देशभर के डॉक्टरों के भारी विरोध प्रदर्शन के बीच नेशनल मेडिकल कमीशन बिल राज्यसभा से पास हो गया है। इसके तहत मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) के स्थान पर नेशनल मेडिकल कमीशन का गठन होगा। MCI अब तक मेडिकल शिक्षा, मेडिकल संस्थानों और डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन से संबंधित कामकाज देखती थी।

अब ये पूरा काम नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) करेगा। इससे पहले 29 जुलाई को यह बिल लोकसभा से भी पास हो गया था। इससे पहले चिकित्सा जगत ने यह कहते हुए विधेयक का विरोध किया कि विधेयक ‘‘गरीब विरोधी, छात्र विरोधी और अलोकतांत्रिक’’ है। भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) ने भी विधेयक की कई धाराओं पर आपत्ति जताई है।

देश के डॉक्टरों एवं चिकित्सा छात्रों को विधेयक के कई प्रावधानों पर आपत्ति है। आईएमए ने NMC विधेयक की धारा 32(1), (2) और (3) को लेकर चिंता जताई है। इसमें एमबीबीएस डिग्री धारकों के अलावा गैर चिकित्सकीय लोगों या सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं को लाइसेंस देने की बात की गई है।

इसके अलावा मेडिकल छात्रों ने प्रस्तावित ‘नेक्स्ट’ परीक्षा का उसके मौजूदा प्रारूप में विरोध किया है। विधेयक की धारा 15(1) में छात्रों के प्रैक्टिस करने से पहले और स्नातकोत्तर चिकित्सकीय पाठ्यक्रमों में दाखिले आदि के लिए नेशनल एग्जिट टेस्ट ‘नेक्स्ट’ की परीक्षा उत्तीर्ण करने का प्रस्ताव रखा गया है।

उन्होंने विधेयक की धारा 45 पर भी आपत्ति जताई है। इसमें उन्होंने दावा किया कि केंद्र सरकार के पास राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के सुझावों के विरुद्ध फैसला लेने की शक्ति होगी। बिल में आयुर्वेद-होम्योपैथी डॉक्टरों के ब्रिज कोर्स करने के बाद एलोपैथिक इलाज की अनुमति देने का प्रावधान है।

जबकि डॉक्टरों का कहना है कि इससे झोलाछाप डॉक्टरों और नीम-हकीमों को बढ़ावा मिलेगा। बिल के अनुसार प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को 50 फीसदी सीटों की फीस तय करने का हक मिलेगा। इस संबंध में डॉक्टरों का कहना है कि इससे प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में भ्रष्टाचार बढ़ जाएगा। बिल के सेक्शन 45 पर भी डॉक्टरों को आपत्ति है जिसके अनुसार केंद्र सरकार राष्ट्रीय मेडिकल आयोग के किसी सुझाव को मानने से इनकार कर सकती है।