Child Custody: बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में एक मां की माफी स्वीकार कर ली, जिसने अपनी बेटी की हिरासत से संबंधित अपील पर सुनवाई कर रहे जज को एक व्हाट्सएप संदेश भेजा था। जस्टिस एम.एम. सथाये ने महिला से कहा कि वह भविष्य में किसी भी जज से सीधे संपर्क करने की ऐसी कोशिश या गतिविधि न करे। इससे पहले कोर्ट ने उससे स्पष्टीकरण मांगा था और पूछा था कि उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई क्यों न की जाए। इसके बाद महिला ने अपने कृत्य के लिए माफी मांगी।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने 19 दिसंबर को पारित आदेश में कहा कि हलफनामे से पता चलता है कि अपीलकर्ता ने बिना शर्त माफी मांगी है और अपने आचरण के लिए स्पष्टीकरण दिया है। अपीलकर्ता ने कहा है कि वह भावनात्मक रूप से तनावग्रस्त थी और संबंधित समय में खुद को असहाय महसूस कर रही थी। अपनी बेटी के लिए चिंता और हताशा के कारण, जिसकी हिरासत सवालों के घेरे में है। उसको लेकर उसने व्हाट्सएप मोबाइल नंबर पर सीधे हाई कोर्ट के जज से संपर्क करने की कोशिश की थी।
महिला-मां ने जिला न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की थी, जिसमें उसके पति को उसकी छह वर्षीय बेटी की अस्थायी हिरासत देने का आदेश दिया गया था। जिला न्यायालय ने मां को बच्ची से मिलने का अधिकार दिया था और बच्ची के साथ वीडियो कॉल के लिए निर्देश भी जारी किया था।
जस्टिस सथाये द्वारा 29 नवंबर को उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार करने के बाद महिला ने जज को उनके निजी नंबर पर व्हाट्सएप के जरिए संदेश भेजा। इससे पहले के आदेश में कोर्ट ने दर्ज किया था कि यद्यपि न्यायाधीश ने उसका नंबर ब्लॉक कर दिया था, फिर भी उन्हें एक अलग नंबर से संदेश और वीडियो प्राप्त हुए।
2 दिसंबर को महिला ने कोर्ट के सामने स्वीकार किया कि वह उन संदेशों को भेजने वाली थी। सिंगल जज ने कहा कि उसका आचरण कोर्ट की अवमानना की सीमा तक है और उससे स्पष्टीकरण मांगा।
हाई कोर्ट ने कहा कि मेरे प्रथम दृष्टया विचार में, अपीलकर्ता द्वारा न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करने और जज के मन को प्रभावित करने के लिए कानून का अतिक्रमण करने का स्पष्ट प्रयास किया गया है और यह आचरण कोर्ट की अवमानना के समान है। इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। विवादित आदेश की प्रकृति और पक्षों के बीच संबंधों और एक बच्चे की हिरासत से संबंधित मामले को देखते हुए, यह एक मां द्वारा हताशापूर्ण प्रयास का मामला हो सकता है। हालांकि, यह पूरी तरह से अनुचित तरीके से किया गया है।
महिला का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता सुनील एस गोसावी ने उसके कृत्य की निंदा की और उसका प्रतिनिधित्व करने से हटने की मांग की। इसके बाद कोर्ट ने अधिवक्ता गोसावी को उसके वकील के रूप में मुक्त कर दिया। इसके बाद महिला ने एक अन्य वकील को नियुक्त किया, जिसने उसकी ओर से माफीनामा दायर किया। अंततः कोर्ट ने नरम रुख अपनाया और महिला के स्पष्टीकरण को स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने आदेश दिया कि दिनांक 02.12.2024 के आदेश के तहत अपीलकर्ता को जारी कारण बताओ नोटिस निरस्त किया जाता है।
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