तीन तलाक के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले प्रमुख संगठन आॅल इण्डिया मुस्लिम वूमेन पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमडब्ल्यूपीएलबी) तथा अन्य तनजीमों ने संसद के आगामी सत्र के मद्देनजर तलाक-ए-बिद्दत रोधी विधेयक की समीक्षा की मांग की है। इन संगठनों का कहना है कि पिछले साल दिसंबर में लोकसभा में पारित मुस्लिम महिला (विवाह में अधिकार संरक्षण) विधेयक 2017 में अनेक खामियां हैं और सरकार को एक बार सभी पक्षों को बैठाकर चर्चा करके उन कमियों को दूर करना चाहिये। एआईएमडब्ल्यूपीएलबी की अध्यक्ष शाइस्ता अं­बर ने बताया कि उन्होने करीब 10 दिन पहले विधि आयोग और कानून मंत्रालय को पत्र भेजकर गुजारिश की थी कि वह तीन तलाक रोधी विधेयक पर चर्चा के लिये आॅल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, अहले हदीस, मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को लेकर संघर्ष कर रहे संगठनों, वकीलों और समाजसेवियों को बुलाकर बातचीत करें और फिर से नया मसविदा तैयार करें।

उन्होंने कहा कि इससे तीन तलाक रोधी विधेयक की खामियां दूर होंगी। वह लोकप्रिय होगा, उसका शरीयत से टकराव नहीं होगा और तीन तलाक की बुराई भी खत्म हो सकेगी। हम चाहते हैं कि राज्यसभा में जब विधेयक पर चर्चा हो तो विधि आयोग और कानून मंत्रालय संशोधित मसविदा तैयार करके सभी सांसदों को दें, ताकि हम लोगों के सुझावों पर भी चर्चा हो सके।
शाइस्ता ने कहा कि तीन तलाक एक बहुत बड़े समुदाय का मसला है मगर इसके खिलाफ विधेयक का मसविदा तैयार करने से पहले इसी समुदाय के रहनुमाओं से कोई बातचीत नहीं की गयी। सिर्फ विपक्ष ने ही नहीं बल्कि हमने भी बिल पर आपत्तियां उठायी थीं। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों दिल्ली में एक कार्यक्रम में कें­द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद से इन आपत्तियों पर उनकी बातचीत हुई थी। इस दौरान प्रसाद ने कहा कि सरकार द्वारा तैयार किये गये विधेयक को लेकर भ्रम फैलाया गया है तो मैंने कहा कि किसी वजह से ही ऐसा हुआ होगा। बेहतर होगा कि हम मिल बैठकर इस पर बात करें। कुरान शरीफ का कानून हर किसी के लिये न्याय की बात करता है, लिहाजा उसका कानून दुनिया के किसी भी कानून से नहीं टकराता।

इस बीच, मुस्लिम वीमेंस लीग की महासचिव नाइश हसन ने कहा कि हिंस्तान में तीन तलाक के दुरुपयोग से परेशान औरतों की आवाज पर सुप्रीम कोर्ट ने इस बुराई के खिलाफ पिछले साल 22 अगस्­त को ऐतिहासिक फैसला देते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया था। मगर इसे रोकने के लिये सरकार ने जो सात सूत्रीय विधेयक पेश किया वह बिल्कुल वाहियात है। यह हमारी सरकार की गलती है। हम मजबूर महिलाओं के हक के लिये जुनून की हद तक लड़ाई लड़ रहे हैं। जब हमें उस बिल में हजार खामियां दिख रही हैं तो औरों को भी दिखती ही होंगी।

उन्होंने कहा कि तीन तलाक को अपराध बनाने का वह समर्थन करती हैं, क्योंकि इस्लाम के दूसरे खलीफा हजरत उमर ने भी इसे अपराध की श्रेणी में रखा था, लेकिन जिस तरह से सरकार द्वारा पेश किये गये बिल में तीन तलाक देने वाले मर्द को तीन साल की जेल का प्रावधान किया गया है, उससे घर जुड़ने के बजाय टूटेंगे। सरकार को सम्­बन्धित सभी पक्षों के साथ बैठकर बात करनी चाहिये और फिर उसमें निकलने वाले सुझावों के आधार पर विधेयक तैयार करना चाहिये।

नाइश ने कहा कि तमाम आपत्तियों के बावजूद सरकार आखिर क्­यों तीन तलाक रोधी बिल की समीक्षा नहीं कराना चाहती। इससे लगता है कि उसकी नीयत ठीक नहीं है। वह सिर्फ ‘इल्जाम तराशी’ करना चाहती है। मेरा मानना है कि इस बिल की समीक्षा होनी चाहिये, और इसे ठीक किया जाना चाहिये। मालूम हो कि तीन तलाक रोधी बिल को पिछले साल दिसंबर में लोकसभा में विपक्ष के विरोध के बीच पारित कर दिया गया था, मगर यह राज्यसभा में पारित नहीं हो सका था। संसद का मानसून सत्र कल से शुरू हो रहा है और इसमें इस बिल को दोबारा पेश किये जाने की संभावना है।