मदर टेरेसा को रोमन कैथोलिक चर्च के संत का दर्जा दिए जाने की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। रविवार, 4 सितंबर को भारतीय समयानुसार दोपहर 2 बजे वेटिकन सिटी के सेंट पीटर्स स्क्वायर में विशेष जनता के सामने पोप फ्रांसिस, मदर टेरेसा को रोमन कैथोलिक चर्च का संत घोषित करेंगे। इस मौके पर संतों की मण्डली के अधिकारी (प्रिफेक्ट), कार्डिनल एजेंलो अमाटो और मदर टेरेसा को संत बनाने के अनुबंधक, फादर ब्रायन कोलोदिएचुक पोप से पूछेंगे कि क्या कलकत्ता की धन्य मदर टेरेसा का नाम संतों की किताब में लिखा जाए। इसके बाद कार्डिनल मदर टेरेसा की संक्षिप्त जीवनी पढ़कर सुनाएंगे। जिसके बाद एक प्रार्थना होगी और फिर संतो की लीटानी। उसके बाद पोप लैटिन में केननिज़ैषण का फॉर्मूला पढ़ेंगे। जिसके बाद वे कहेंगे “In the name of the Father and of the Son and of the Holy Spirit” और सब बोलेंगे “Amen”। यह मदर टेरेसा के संत होने की आधिकारिक मान्यता होगी। उनके अवशेष वेदी पर लाए जाएंगे और असेंबली ”एलेजुआ” गाएगी। इसके बाद प्रिफेक्ट और अनुबंधक पोप इस घोषणा के लिए पोप का शुक्रिया अदा करेंगे और गुजारिश करेंगे कि इस संबंध में अपोस्टोलिक पत्र लिखने के प्रबंध किए जाएं। पोप जवाब में कहेंगे, ”हम आज्ञा देते हैं”, और फिर प्रिफेक्ट और अनुबंधक, पोप से गले मिलेंगे।
आधिकारिक रूप से मदर टेरेसा को कलकत्ता की संत कहा जाएगा। अल्बानिया में जन्मी अग्नेसे गोंकशे बोजशियु 1928 में नन बनने के बाद सिस्टर टेरेसा बन गई थीं। 24 मई, 1937 को उन्होंने गरीबी, शुद्धता और आज्ञाकारिता के जीवन को चुना और लॉरेटो नन की प्रथा के अनुसार, ”मदर” की उपाधि ली। भारत और कोलकाता में उन्हें मदर टेरेसा ही बुलाए जाने की उम्मीद है क्योंकि उनके साथ भारतीयों का गहन भावनात्मक जुड़ाव है।
इस प्रक्रिया से जुड़े कई सवाल हैं, जिनके जवाब जानना जरूरी है।
कैथोलिक चर्च में कितने संत हैं? उन्हें किसने मान्यता दी?
10,000 से भी ज्यादा शख्सियतों को संत नामित किया गया है, लेकिन कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। संतों की उपासना की शुरुआत 100 ईस्वी में शुरू हुई, जब र्इसाइयों ने ईसाई ‘शहीदों’ को सम्मानित करना शुरू किया। 10 सदी तक, रोमन कैथोलिक चर्च ने घोषणा कर दी कि बिना उसकी अनुमति के किसी की उपासना संत के रूप में नहीं की जाएगी। किसी शख्सियत को संत घोषित करने की पहला रिकॉर्डेड प्रक्रिया 993 ईस्वी में हुई, जब पोप जॉन 15वें ने ऑसबर्ग के उलरिच को संत की उपाधि दी। धीरे-धीरे संत की पहचान बिशप्स और पोप के हाथों में आ गई। संतों को सिर्फ केननिज़ैषण की औपचारिक प्रक्रिया के बाद ही संत नामित किया जा सकता है, जो कि सालों चलती रहती है। केननिज़ैषण के बाद, संत का नाम संतों की सूची में जोड़ दिया जाता है और सार्वजनिक प्रार्थनाओं में लिया जा सकता है।
संत चुने जाने की प्रक्रिया क्या है?
