इस साल फरवरी में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने ओडिशा में स्‍टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) को बरसुआ आयरन माइंस के लिए क्‍लीयरेंस थी। मंजूरी के बाद मंत्रालय ने स्‍टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड से एक कार की डिमांड की थी, जिसमें बैठकर उसका भुवनेश्‍वर स्‍टाफ इंस्‍पेक्‍शन कर सके। आफिशियल रिकॉर्ड बताते हैं SAIL ने चार महीने के भीतर 20 लाख रुपए की कीमत वाली टोयोटा ‘फॉर्च्‍यूनर’ वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के लिए खरीदी, लेकिन यह एसयूपी कार ऑफिस के प्रयोग में नहीं लाई गई। इसकी डिलीवरी नई दिल्‍ली में की गई, जिसे केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर प्रयोग कर रहे हैं।

वैसे मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालयों या वन विभाग के अधिकारियों के लिए इस प्रकार कार मंगाना कोई नई बात नहीं है। SAIL ने खुद वन विभाग को छह कार (पांच बुलेरो, एक स्‍कॉर्पियो) भिजवाई हैं, लेकिन आमतौर पर ये गाडि़यां फॉर्च्‍यूनर जैसी एसयूवी नहीं होती हैं और इस मामले में जो गाड़ी फील्‍ड ऑफिस की जगह नई दिल्‍ली भिजवा दी गई।

‘इंडियन एक्‍सप्रेस’ ने बरसुआ खदान के जनरल मैनेजर रहे एच बारा से सपंर्क किया, जो कि उस वक्‍त पद पर थे, जब एसयूवी कार खरीदी गई थी। बारा ने कहा, ‘वन विभाग ने मंजूरी देने के लिए SAIL के सामने एसयूवी कार की शर्त रखी थी। जो कार जावड़ेकर दिल्‍ली में इस्‍तेमाल कर रहे हैं, उसे हमारे कोलकाता स्थित E&L (एन्‍वायमेंट एंड लीज) डिवीजन में भेजा गया था।’

बारा से जब यह पूछा गया कि फॉर्न्‍यूनर कार तो बरसुआ में इस्‍तेमाल के लिए खरीदी गई थी, फिर उसे दिल्‍ली क्‍यों भेज दिया गया? इस पर कुछ भी कहने से उन्‍होंने इनकार कर दिया।

‘इंडियन एक्‍सप्रेस’ ने 15 दिसंबर से लेकर अब तक पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को कई बार फोन कॉल, ई-मेल और मोबाइल पर मैसेज भेजकर सवाल पूछा, लेकिन उन्‍होंने जवाब नहीं दिया। पिछले शनिवार को जावड़ेकर ने एक ई-मेल में लिखा कि वह अभी बेंगलुरु में हैं और इस संबंध में वन विभाग के डायेरेक्‍टर जनरल से ‘कॉओपरेट’ करने कहा है। वह सोमवार को जवाब देंगे, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया।