रूप में लाया गया है। हबल को 2004 में नासा ने स्थापित किया था। दरअसल, जेम्स वेब एक ऐसी आंख है, जो हबल से भी बहुत आगे अपनी दृष्टि पहुंचाने में सक्षम है। इसी कारण यह ब्रह्मांड के उन दृश्यों के चित्र खींच पाई, जो हबल के अलावा अन्य दूरबीनें नहीं ले पा रही थीं। नासा के प्रशासक जेम्स एडविन वेब ने इस दूरबीन के निर्माण में अहम् भूमिका निभाई थी, इसलिए उनके नाम पर इसका नामकरण किया गया।

इस दूरबीन की स्थापना की पृष्ठभूमि में चार उद्देश्यों को पूरा करना है। पहला, बिग-बैंग के पश्चात ब्रह्मांड में बनी सबसे पहली आकाशगंगा और सबसे पहले अस्तित्व में आए तारे को तलाशना। दूसरे, आकाशगंगाओं का गठन और उनके विकास का अध्ययन करना। तीसरे, तारों के गठन और ग्रहीय प्रणालियों को समझना और चौथा, जीवन की उत्पत्ति के आधारभूत तत्वों को ज्ञात करना।

जगत और जीव की उत्पत्ति के रहस्य को अब तक पश्चिमी विद्वान दृश्य प्रकाश के माध्यम से जानने की कोशिश में थे, लेकिन जेम्स वेब के निर्माण की पृष्ठभूमि का मुख्य लक्ष्य अवरक्त यानी अदृश्य प्रकाश या पदार्थ को जानना भी है। क्योंकि इनकी उत्पत्ति के कारणों को अवरक्त प्रकाश के माध्यम से कहीं अधिक प्रभावी ढंग से ज्ञात किया जा सकता है। इसी अवरक्त प्रकाश को भारतीय दर्शन में अदृश्य पदार्थ कहा गया है, जिसे समस्त चेतन और अचेतन में चेतना का आधार माना गया है।

ब्रह्मांड के ग्रह

असंख्य चमकती-दमकती मंदाकिनियों के बीच एक छोटा-सा पीतांबर ओढेÞ रहने वाला तारा है, ‘सूर्य’। इसी के चारों ओर नीली-हरी पृथ्वी परिक्रमा करती रहती है। सूर्य का जन्म करीब पांच अरब साल पहले हुआ। इसके जन्म के कारक चक्कर लगाती गैसों के बादल और सौर निहारकाएं हैं। निहारिकाओं के निकट के एक तारे की जब मौत हो रही थी, तब इसके विध्वंसक आघात और घर्षण से जो तीव्रगामी तरंगें निकलीं, उन्होंने निहारिकाओं में उपलब्ध गैस और धूल से सूर्य के अस्तित्व का निर्माण किया।

निहारिकाओं की गैसें और धूल से सूर्य के बनने की प्रक्रिया से जो अपशिष्ट बचे, उनने सूर्य के चारों ओर एक वलय अर्थात घेरा बना लिया। यही वलय जब पूरे आकार में आ गया, तो उसे सौर-मंडल कहा गया। यानी सूर्य और उसके ग्रहों का परिवार। इस कुटुंब में सूर्य के अलावा बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेपच्यून और प्लूटो शामिल हैं।

इस परिवार में नौ ग्रह जरूर हैं, पर केवल तीसरा ग्रह पृथ्वी ही ऐसा है, जहां मानव समेत अन्य जीव-जगत के लिए जीवन संभव हो पाया है। पृथ्वी पर जीवन इसलिए संभव हो पाया, क्योंकि यह शुक्र की तरह सूर्य के इतने समीप नहीं है, कि जल-उबल कर भाप बन जाए। और न ही मंगल की तरह इतनी दूर है कि पानी जम कर बर्फ में परिवर्तित हो जाए। द्रव्य रूप में पानी एक ऐसा तरल पदार्थ है, जिसके घोल में ज्यादातर वस्तुएं विलय हो जाती हैं। जल की इसी विलक्षणता के चलते धरती पर जीवन का क्रमिक विकास संभव हुआ। पृथ्वी, शुक्र और मंगल ग्रहों के बीच में स्थित है।