आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने देश को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाने की अपील करते हुए कहा कि नोबल पुरस्कार से सम्मानित रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भी कहा था कि हिन्दुत्व ‘विविधता की एकता’ में विश्वास करता है।

भागवत ने आरएसएस के चिंतन शिविर में रविवार को स्वयंसेवकों से कहा कि दुनिया भले ही यह कहती हो कि एक होना है, तो एक से दिखो, लेकिन हिन्दुत्व विविधता में एकता का हिमायती है। सहिष्णुता का अर्थ सहन करना नहीं, बल्कि विविधता को स्वीकारना है। विविधता देखने मे अलग-अलग है, लेकिन एक रूप में हिन्दू विचार एवं हिन्दुत्व है। कविगुरु ने अपनी किताब ‘स्वदेशी समाज’ में अंग्रेजों की आलोचना करते हुए लिखा था कि आपस में लड़कर हिन्दू-मुसलिम खत्म नहीं होंगे बल्कि इस संघर्ष से वे साथ रहने का रास्ता ढूंढ लेंगे और वह रास्ता ‘हिन्दू राष्ट्र’ होगा।

उन्होंने कहा कि जो देश सुरक्षित और प्रतिष्ठित नहीं होता है, उसके लोगों के सिर पर दुनिया भर में संकट मंडराता रहता है। हमारा देश अच्छा कैसा होगा। इस सिलसिले में समय-समय पर तरह-तरह के विचार अभिव्यक्त एवं प्रयोग किए जाते रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले देश को आजादी दिलाने और आजादी के बाद देश को विकास दिलाने के लिए विचारधाराएं काम करती रहीं, लेकिन जैसी कल्पना की थी, देश का वैसा विकास नहीं हुआ। इजरायल का हवाला देते हुए भागवत ने कहा कि यह छोटा सा रेगिस्तानी और मुट्ठी भर आबादी वाला देश भारत के साथ ही आस्तित्व में आया। इसकी आजादी के साथ ही आठ पड़ोसी देशों ने हमला कर दिया। इस छोटे से देश ने पांच लड़ाइयां लड़ी, अपनी जमीन का डेढ़ गुना विस्तार किया और सिर उठा कर खड़ा हो गया।

उन्होंने कहा कि इतनी मुश्किलों के बावजूद वही छोटा सा देश आज ‘नंदनवन’ में तब्दील हो गया है। दुनिया भर से लोग यहां कम पानी में खेती और बागवानी के गुर सीखने जा रहे हैं, लेकिन हमारे पास हजारों किलोमीटर लंबी जमीन थी, करोडों की आबादी थी, दिग्गज नेता थे, फिर भी इस्रायल हमसे कई गुना आगे निकल गया। भागवत ने कहा कि देश को बड़ा बनाने के लिए संसाधनों से ज्यादा देशभक्ति की भावना की जरूरत है। आरएसएस के बारे में देश और दुनिया में तरह-तरह के विचार व्यक्त किए जाने को लेकर उन्होंने कहा कि देश को आगे बढ़ाने के लिए सभी प्रकार के भेदभाव भुलाकर अपने लोगों को बड़ा बनाने का संस्कार चाहिए और संघ यही कार्य करता है।

भागवत के मुताबिक संघ को बाहर से देखने वाले लोग उसकी वैसी ही व्याख्या करते रहे हैं, जैसे एक कहानी मे एक अंधे द्वारा हाथी की व्याख्या की गई थी। संघ न तो व्यायामशाला है, न अर्ध सैनिक बल है और न ही कोई पार्टी है। लोग अपनी-अपनी समझ से संघ को नापते रहते हैं। संघ को स्वयंसेवक बनकर ही जाना जा सकता है। जो संघ को देखना चाहते हैं, वे इसे अंदर आकर देखें। संघ में आने की कोई शर्त नहीं बल्कि स्वयं की मर्जी है। उन्होंने कहा कि प्रमाणिकता से काम करना है तो संघ में आइए, टिकिट हासिल करने के लिए नहीं। हमारे प्रचारक, संघ का नहीं, बल्कि देश को महान बनाने के विचार का प्रचार करते है। 90 वर्ष का होने जा रहा संघ केवल लोगों को योग्यता सिखाता है। देश कल्याण का काम तो समाज को मिलकर करना होगा।

आरएसएस के इस पांच दिवसीय चिंतर शिविर में भागवत के अलावा संघ के सह कार्यवाह दत्रात्रेय होसबोले, सुरेश सोनी, कृष्ण मोहन समेत मध्य भारत, मालवा और महाकौशल प्रांत के वरिष्ठ नेता मौजूद रहे। शिविर में संघ के अनुषांगिक संगठनों वनवासी कल्याण परिषद, सेवा भारती, स्वदेशी जागरण मंच सहित दो दर्जन से अधिक संस्थाओं के पदाधिकारी भी उपस्थित रहे।