महाराष्ट्र में इन दिनों मराठी-हिंदी भाषा के मुद्दे पर राजनीति गरमाई हुई है। इस महीने की शुरुआत में,राज्य सरकार द्वारा हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले की घोषणा के बाद, इसका जमकर विरोध हुआ था। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने घोषणा की थी कि वे इस फैसले के खिलाफ एक संयुक्त मार्च निकालेंगे लेकिन उससे पहले ही राज्य सरकार ने हिंदी को अनिवार्य करने का फैसला वापस ले लिया था। हालांकि, उसके बाद भी आए दिन तमाम नेताओं के भाषा विवाद को लेकर बयान आते रहते हैं। इस बीच मराठी भाषा विवाद पर महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने कहा कि अगर हम इस तरह की नफरत फैलाएंगे तो कौन आएगा और निवेश करेगा?

सीपी राधाकृष्णन ने कहा, “जब मैं तमिलनाडु में सांसद था तो एक दिन मैंने कुछ लोगों को किसी को पीटते देखा। जब मैंने उनसे समस्या पूछी तो वे हिंदी में बात कर रहे थे। फिर, होटल मालिक ने मुझे बताया कि वे तमिल नहीं बोलते हैं और लोग उन्हें तमिल बोलने के लिए पीट रहे थे।”

 महाराष्ट्र के राज्यपाल ने आगे कहा, “अगर हम इस तरह की नफरत फैलाएंगे तो कौन आएगा और निवेश करेगा। लंबे समय में, हम महाराष्ट्र को नुकसान पहुंचा रहे हैं। मैं हिंदी समझने में असमर्थ हूं और यह मेरे लिए एक बाधा है। हमें अधिक से अधिक भाषाएं सीखनी चाहिए और हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए।”

वहीं, दूसरी ओर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे राज्य सरकार के हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले को वापस लेने के बाद विजय रैली के मौके पर 20 साल बाद दोनों चचेरे भाई एक मंच पर आए थे। पढ़ें- हिंदी-मराठी विवाद पर फिर भड़के राज ठाकरे

मुझ पर हिंदी थोपी नहीं जा सकती- राज ठाकरे

जिसके बाद मुंबई में एक जनसभा में मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने कहा था, “मैं यहां भाषा पर कोई विवाद खड़ा करने नहीं आया हूं। खबरदार, तुम्हारे साथ कुछ भी हो सकता है। मैं हिंदू हूं लेकिन मुझ पर हिंदी थोपी नहीं जा सकती। अगर इस क्षेत्र पर किसी का अधिकार है तो वो हम मराठियों का है। तुम महाराष्ट्र के बेटे हो, बाकी लोग बाहर से आए हैं। अगर कोई यहां आकर ज़रा भी ज्यादती करे तो उसकी पिटाई कर दो।”

वहीं, हिंदी भाषा विवाद पर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा, “मैं अपनी भावनाओं पर कायम हूं। हम किसी भाषा का विरोध नहीं करते लेकिन हम सख्ती लागू करने की इजाजत नहीं देंगे।” पढ़ें- महाराष्ट्र सरकार के थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी का आदेश वापस लेने पर बोले उद्धव ठाकरे