भारत और चीन के बीच लद्दाख स्थित एलएसी पर पिछले 4 महीनों से जारी तनाव के अब और भड़कने के आसार हैं। दरअसल, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चौंकाने वाले बयान में कहा है कि लद्दाख में 1962 के बाद से अब स्थितियां सबसे ज्यादा गंभीर हैं। न्यूज पोर्टल रेडिफ को दिए इंटरव्यू में जयशंकर ने अपनी किताब के लॉन्च से पहले कहा कि 1962 के बाद यह सबसे गंभीर स्थिति है। 45 साल बाद इस सीमा (लद्दाख से लगी एलएसी) पर सैनिक हताहत हुए। एलएसी के दोनों तरफ जिस संख्याबल में सैनिक तैनात किए गए हैं, वह भी अभूतपूर्व है।

जयशंकर ने आगे कहा, “चीन के साथ सीमा विवाद तभी खत्म हो सकता है जब सभी समझौतों और पहले से मानी हुई बातों का सम्मान किया जाए और एकतरफा तरीके से पहले की स्थिति (अप्रैल से पहले की सीमाओं की स्थिति) को न बदला जाए।” विदेश मंत्री ने कहा कि वे चीन से सैन्य और राजनयिक जरियों से बातचीत कर रहे हैं।

बता दें कि चीन की सेनाएं पिछले 4 महीनों से लद्दाख से सटी सीमाओं पर पैर जमाएं हैं। जहां गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटी हैं। वहीं, पैंगोंग सो, गोगरा पॉइंट और डेप्सांग इलाके में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी अभी भी जमी है। हालांकि, भारत ने भी चीन की किसी भड़काऊ हरकत का जवाब देने के लिए बराबर संख्या में जवानों की तैनाती कर रखी है।

हाल ही में चीन और भारत के बीच तनाव बढ़ने का पहला संकेत चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत के बयान के साथ सामने आया था। राव ने कहा था कि चीन से अगर बातचीत के जरिए विवाद नहीं सुलझता है, तो हमारे पास सैन्य विकल्प भी खुला है। हालांकि, पहली प्राथमिकता शांति से समाधान तलाशने को दी गई है। रावत ने यह भी कहा था कि हम बातचीत से विवाद निपटाना चाहते हैं, लेकिन अगर एलएसी पर हालात सामान्य नहीं होती, तो सेना हर वक्त मुस्तैद है।

रावत ने कहा था कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और एनएसए अजीत डोभाल एलएसी से चीनी सेना को पीछे हटाने और अप्रैल से पहले की स्थिति बहाल करने के लिए विकल्पों की समीक्षा कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि सेना अपने इलाकों में 24 घंटे निगरानी व्यवस्था पर काम कर रही है।