मेघालय सरकार की मिलीभगत की वजह राज्य में अवैध कोयला खनन हुआ। 22 लोगों के एक समूह ने सिटीजन रिपोर्ट में राज्य सरकार पर यह आरोप लगाए हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि ‘मेघालय सरकार ने अवैध रूप से कोयला निकालने और परिवहन के लिए कोयला खनिकों की मदद करने में सक्रिय भूमिका निभाई। यह नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है।’ सिटीजन रिपोर्ट के दूसरे पार्ट में कहा गया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद भी मेघालय में अनियंत्रित और अवैध कोयला खनन कैसे जारी रहा? ये रिपोर्ट ईस्ट जैंतिया हिल्स में 13 दिसंबर को ‘रेट होल तकनीक’ से कोयला खनन करते समय कम से कम 15 श्रमिकों के फंसने के तीन सप्ताह बाद आई है। आशंका है कि जो लोग वहां फंसे हैं अब जिंदा ना हो। हालांकि बचाव अभियान अभी भी जारी है। बता दें कि रेट होल तकनीक वह तकनीक है जिसका इस्तेमाल राज्य में अधिकतकर खानों में किया जाता है, मगर इसके इस्तेमाल पर साल 2014 में एनजीटी ने प्रतिबंध लगा दिया था।

रिपोर्ट का पहला हिस्सा पिछले साल दिसंबर के पहले सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट को भेजा चुका है। इसमें उन दर्जनों नेताओं के नाम है जो कथित तौर पर कोयला खदानों के मालिक है या उनके रिश्तेदार है जो कोयला खनिक हैं। इसके अलावा 380 पेजों की सिटीजन रिपोर्ट उन बातों पर प्रकाश डाला गया कि प्रतिबंध का उल्लंघन कैसे किया जाता है। इसमें CAG की रिपोर्ट सहित तमाम सार्वजनिक दस्तावेजों का विश्लेषण किया गया है। इसमें एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के अलावा सरकारी दस्तावेजों का भी विश्लेषण किया गया है।

वहीं अवैध खनन मामले में पूछने पर मेघालय के मुख्य सचिव वाई तिसेरिंग ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘मेघालय सरकार अवैध कोयला खनन को लेकर बहुत सख्त है। हमने बड़ी संख्या में केस दर्ज किए हैं। दोनों अवैध कोयला खनन और अवैध परिवहन को लेकर हैं। बड़ी संख्या में उपकरणों को सीज किया गया है। हालांकि सबसे बड़ी समस्या यह है कि कुछ जिलों में बड़ी संख्या में खनन दूर दराज के इलाकों में हैं। इससे कभी-कभी इन मामले को ट्रैक करने में हमें खासी मुश्किल होती है। कोयला खनन करने वालों की मिलीभगत से कुछ लोग अवैध रूप से कोयला निकाल रहे हैं।’