एक ओर जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती इलाकों में पाकिस्तान की ओर से भारी गोलीबारी से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है, वहीं दूसरी ओर मस्जिदों और मदरसों से आई एक सुकून देने वाली खबर ने लोगों का दिल छू लिया है। जम्मू के प्रमुख मुस्लिम विद्वान मुफ्ती सगीर अहमद ने कहा है कि जम्मू क्षेत्र की सभी मस्जिदें और मदरसे उन विस्थापितों के लिए खुले हैं, जिन्हें पाकिस्तान की गोलाबारी के कारण अपने घर छोड़ने पड़े हैं।
बचाव नहीं, सेवा बनी प्राथमिकता
बुधवार को पुंछ जिले में पाकिस्तानी गोलाबारी में 13 लोगों की मौत और 40 से ज्यादा के घायल होने के बाद हालात काफी गंभीर हो गए हैं। ऐसे में जम्मू के बठिंडी इलाके में ‘मरकज-उल-मारीफ’ मदरसे द्वारा एक रक्तदान शिविर आयोजित किया गया, जिसमें खुद मुफ्ती सगीर अहमद ने दर्जनों युवाओं के साथ हिस्सा लिया। उन्होंने कहा, “इस्लाम हमें सिखाता है कि एक जान बचाना पूरी मानवता को बचाने जैसा है।”
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मुफ्ती सगीर का कहना है कि सीमाओं पर तनाव और अस्पतालों में रक्त की कमी को देखते हुए यह शिविर लगाया गया, ताकि समय पर जरूरतमंदों को खून मिल सके। अब तक 50 यूनिट से ज्यादा रक्त एकत्र किया जा चुका है, जिसे जम्मू मेडिकल कॉलेज अस्पताल को सौंपा जाएगा।
मदरसों और मस्जिदों ने खोले दरवाजे
इस्लामी सिद्धांतों के हवाले से मुफ्ती सगीर ने बताया कि उनका मकसद केवल एक मजहब के लोगों की मदद करना नहीं, बल्कि हर उस इंसान तक पहुंचना है जो मुसीबत में है। उन्होंने कहा कि “अगर हमें किसी को जगह देनी पड़े, तो हमारे मदरसे और मस्जिदें तैयार हैं। यह हमारा फर्ज़ है और इस्लाम की यही तालीम है।”
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उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह पहल केवल धार्मिक नहीं, मानवीय है। चाहे ज़रूरतमंद किसी भी धर्म या समुदाय से हो, उनके लिए सहायता उपलब्ध है।
हर वर्ग से सहयोग की पहल
सिर्फ धार्मिक संस्थाएं ही नहीं, बल्कि वकीलों और सामाजिक संगठनों ने भी इस आपदा में मानवता के पक्ष में खड़ा होने का निर्णय लिया है। जम्मू हाईकोर्ट बार एसोसिएशन भी शुक्रवार को एक रक्तदान शिविर आयोजित करने जा रहा है, जिसमें वकीलों से स्वेच्छा से रक्तदान करने की अपील की गई है।
इसके अलावा जामिया जिया-उल-इस्लाम नामक एक और शैक्षणिक संस्थान ने सीमा से विस्थापित 50 से अधिक लोगों को आश्रय दिया है। इनमें ज़्यादातर वे लोग हैं जिन्हें हालिया गोलीबारी के कारण अपने गांव छोड़ने पड़े।
जहां एक ओर सीमाओं पर तनाव और गोलियों की आवाज़ गूंज रही है, वहीं दूसरी ओर मस्जिदों की माइक से सुकून का पैगाम दिया जा रहा है। यह कहानी न सिर्फ सहानुभूति की है, बल्कि भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब और धर्मनिरपेक्ष भावनाओं की मिसाल भी है।
इस मुश्किल घड़ी में जब चारों ओर डर और दर्द का माहौल है, मस्जिदें और मदरसे राहत का केंद्र बनकर उभरे हैं। यह दिखाता है कि इंसानियत अभी भी जिंदा है।