Who is Mukesh Chandrakar: पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या किस बेरहमी से की गई, ये उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आ गया है। पूरे देश में मुकेश चंद्राकर को श्रद्धांजलि दी जा रही है। मुकेश चंद्राकर क्यों अन्य पत्रकारों से अलग थे, इसको लेकर द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है। महुआ शराब बेचने से लेकर मैकेनिक के तौर पर काम करने और फिर पत्रकारिता के लिए ऑफिस रेंट पर लेने तक, 32 साल के मुकेश चंद्राकर का जीवन एक अलग मोड़ पर था।

बीजापुर के गांव में हुआ जन्म- मुकेश चंद्राकर का जन्म छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के बांसगुड़ा गांव में हुआ। यह गांव 2000 के दशक के मध्य में नक्सली समस्या से बुरी तरह प्रभावित गांवों में से एक था। रिपोर्ट के अनुसार, मुकेश चंद्राकर का परिवार हिंसा की वजह से प्रभावित हुआ और उन्हें बीजापुर में सरकारी शेल्टर में शरण लेनी पड़ी। बचपन में पिता की मौत के बाद मुकेश और उनके भाई युकेश की परवरिश उनकी मां ने की। मुकेश की मां एक आंगनबाड़ी वर्कर थीं। साल 2013 में कैंसर की वजह से उनका निधन हो गया।

मुकेश के एक दोस्त ने बताया कि उन्होंने अपनी मां को बचाने के लिए पूरी कोशिश की लेकिन उनके पास सिर्फ 50 हजार रुपये थे। दोस्तों ने जितना संभव हो सकता था, उनती मदद की। उन्होंने याद करते हुए बताया कि मुकेश ने उन्हें बताया था कि उनका परिवार उनके बचपन के समय दूध तक खरीदने में असमर्थ था। उनके दोस्त ने बताया, “वह अपनी मां से बहुत प्यार करते थे लेकिन बीजापुर में हालातों कि वजह से उनकी मां ने उन्हें पढ़ाई पूरी करने के लिए दंतेवाड़ा भेज दिया। उन्होंने महुआ शराब बेची और जीवन यापन करने के लिए बाइक मैकेनिक के तौर पर भी काम किया।”

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मुकेश चंद्राकर कैसे बने पत्रकार?

अपने भाई युकेश को फ्रीलांस पत्रकार के तौर पर काम करता देख, मुकेश को यह प्रोफेशन पसंद आने लगा, जो जल्द ही उनके पैशन बन गया। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट मे ंबताया गया है कि उन्होंने सहारा, बंसल, न्यूज 18 और एनडीटीवी जैसे कई चैनलों के लिए काम किया। पत्रकारिता करते हुए उन्होंने जंगलों के अंदर मुठभेड़ स्थलों से जमीनी रिपोर्ट करके अपना नाम बनाया।

मुकेश को लेकर क्या बोले पत्रकार?

मुकेश मददगार नेचर के थे। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया है कि मुकेश को अन्य पत्रकारों को राज्य में यात्रा करने में मदद करने के लिए भी जाना जाता था, अक्सर वह उन्हें अपनी मोटरसाइकिल पर दुर्गम क्षेत्रों में ले जाते थे।

एक पत्रकार ने बताया, “मुझे अभी भी याद है कि उसने मुझसे कहा था, ‘दादा कौनसी स्टोरी है? कब आ रहे हो?’ उन्होंने पत्रकारिता के जोश से काम किया। एक बार भी किसी स्टोरी के लिए उन्हें दोस्ती के अलावा कुछ नहीं दिया गया। प्रदेश के ज्यादातर रिपोर्ट्स के लिए, मुकेश ही वह व्यक्ति थे जो उन्हें मौके पर ले जाते थे। उन्हें जो खबरें दी जाती थीं, उनके लिए उन्हें बहुत कम पैसे मिलते थे और उनकी आय बहुत अस्थिर थी। एक युवा पत्रकार के रूप में, उनके पास बस उत्साह था।”

