87 पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार की “कानून के राज के खिलाफ जाने” और कानून व्यवस्था को तहस -नहस करने के लिए आलोचना की। एक खुले पत्र में, इन लोगों ने उत्तर प्रदेश में असंतोष को कुचलने के लिए आपराधिक आरोपों के इस्तेमाल, राज्य में न्यायेतर हत्याओं, अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ धर्मांतरण विरोधी कानूनों का दुरुपयोग करने, और कोविड -19 प्रबंधन में कमियों पर प्रकाश डाला। पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि यूपी में वर्तमान सत्तारूढ़ शासन ने शासन के एक ऐसे मॉडल की शुरुआत की है जो संविधान के मूल्यों और कानून के राज से आगे जा रहा है।
पूर्व नौकरशाहों ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में प्रशासन की सभी शाखाएं ध्वस्त हो गई हैं। उन्होंने कहा, “हमें डर है कि अगर अब तक इस पर रोक नहीं लगाई गई, तो राज्य में राजनीति और संस्थानों को होने वाले नुकसान के परिणामस्वरूप लोकतंत्र का ही क्षय और विनाश होगा।” पूर्व सिविल सेवकों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की सरकार ने पिछले साल नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध करने वालों के खिलाफ बल प्रयोग किया।
उन्होंने कहा, “यहां तक कि सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का यूपी सरकार ने दमन के साथ जवाब दिया। जिसमें अलीगढ़ में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर पुलिस हमले भी शामिल थे। पुलिस द्वारा आमतौर पर आतंकवादियों के खिलाफ इस्तेमाल होने वाले स्टन ग्रेनेड का इस्तेमाल किया गया और आंसू गैस के गोले दागे गए। 10,900 एफआईआर दर्ज की गईं और पुलिस फायरिंग का सहारा लिया गया। जिसमें 22 लोग मारे गए।”
उन्होंने मांग की, “मनमाना तरीके से हिरासत में लिए जाने और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे छात्रों, अल्पसंख्यकों और अन्य लोगों पर पुलिस हमले को तत्काल रोका जाए और “मनमाने ढंग से” कानून के तहत संपत्ति के कथित नुकसान के लिए वसूली बंद की जाए।”
राज्य में न्यायेतर हत्याओं के बारे में बोलते हुए, नौकरशाहों ने कहा कि पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, 2017 से 2020 तक 6,476 “मुठभेड़ों” में 124 कथित अपराधियों को गोली मार दी गई। इन लोगों ने समाचार रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा, “आदित्यनाथ के नेतृत्व में मुठभेड़ें नई सीमाओं को पार करती हैं, क्योंकि डेटा से पता चलता है कि इन मुठभेड़ों में मारे गए अधिकांश लोग या तो छोटे अपराधी हैं या निर्दोष हैं, जिनके खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुआ है।”