संत चुने जाने की प्रक्रिया को केननिज़ैषण कहते हैं। यह प्रक्रिया उम्मीदवार की मौत के 5-50 साल के भीतर शुरू की जा सकती है। 1999 में पोप जान पॉल द्वितीय ने सामान्य पांच वर्ष के इंतजार को खत्म करते हुए मदर टेरेसा के लिए केननिज़ैषण की इजाजत दे दी थी क्योंकि उन्हें ‘जीवित संत’ माना जाता था। एक बार प्रक्रिया शुरू होने के बाद, व्यक्ति को ”ईश्वर का सेवक” कहा जाता है। पहला चरण- अभ्यर्थना- में गवाही के लिए लोग इकट्ठा होते हैं, सार्वजनिक और निजी लेखन देते हैं, फिर उनकी जांच की जाती है। यह चरण लंबा होता है और इसमें सालों लग जाते हैं। इसका अंत धर्मप्रदेश ट्राइब्यूनल के फैसले से होता है, जिसमें बिशप उम्मीदवार के गुणों और ईश्वर के प्रति समर्पण पर फैसला करते हैं। अगर इजाजत मिलती है तो बिशप की रिपोर्ट रोम जाती है, जहां इसे इटैलियन में ट्रांसलेट किया जाता है, इसे अपोस्टोलिक प्रक्रिया कहते हैं। इसका सार संतों की मंडली के समक्ष रखा जाता है, जहां 9 धर्मशास्त्री सबूतों और कागजातों की जांच कते हैं। बहुमत से पास होने पर, रिपोर्ट पोप के पास जाती है, पोप के हामी भरने के बाद उम्मीदवार को आदरणीय कहा जाता है।
अगला कदम मोक्ष प्राप्ति है। किसी भी व्यक्ति को धन्य घोषित करने के लिए ‘चमत्कार’ की अनुमति जरूरी है, जो कि भगवान के आदरणीय सेवक की रक्षा करने वाली शक्तियों का सबूत होते हैं। यह एक संकेत होता है कि वह मृत्यु के बाद ईश्वर से जुड़ गए हैं। धर्मप्रदेश, जहां ये तथाकथित चमत्कार होने का दावा किया जाता है, एक वैज्ञानिक और धर्मशास्त्रों पर आधारित जांच करते हैं। विज्ञान आयोग को मंजूर की गई वैज्ञानिक योग्यताओं के आधार पर यह फैसला करना होता है कि कथित चमत्कार का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। धर्मशास्त्रियों का कमीशन यह तय करता है कि जो कुछ भी हुआ, वह असल में ‘चमत्कार’ था या ईश्वर के आदरणीय सेवक की रक्षा की वजह से ऐसा हुआ। अगर कमीशन सकरात्मक रिपोर्ट देता है, तो वह पोप के पास जाती हैं, अगर पोप हामी भरते हैं तो उम्मीदवार को मोक्ष प्राप्ति होती है। शहादत की स्थिति में, चमत्कार की आवश्यकता से छूट दी गई है।
केननिज़ैषण की प्रक्रिसा को आगे ले जाने के लिए, एक दूसरे चमत्कार की जरूरत होती है। इसमें वही प्रक्रिया अपनाई जाती है, जो मदर टेरेसा के मामले में अपनाई जाएगी। 2002 में, पोप ने एक बंगाली आदिवासी महिला, मोनिका बेसरा के ट्यूमर के ठीक होने को मदर टेरेसा का पहला चमत्कार माना। 2015 में ब्रेन ट्यूमर से ग्रस्त ब्राजीलियन पुरुष को दूसरा चमत्कार माना गया। डॉक्टर्स और तर्कशास्त्रियों ने इन कथित चमत्कारों को खारित कर दिया था और कई सवाल खड़े हुए थे।
केननिज़ैषण समारोह में भारत से कौन शामिल होगा? मेहमानों की लिस्ट का फैसला कौन करता है?
केरल में कैथोलिक चर्च की शीर्ष फैसले लेने वाली संस्था कैथोनिलक बिशप्स कान्फ्रेंस ऑफ इंडिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समारोह के लिए आयोजित किया है। प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ 11 सदस्यीय आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल भेज रहे हैं, जिसमें सांसद और महत्वपूर्ण हस्तियां शामिल होंगी। मिशनरी ऑफ चैरिटी ने मदर टेरेसा के साथ कुछ महीने काम करने वाले अरविंद केजरीवाल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, टीएमसी सांसद डेरेक ओ’ब्रायन और सुदीप बंदोपाध्याय को आमंत्रित किया है। इसके अलावा कॉन्फ्रेंस ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी आमंत्रित किया है जिन्होंने मारग्रेट अल्वा को नामित किया है।
केननिज़ैषण समारोह का खर्च कितना है? इसका भुगतान कौन करता है?
असल खर्च का किसी को पता नहीं। हालांकि पोप फ्रांसिस ने हाल ही में ऐसे समारोहों को वित्तीय रूप से और पारदर्शी बनाने के लिए नए नियमों को मंजूरी दी है। उन्होंने यह फैसला इटली के पत्रकार गियानलुइगी नुज्जी के दावे के बाद किया था। पत्रकार का दावा था कि ”सिर्फ मोक्ष प्राप्ति की प्रकिया खाेलने पर 50,000 यूरो खर्च होते हैं, इसके अलावा असल ऑपरेटिंग खर्च के लिए 15,000 यूरो अतिरिक्त खर्च होते हैं” सूत्रों का कहना है कि मदर टेरेसा के केननिज़ैषण का खर्च 50 लाख से भी कम रहा है।