उत्तर प्रदेश में हो रहे निकाय चुनाव इस बात का फैसला करने जा रहे हैं कि मतदाताओं के बीच किस राजनीतिक दल का कितना सियासी रसूख है। इस चुनाव में इस बात का फैसला भी होना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का विकास माडल और अपराधियों को कुचलने की उनकी नीति ने उत्तर प्रदेश वासियों के दिलों में कितनी गहरी पैठ बनाई है।

साथ ही फैसला इस बात का भी होना है कि 2014 से लगातार हार का स्वाद चख्ती आ रही समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की लोकसभा चुनाव के पहले की जमीनी हकीकत क्या है? पहले बात सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की। 2017 में उत्तर प्रदेश में हुए निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 16 में से 14 नगर निगमों के चुनावों में अपना विजयी परचम लहराया था। यह वह वक्त था जब उत्तर प्रदेश में पहली बार भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी और उस सरकार को बने ज्यादा वक्त नहीं हुआ था। उस चुनाव में 198 में से 70 नगर पालिका परिषदों में और 438 में से 100 नगर पंचायतों में भारतीय जनता पार्टी को जीत हासिल हुई थी।

2017 के निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सफतला का फीसद 87.5 था, जबकि नगर पालिका परिषदों में 35.5 फीसद और नगर पंचायतों में 22.8 फीसद रहा। नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों में उम्मीद के मुताबिक सफलता हासिल न कर पाने की चुनौती इस बार भाजपा के सामने है। इसकी बड़ी वजह उसकी छह साल की सरकार का कामकाज है।

छह साल में योगी का बुलडोजर माडल और लगभग 39 लाख करोड़ रुपए का निवेश उत्तर प्रदेश में आने से पार्टी को लगता है कि इस बार उसका असर जीत के अंतर पर दिखाई देगा। यही वजह है कि पार्टी ने अपने सभी मंत्रियों, विधायकों और कार्यकर्ताओं की लंबी फौज चुनाव मैदान में उतार दी है।

उधर समाजवादी पार्टी को उम्मीद है कि इस बार के निकाय चुनाव में उसका प्रदर्शन पिछले चुनाव से अधिक बेहतर रहेगा। पार्टी ने इसलिए प्रत्येक सीट पर ऐसे प्रत्याशियों पर दांव लगाया है जिनकी छवि जनता के बीच बेहतर है और जो जनता के बीच अपनी पहचान काफी समय से बनाए हुए हैं। समाजवादी पार्टी के विधान परिष्रद सदस्य राजेन्द्र चौधरी कहते हैं कि निकाय चुनाव 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की पटकथा लिखने जा रहे हैं। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ऐसा अप्रत्याशित प्रदर्शन करेगी जिससे सत्ताधारी भाजपा अपने छह साल के कार्यकाल के बारे में मूल्यांकन करने को विवश हो जाएगी।

वहीं बहुजन समाज पार्टी ने अपने पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं की बदौलत चुनाव मैदान मारने की रणनीति तैयार की है। पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने अपने सभी कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए हैं कि वे भाजपा और सपा के शासनकाल में हुए कामों और उसके जनता को मिले लाभ की सही जानकारी से जनता को रू-ब-रू कराएं। साथ ही पार्टी के पारम्परिक मतदाताओं के बीच जा कर उन्हें भ्रमित करने की विपक्षी साजिशों को नाकाम करें।

इतना ही नहीं आठ स्थानों पर मुस्लिम मेयर प्रत्याशी उतार कर बसपा ने सपा के पारम्परिक वोट बैंक में सेंधमारी की भी कोशिश की है। निकाय चुनाव की सियासी बिसात उत्तर प्रदेश में बिछ चुकी है। इस बिसात में भाजपा, सपा और बसपा में से कौन मैदान मारता है यह तो चुनाव परिणाम तय करेंगे लेकिन इतना तय है कि इन तीनों ही राजनीतिक दलों में भारतीय जनता पार्टी का सर्वस्व दांव पर लगा है।