मिजोरम में बड़ी संख्या में म्यांमार से आए शरणार्थी रहने आ जाते हैं। ये कोई अभी का ट्रेंड नहीं है, बल्कि पिछले कई सालों से ऐसा ही चलता आ रहा है। जब से म्यांमार में सेना ने सत्ता संभाली है, ये पलायन और तेजी से बढ़ गया है। अब केंद्र सरकार लंबे समय से चाहती है कि इन शरणार्थियों का एक डेटा निकाला जाए, उनका बायोमेट्रिक तैयार किया जाए। लेकिन राज्य सरकार इसे मानने को ही तैयार नहीं हो रही।
असल में इस साल अप्रैल में गृह मंत्रालय ने दोनों मिजोरम और मणिपुर की सरकार को कहा था कि वो म्यांमार से आए उन लोगों का बायोमेट्रिक इकट्ठा करें जो अवैध तरीके से दोनों राज्यों में दाखिल हुए हैं। इसके बाद जून महीने में ही केंद्र ने निर्देश दिया कि सितंबर के अंत तक इस पूरी प्रक्रिया को संपन्न किया जाए। लेकिन अब पता ये चला है कि ना मिजोरम और ना ही मणिपुर की सरकार ने इस दिशा में कोई कदम उठाया है।
बताया जा रहा है कि मिजोरम में तो चुनाव को देखते हुए शरणार्थियों के लिए उल्टा सीमा खोल दी गई है। इसी वजह से उनकी तरफ से लगातार केंद्र के आदेश की भी तौहीन की जा रही है। तर्क ये भी दिया जा रहा है कि मिजोरम और म्यांमार के लोगों की संस्कृति काफी समान है, ऐसे में एक भावनात्मक रिश्ता भी चल रहा है। इसी वजह से मिजोरम की सरकार ने अभी तक इस प्रक्रिया को शुरू ही नहीं किया है और साफ-साफ कह दिया है कि वे ऐसा करने भी नहीं वाले हैं। वहीं दूसरी तरफ मणिपुर सरकार का कहना है कि वर्तमान स्थिति की वजह से अभी तक बायोमेट्रिक शुरू नहीं हो पाया है। उनकी तरफ से केंद्र से डेडलाइन बढ़ाने की मांग कर दी गई है।
बड़ी बात ये है कि इस समय मिजोरम में बांग्लादेश और म्यांमार से आए कुल 60 हजार लोग रह रहे हैं। केंद्र चाहता है कि इस पर रोक लगनी चाहिए, लेकिन इंसानियत और वोटबैंक की सिायसत ने वर्तमान में इस पलायन को सही ठहराने की कोशिश कर दी है। अब केंद्र इस पर क्या रुख रखता है, क्या एक्शन लेता है, इस पर सभी की नजर रहने वाली है।