उत्तर प्रदेश का माफिया डॉन मुख्तार अंसारी अब इस दुनिया में नहीं रहा। 60 साल की उम्र में उसने दुनिया को अलविदा कह दिया। पिछले कई दिनों से मुख्तार अंसारी की तबीयत खराब चल रही थी, लेकिन गुरुवार रात को उसे अचानक से हार्ट अटैक आया और डॉक्टर की पूरी टीम भी उसकी जान नहीं बचा सकी। इस समय यूपी में हाई अलर्ट है और सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी बैठक बुला रखी है।

जानकारी के लिए बता दें कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में और खासकर पूर्वांचल की सियासत में मुक्तार अंसारी का अपना नाम था। राजनीति के अपराधीकरण में तो उसका नाम आता ही है, इसके साथ-साथ कई बड़े अपराध में भी उसका नाम शामिल था। यूपी पुलिस के मुताबिक मुख्तार अंसारी पर अलग-अलग धाराओं में 65 से ज्यादा मामले दर्ज थे।

अवधेश राय हत्याकांड

बात जब भी मुख्तार अंसारी जुर्मों की आती है, सबसे ऊपर अवधेश राय हत्याकांड को रखा जाता है। असल में कांग्रेस नेता अवधेश राय देश की 3 अगस्त 1991 को बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। 33 साल पहले हुए हत्याकांड ने यूपी में दहशत पैदा कर दी थी और मुख्य आरोपी के रूप में पहचान मुख्तार अंसारी की हुई। ये घटना वाराणसी के चेतगंज थाना क्षेत्र के लहुरा पीर इलाके में हुई थी। उस 3 अगस्त की रात को कांग्रेस नेता अवधेश राय अपने भाई अजय राय के साथ घर के बाहर खड़े थे। बात कर रहे थे, किसी बात पर चर्चा चल रही थी, लेकिन तभी एक तेज रफ्तार वैन वहां आई और कुछ बदमाशों ने उसे गाड़ी से उतरकर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। उस फायरिंग में अवधेश राय मारे गए, उस गोलीबारी ने उनकी जान ले ली। उस हत्याकांड के तुरंत बाद कांग्रेस नेता के भाई अजय राय ने पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई और आरोप मुख्तार अंसारी पर लगा दिया।

बताया जाता है कि उस जमाने में चंदासी कोयला मंडी में मुख्तार वसूली का काम करता था। काफी पैसा वो उस तरह से कमा रहा था। लेकिन कांग्रेस नेता अवधेश राय भी एक दबंग नेता थे, अंसारी के कट्टर दुश्मन बृजेश सिंह के भी करीबी थे। उस समय अंसारी और उसकी वसूली की बीच में अवधेश आ चुके थे। अंसारी के जो दूसरे साथी वसूली का काम करते थे, उन्हें भी सभी के सामने अवधेश ने जलील किया था। ऐसे में दुश्मनी पहले से थी, नाराजगी चरम पर चल रही थी और मौका देकर मुख्तार अंसारी ने अवधेश राय का काम तमाम कर दिया। उस मामले में अंसारी को उम्र कैद की सजा हुई थी।

कृष्णानंद राय हत्याकांड

मुख्तार अंसारी के जुर्म की बात जब आती है, कृष्णानंद राय हत्याकांड भी उसमें काफी ऊपर आता है। एक सिटिंग विधायक की अंसारी ने हत्या करवा दी थी, 400 से ज्यादा गोलियां चली थीं,एक-47 बरामद की गईं और न जाने कितना खून बहाया गया। उस हत्याकांड में कुल 6 लोगों को मुख्तार अंसारी के आदमियों ने मौत के घाट उतार दिया था। इस रंजिश की कहानी साल 2002 में शुरू हुई थी। तब गाजीपुर जिले की मोहम्मदाबाद सीट पर सबसे बड़ा सियासी खेल हुआ था। जिस सीट को मुख्तार अंसारी का गढ़ माना जाता था, वहां से बीजेपी के कृष्णानंद राय ने बड़ी जीत हासिल की थी। अंसारी के घर में हुई वो सेंधमारी वो कभी भूल नहीं पाया और शुरुआत से ही कृष्णानंद राय और उसके बीच में एक अदावत देखने को मिली।

समय बीता गया, एक तरफ मऊ में मुख्तार अंसारी ने अपना रुतबा बनाया तो बीजेपी के अंदर हिंदूवादी छवि की वजह से कृष्णानंद राय भी सफलता की सीढ़ी चढ़ते गए। लेकिन साल 2005 में उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स ने कृष्णानंद राय को चेतावनी दी थी। उन्हें बताया था कि उनकी जान को खतरा है, लेकिन फिर भी उन्होंने किसी भी चेतावनी को कोई तवज्जो नहीं दी। इसी इसी वजह से जब कृष्णानंद राय एक कार्यक्रम से वापस लौट रहे थे, कुछ हथियारबंद लोगों ने उनके काफिले को घेर लिया। एके-47 और कई दूसरे ऑटोमैटिक हथियार से ताबड़तोड़ फायरिंग की गई, मौके पर 6 लोगों की मौत हो गई। कृष्णानंद राय की भी हत्या कर दी गई। जब पोस्टमार्टम हुआ तो किसी के शरीर से 60 गोलियां निकलीं तो किसी के शरीर से 100 गोलियां।

अब ये तो दो बड़े हत्याकांड हुए, लेकिन इसके अलावा मन्ना हत्याकांड के गवाह रामचंद्र मौर्य की हत्या, मऊ में ए श्रेणी ठेकेदार मन्ना सिंह हत्याकांड, 1996 में गाजीपुर के एसपी शंकर जायसवाल पर जानलेवा हमला करना, 1997 में पूर्वांचल के सबसे बड़े कोयला कारोबारी रुंगटा का अपहरण, ये कुछ ऐसे जुर्म थे जिनके साथ भी मुख्तार अंसारी का नाम जुड़ा हुआ था। हैरानी की बात ये है जेल में रहते हुए भी मुख्तार अंसारी पर आठ मामले दर्ज हुए थे।