केंद्र की मोदी सरकार पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारों में दखल देने और उसे काबू करने के आरोप लग रहे हैं। हाल ही में खबर आई कि केंद्र ने आरबीआई को निर्देश देने के लिए आरबीआई ऐक्ट के उस सेक्शन 7 का इस्तेमाल किया, जिसका आजादी के बाद से आज तक कभी भी किसी सरकार ने इस्तेमाल नहीं किया। आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफा देने की आशंकाओं, केंद्रीय बैंक और सरकार के बीच तल्खी की खबरों के बीच विपक्षी पार्टी कांग्रेस लगातार हमलावर होती जा रही है। ऐसे में विपक्ष के हमले की धार को कुंद करने के लिए बीजेपी देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू का इस्तेमाल कर सकती है। द टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, नेहरू और सर बेनेगल रामराव के बीच हुए पत्राचार को इस हमले का आधार बनाया जा सकता है। रामाराव ने सरकार से मतभेद के बाद आरबीआई गवर्नर के पद से इस्तीफा दे दिया था।

राव आरबीआई के चौथे गवर्नर थे, जिन्होंने साढ़े सात साल के कार्यकाल के बाद जनवरी 1957 में इस्तीफा दे दिया था। विवाद बजट के एक प्रस्ताव को लेकर था। उस वक्त नेहरू ने वित्त मंत्री टीटी कृष्णनामचारी का पक्ष लिया था और साफ किया था कि आरबीआई ‘सरकार की ही विभिन्न गतिविधियों का हिस्सा है।’ नेहरू ने जनवरी 1957 में लिखा, ‘आरबीआई को सरकार को सलाह देना है, लेकिन उसे सरकार की लाइन पर रहना है।’

नेहरू ने यह भी सुझाव दिया था कि अगर राव को ऐसे जारी रखना संभव नहीं दिखता तो वे इस्तीफा दे सकते हैं। इसके कुछ दिन बाद राव ने इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने तत्कालीन वित्त मंत्री के बर्ताव को रुखा बताया था। वहीं, वित्त मंत्री ने आरबीआई को वित्त मंत्रालय का ही एक ‘हिस्सा’ बताया था। जबकि, नेहरू का मानना था कि अगर केंद्रीय बैंक किसी और नीति का पालन करता है तो ‘बेहद बकवास’ बात होगी क्योंकि वह सरकार के लक्ष्यों या तरीकों से सहमत नहीं नजर आएगी।