बहुजन समाज पार्टी की आज मंगलवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक होने जा रही है। इस बैठक में इस बात को लेकर कोई सस्सपेंस नहीं है कि बसपा फिर मायावती को अपना अध्यक्ष चुनने जा रही है। असल में पह पहले ही साफ हो गया था कि मायावती का अभी रिटायर होने का कोई इरादा नहीं है, इसी वजह से उनका अध्यक्ष चुना जाना तय है। यह जरूर है कि भतीजे आकाश आनंद को लेकर कोई बड़ा ऐलान किया जा सकता है।
बीएसपी की कार्यकारिणी बैठक में क्या होगा?
असल में आकाश आनंद को मायावती ने अपना उत्तराधिकारी जरूर घोषित कर दिया है, लेकिन अभी सीमित जिम्मेदारियां ही उनके खाते में गई हैं। इस बैठक के दौरान उनके सियासी भविष्य को लेकर नई रूपरेखा तय हो सकती है। इस समय उत्तर प्रदेश में 10 सीटों पर उपचुनाव होना है, उसे लेकर भी बसपा की रणनीति मायने रखने वाली है। मायावती पहले ही ऐलान कर चुकी हैं कि सभी सीटों पर पार्टी चुनाव लड़ेगी, ऐसे में अब कई बिंदुओं पर बैठक में चर्चा होने वाली है।
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मायावती की क्या रणनीति रहने वाली है?
इसके ऊपर कोटे में काटा वाला आदेश में भी मायावती को एक भरोसा दे रहा है। उन्हें लग रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ जाकर वे दलित समाज को फिर एकमुश्त अपने पक्ष में कर पाएंगी। इसी वजह से वे पूरे देश में इस मुद्दे को लेकर समर्थन जुटाना चाहती हैं। उनकी तरफ से केंद्र सरकार से भी मांग की गई है कि इस फैसले को पलटा जाए। अब यह सब कवायद मायावती अपने खोए जनाधार को फिर हासिल करने के लिए करना चाहती हैं। उन्हें इस बात का अहसास है कि अगर दलित वोट भी फिर वापस आ जाए, कई सीटों पर उनकी स्थिति मजबूत हो जाएगी।
अगर पिछले कुछ लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो पता चलता है कि मायावती का वोट तो ज्याादा नहीं गिरा है, लेकिन सीटें कम होती गई हैं। यह भी देखा गया है कि गठबंधन करने का फायदा बसपा को हर बार मिला है, उसकी सीटों की टैली बढ़ी है।
साल | सीटें | वोट शेयर |
1999 | 14 | 22.08% |
2004 | 19 | 24.67% |
2009 | 20 | 27.42% |
2014 | 0 | 19.62 |
2019 | 10 | 19.26 |
गठबंधन राजनीति की ओर जाएंगी मायावती?
यह टेबल बताती है कि 1993 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने गठबंधन कर रखा था और उसकी सीट की टैली 12 से बढ़कर 67 हो गई थी। इसी तरह 1996 में जब पार्टी ने कांग्रेस से हाथ मिलाया, उसका वोट प्रतिशत बढ़ गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में तो सपा से गठबंधन करने का सबसे ज्यादा फायदा बसपा को गया और वो 10 सीटें जीतने में कामयाब हुई। वहीं ये आंकड़ा 2014 में शून्य पर रुक गया था। उस चुनाव में मायावती ने किसी से गठबंधन नहीं किया था।