रोजमर्रा के कामों में प्रतिदिन प्लास्टिक का प्रयोग करने वाले राज्यों में दिल्ली सबसे आगे है। प्लास्टिक के इस इस्तेमाल की वजह से ही देश में दिल्ली के अंदर सबसे अधिक प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है जबकि प्लास्टिक की खपत करने वालों में महाराष्ट दूसरे और तमिलनाडु तीसरे पायदान पर है। हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट से ये तथ्य सामने आए हैं।

रिपोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) का हवाला देते हुए मंत्रालय ने बताया कि है कि 2019-20 के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली के अंदर प्रतिवर्ष कुल 2,30,525 टन (टीपीए) प्लास्टिक कचरे का उत्पादन हुआ है, यहां पर प्रति व्यक्ति अपशिष्ट उत्पादन के मामले में देश में सबसे अधिक है। इसके अतिरिक्त शेष सबसे अधिक महानगरों में मुंबई, चेन्नई और कोलकाता शामिल है। मुंबई सहित महराष्टÑ में कुल 443724 टीपीए, चेन्नई सहित तमिलनाडु में 431472 टीपीए और कोलाकाता सहित पश्चिम बंगाल में 300236 टीपीए प्लास्टि कचरे का उत्पादन होता है।

हालांकि मंत्रालय ने यह भी दावा किया है कि इस स्थिति से निपटने के लिए देश में आम जनता को प्लास्टिक प्रयोग के लिए हतोत्साहित किया जा रहा है और सरकार के माध्यम से भी प्लास्टिक कचरे की खपत को कम करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए केंद्र सरकार ने प्लास्टिक प्रबंधन संशोधन नियमावली 2021 को भी अधिसूचित किया है ताकि प्लास्टिक की उपयोगिता को कम किया जाए। इसके तहत ऐसी प्लास्टिक जो एक बार प्रयोग होने के बाद दोबारा प्रयोग के लिए नहीं लाई जा सकती उसे रोकने के लिए सख्त प्रावधान किए जा रहे हैं। पर्यावरण को सबसे अधिक खतरा ऐसी ही प्लास्टिक से है।

इस दायरे में 75 माइक्रोन से कम की प्लास्टिक सामग्री शामिल है। अगर किसी भी जगह पर 75 माइक्रोन की श्रेणी की प्लास्टिक का प्रयोग पाया जाता है तो उस पर कार्रवाई का भी प्रावधान किया है। वहीं प्लास्टिक कप, ग्लास, कांटे, चम्मच, थर्माकोल समेत अन्य उत्पाद पर एक जुलाई 2022 से रोक की व्यवस्था लागू करने की तैयारी है। दिसंबर 2022 से इस चरण के तहत 120 माइक्रोन तक की प्लास्टिक को रोकने की तैयारी की जा रही है। इस श्रेणी में इस दिशा में चरणबद्ध तरीके से कदम उठाने का दावा किया जा रहा है।