Rafale deal: राफेल डील को मोदी सरकार ने शनिवार (4 मई) को सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा। एएनआई के अनुसार, केंद्र ने कोर्ट से कहा, “प्रधान मंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा विवादास्पद राफेल डील की प्रगति की ‘निगरानी’ को हस्तक्षेप या समानांतर वार्ता (पैरलल निगोशिएशन) के रूप में नहीं माना जा सकता है।” सर्वोच्च न्यायालय को सौपें गए एक हलफनामे के माध्यम से केंद्र ने कहा, “पीएमओ के द्वारा की गई निगरानी प्रक्रिया को हस्तक्षेप या समानांतर वार्ता के रूप में नहीं माना जा सकता है।”
हलफनामे में आगे कहा गया, “तत्कालीन रक्षा मंत्री ने अपने फाइल में यह लिखा था, …ऐसा प्रतीत होता है कि पीएमओ और फ्रांस का राष्ट्रपति कार्यालय उन मुद्दों की प्रगति की निगरानी कर रहा है जो शिखर बैठक का एक परिणाम था।” दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने बीते 30 अप्रैल को केंद्र को निर्देश दिया कि वह राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर उसके फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकाओं पर चार मई तक जवाब दाखिल करे।
केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि राफेल मामले में उसके पिछले साल 14 दिसंबर के फैसले में दर्ज ‘स्पष्ट और जोरदार’ निष्कर्षों में कोई स्पष्ट त्रुटि नहीं है, जिससे उसपर पुनर्विचार की जरूरत है। केंद्र ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के फैसले पर पुर्निवचार करने की मांग की आड़ में और उनके मीडिया में आई कुछ खबरों और अनधिकृत और अवैध तरीके से हासिल कुछ अधूरे फाइल नोटिंग्स पर भरोसा कर समूचे मामले को दोबारा नहीं खोला जा सकता क्योंकि पुर्निवचार याचिका का दायरा ‘बेहद सीमित’ है।
केंद्र का जवाब पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी तथा अधिवक्ता प्रशांत भूषण की याचिका पर आया है, जिसमें वे शीर्ष अदालत के 14 दिसंबर के फैसले पर पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में करोड़ों रुपये के राफेल लड़ाकू विमान सौदे मामले में कथित अनियमितताओं की जांच की मांग करने वाली उनकी याचिकाएं खारिज कर दी थीं। दो अन्य पुर्निवचार याचिकाएं आप नेता संजय सिंह और अधिवक्ता विनीत ढांडा ने दायर की है। सभी पुनर्विचा याचिकाओं पर प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई अगले सप्ताह सुनवाई करने वाले हैं।
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा, ‘‘पुनर्विचार याचिका असंबद्ध जांच का आदेश दिलाने का प्रयास है, जिसे इस अदालत ने साफ तौर पर मना कर दिया था। शब्दों से खेलकर सीबीआई से जांच और अदालत से जांच कराए जाने के बीच अस्तित्वविहीन भेद करने का प्रयास किया जा रहा है।’’
केंद्र ने कहा कि शीर्ष अदालत राफेल सौदे के सभी तीन पहलुओं-निर्णय की प्रक्रिया, कीमत और भारतीय ऑफसेट पार्टनर का चयन-पर इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि उसके हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है। केंद्र ने कहा कि मीडिया में आई खबरें फैसले की समीक्षा का आधार नहीं हो सकतीं क्योंकि यह सुस्थापित कानून है कि अदालतें मीडिया में आई खबरों के आधार पर फैसला नहीं कर सकतीं।
केंद्र ने कहा कि आंतरिक फाइल नोटिंग और उसमें शामिल विचार मामले में अंतिम फैसला करने के लिये सक्षम प्राधिकार के विचार करने की खातिर महज विचारों की अभिव्यक्ति हैं। केंद्र ने कहा, ‘‘किसी वादकारी के अंतिम फैसले पर सवाल उठाने के लिये यह कोई आधार नहीं हो सकता। इसलिये, इस आधार पर भी पुर्निवचार याचिका पर विचार के लिये कोई आधार नहीं बनाया गया है।’’ (भाषा इनपुट के साथ)