उन्होंने आगे बताया, “हम बस्तर जाते थे और वापस आ जाते थे लेकिन मुकेश जैसे लोकल पत्रकार वहां रहते थे और उनपर हमेशा टारगेट किए जाने का खतरा बना रहता था। साढ़े चार सालों तक, मुकेश ने यह बार-बार किया, सिर्फ मेरी लिए ही नहीं, कई अन्य लोगों के लिए भी। बस्तर और माओवादियों के साथ संघर्ष की कहानियां उनकी मदद से ही लिखी जाती थीं। अगर पत्रकारिता का एक मूल सिद्धांत सूचना देना, नए क्षेत्रों तक पहुंचना, बेजुबानों को आवाज देना है, तो मुकेश जैसे पत्रकार बेमिसाल हैं।”

‘स्थिरता आ रही थी तो जान चली गई’

दंतेवाड़ा के पत्रकार और मुकेश के करीबी दोस्त रंजन दास बताते हैं कि साल 2016 में जब वो दंतेवाड़ा से बीजापुर शिफ्ट हुए थे तो मुकेश ने उन्हें कैसे मदद की थी। रंजन दास ने कहा, “वो मिट्टी के घर में रहते थे और 2200 रुपये किराया देते थे। उन्होंने मुझे पांच सालों तक अपने साथ रहने दिया क्योंकि हम दोनों ही वित्तीय संकट का सामना कर रहे थे। बीजापुर में ज्यादातर पत्रकार किराए पर ही रहते हैं। वो आदिवासी मुद्दों, खासकर जल, जंगल और ज़मीन के प्रति बेहद संवेदनशील थे। ग्रामीणों के विरोध प्रदर्शन, फर्जी मुठभेड़ों, नागरिकों की हत्याओं, खराब बुनियादी ढांचे, कुपोषण और खराब स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में उनकी कवरेज ने उन्हें आदिवासियों के बीच भी लोकप्रिय बना दिया। वे अपने काम से प्यार करते थे और उसे जीते थे।”

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रंजन दास ने बताया कि कई बार अपनी ग्राउंड रिपोर्ट्स के लिए उनपर सरकार की तरफ से प्रेशर आया और कई बार माओवादियों ने भी उन्हें धमकाया। हमें उनसे (माओवादियों से) नुकसान पहुंचने का डर था, लेकिन हम कभी नहीं सोच सकते थे कि कोई अपराधी हमें नुकसान पहुंचाएगा। रंजन दास ने आगे कहा कि अन्य पत्रकारों से प्रेरणा लेते हुए मुकेश ने अपना खुद का यूट्यूब चैनल (बस्तर जंक्शन) शुरू किया, जिसके 1.66 लाख सब्सक्राइबर्स थे।

उन्होंने बताया कि शुरुआत में उन्हें हमारी खबरों के आधार पर कुछ सौ से लेकर हज़ार रुपए तक मिलते थे। लेकिन उनके यूट्यूब चैनल से उन्हें हर महीने 20,000 रुपये और एक बार तो 50,000 रुपये भी मिल गए। जब ​​उनकी ज़िंदगी स्थिर हो रही थी, तभी यह घटना घटी।

CoBRA जवान को छुड़ाने निभाई थी अहम भूमिका

साल 2021 में मुकेश उन सात पत्रकारों में शामिल थे, जिन्होंने सुरक्षाबलों को माओवादियों से बातचीत में मदद कर एक कोबरा जवान को छुड़वाया था। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया है कि मुकेश ने 25 दिसंबर को NDTV पर एक रिपोर्ट की थी जिसमें बीजापुर में एक सड़क की खराब स्थिति को उजागर किया गया था, जिसके बाद सरकार ने जांच शुरू की थी। इस सड़क का ठेकेदार सुरेश चंद्राकर था। पुलिस ने बताया कि उसकी कहानी से नाराज सुरेश के भाई रितेश ने कथित तौर पर मुकेश की हत्या कर दी। पुलिस ने बताया कि सुरेश ही हत्या का मास्टरमाइंड है।