नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के दूसरे कार्यकाल के लिए अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है। उन्होंने कहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार नहीं चाहती कि वे इस पद पर बने रहें। वहीं सरकार ने उनके इस दावे को खारिज किया है। इस मामले पर राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार की आलोचना की है।
सेन की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि सेन के कार्यकाल को कम करने का कोई प्रयास नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि विदेश मंत्रालय कार्रवाई नहीं कर सकता क्योंकि अभी तक उसे पिछले महीने हुई नालंदा विश्वविद्यालय के संचालन मंडल की बैठक का कार्यवाही विवरण नहीं मिला है। जबकि सेन ने कहा कि इसका कार्यवाही विवरण एक पखवाड़े पहले ही भेज दिया गया था। सभी ने इसकी पुष्टि की थी। उन्होंने दावा किया कि सामान्य मुद्दा शैक्षणिक मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप का था। उन्होंने विश्वविद्यालय के कामकाज में सरकार के हस्तक्षेप के कई और उदाहरण दिए।
पिछले काफी समय से नरेंद्र मोदी के विरोधी रहे सेन ने नालंदा विश्वविद्यालय के संचालन मंडल को लिखे एक पत्र में नालंदा पीठ के दूसरे कार्यकाल के लिए अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की मंजूरी के अभाव में उनके नाम पर विजिटर यानी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की अनुमति में विलंब हुआ जबकि उनके पास सिफारिश एक महीना पहले ही भेज दी गई थी। सेन ने अपने पत्र में लिखा है कि यह विलंब और इसमें शामिल अनिश्चितता के प्रभावस्वरूप नतीजे में एक अंतराल आया। यह नालंदा विश्वविद्यालय के प्रशासन और उसकी शैक्षणिक प्रगति में मददगार नहीं है।
सेन ने पत्र में कहा, लिहाजा मैंने निर्णय किया कि नालंदा विश्वविद्यालय के सर्वोत्तम हित में होगा कि इस साल जुलाई के बाद से कुलाधिपति के रूप में पद पर बने रहने के मामले में मैं अपना नाम विचार किए जाने से अलग कर लूं। हालांकि इस मामले में सर्वसम्मति से सिफारिश की गई है और संचालन मंडल ने मुझसे पद पर बने रहने का अनुरोध किया है।
यह पूछे जाने पर कि क्या देरी मोदी के बारे में उनकी आलोचना के चलते हुई, भारत रत्न से सम्मानित सेन ने कहा,‘मुझे लगता है कि यह नजरिया अपनाना मेरे लिए भ्रमित होने के समान होगा। मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री के निर्णय के संदर्भ में मैं कहीं आता ही नहीं। अटकलबाजी दूसरों को ही लगाने देना चाहिए।’ उन्होंने कहा,‘मेरी पत्नी कहती है कि आप मोदी के आलोचक हैं। वे नहीं चाहते कि आप कुलाधिपति रहें। इन दोनों बातों के बीच मेल है।’ सेन ने कहा कि एक भारतीय मतदाता होने के कारण यह मेरी स्वतंत्रता है कि किसी उम्मीदवार को पसंद करूं या नहीं। कोई बिंदु उठाऊं या नहीं।
कुलाधिपति के बारे में तय करना संचालन मंडल का काम है। इस मामले में यदि प्रधानमंत्री ने कोई निर्णय किया है, तो वह उनका काम नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि विजिटर (राष्ट्रपति) उन्हें कुलाधिपति बनाने के बारे में बहुत अनिच्छुक नहीं हैं और सरकार की कोई स्पष्ट मंजूरी नहीं है तो भी कुछ ऐसे साक्ष्य हैं कि सरकार नहीं चाहती कि वे पद पर बने रहें।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय के संचालन मंडल के मसौदा कार्यवाही विवरण में दो विकल्प हैं। या तो सेन को पद पर बरकरार रखा जाए या विजिटर (राष्ट्रपति) नोबेल पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति के उत्तराधिकारी को नियुक्त करने के लिए संचालन मंडल से छांटे गए तीन नाम मांगे। प्रवक्ता ने कहा कि निर्णय विजिटर को करना है। अकबरुद्दीन ने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय संचालन मंडल का मसौदा कार्यवाही विवरण 13 फरवरी को वितरित किया गया। इसमें टिप्पणियां सौंपने के लिए दो हफ्तों का समय दिया गया। दो हफ्ते की समय सीमा 27 फरवरी को खत्म होगी। उन्होंने कहा कि इस निर्धारित समयावधि में ही अंतिम स्वीकृत कार्यवाही विवरण आने थे।
सेन ने ध्यान दिलाया कि संचालन मंडल की 13-14 जनवरी 2015 को हुई बैठक में नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के दूसरे कार्यकाल के तौर पर उनके नाम पर सर्वसम्मति से सहमति बनी थी। उनका मौजूदा कार्यकाल जुलाई के अंत में समाप्त हो रहा है। उन्होंने कहा कि बैठक में विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने भी भाग लिया था।
इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों ने भी प्रतिक्रियाएं दी हैं। कांगे्रस प्रवक्ता अजय कुमार ने कहा कि सेन एक राष्ट्रीय गौरव हैं। उनके साथ इस तरह का ओछा व्यवहार किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। पार्टी के एक अन्य प्रवक्ता संजय झा ने कहा कि विश्वविद्यालय की पीठ से उन्हें हटाने का प्रयास शर्मनाक है। आम आदमी पार्टी (आप) के नेता आशुतोष ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि इस घटना से पता चलता है कि वह (भाजपा) कोई आलोचना नहीं सह सकती। जद (एकी) ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से हस्तक्षेप करने और मोदी सरकार से इस मामले में स्पष्टीकरण देने का अनुरोध किया है। पार्टी ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार अपनी विचारधारा को प्रोत्साहन देने के लिए शिक्षण क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रही है।